रविंद्र सिंह-
इफको बोर्ड बना माफिया.. इफको बोर्ड संस्था का चीर हरण 16 वर्ष पहले देशद्रोही जेएनएल श्रीवास्तव तत्कालीन कृषि सचिव की शह पर कर चुका था. गांव में एक कहावत है, गरीब की पत्नी पूरे गांव की भाभी कहलाती है, उसे लोग समय-समय पर अपने मनोरंजन का साधन भी बना लेते हैं लेकिन गरीबी और लोक लाज के कारण यह महिला अपनी व्यथा किसी को नहीं सुना पाती है.
इसी तर्ज पर भारत से लेकर विदेशों तक बोर्ड सदस्य संसद के पुजारी, नौकरशाह, लोकतंत्र के रखवाले और बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों ने इफको से जब जरूरत समझी धन की पूर्ती कर ली. इफको की इज्जत लुट रही है और देश के कर्णधार आंखों पर पट्टी बांधे हुए गंगा के बहते पानी की तरह डुबकी लगाकर मौज कर रहे हैं और मौन साधे हुए हैं.
इफको की कलंक कथा जगजाहिर ना हो इसलिए फंक्शनल 8 निदेशक में से उदय शंकर अवस्थी, राकेश कपूर, केएल सिंह, आरपी सिंह, एमआर पटेल और एके सिंह 6 सेवा विस्तार पर हैं. सेवा विस्तार पर होने का शड्यंत्र यह है कि एक भी सेवा निवृत्ति के बाद संस्था से बाहर जाकर कब बगावत कर देगा, यह डर अवस्थी को सताए हुए है. अब सवाल यह है क्या भारत में इतना योग्य कर्मठ और ईमानदार कोई व्यक्ति नहीं है जो इफको बोर्ड में फंक्शनल निदेशक का कार्यभार ग्रहण कर सके.
यह जिम्मेदारी निभाने का दायित्व केंद्रीय कृषि और सहकारिता रजिस्ट्रार का है. लेकिन वे भी पूरी तरह से हमाम में नंगे हैं इसलिए हर अनैतिक कार्य धृतराष्ट्र की तरह बंद आंखों के बजाए खुली आंखों से ढ़ोंग कर देखते रहे हैं.
तत्कालीन उर्वरक संयुक्त सचिव बीके सिन्हा ने जांच में कहा है प्रबंधन ने जिस तरह से सरकार का शेयर वापस किया है वह पूरी तरह से विवादित इसलिए है कि सरकार से किसी प्रकार की अनुमति एवं राय नहीं ली गी है. सरकार का मालिकाना हक बल पूर्वक, अवैध, गैर कानूनी प्रक्रिया के तहत अवस्थी एंड कंपनी ने खत्म किया है. सरकार का 289 करोड़ शेयर का आकलन बुक वैल्यू पर नहीं किया गया है, सीएजी से ऑडिट कराने की बात अवस्थी ने इसलिए स्वीकार नहीं की जो कंपनी 420 करोड़ की पूंजी से शुरू होकर विदेशों तक सहयोगी कंपनी खोल चुकी है तो मुनाफा पर भी सरकार को हक देना पड़ता.
बायलॉज को बल पूर्वक संशोधन करने से पहले सरकार तो छोड़िए वार्षिक साधारण सभा से भी अनुमोदन नहीं कराया. संयुक्त सचिव ने जांच में खुलासा करते हुए कहा है सरकार का शेयर वापस कर गैर सरकारी सोसाइटी को शेयर आवंटन किए गए हैं जो पूरी तरह से धोखा-धड़ी का मामला है. सरकार को सीधे 300 करोड़ का नुकसान पहुंचाया गया है इसलिए तत्काल यह मामला जांच हेतु CBI को भेजने की संस्तुति की जाती है. परंतु तत्कालीन रसायन उर्वरक मंत्री रामविलास पासवान ने प्रबंधन के विरूद्ध CBI से जांच कराने को रूचि नहीं दिखाई.
यहां से अवस्थी का मनोबल और बढ़ता चला गया. इसी तरह सन् 1998-99 से 2008-09 तक उर्वरक का स्वदेशी उत्पादन 11 फीसदी तक था और 69 फीसदी उर्वरक आयात कर किसानों की मांग को पूरा किया जाता था परंतु सब्सिडी घोटाला करते हुए 69 फीसदी मांग के बजाए 263 फीसदी आयात दिखाकर किसानों के नाम पर घोटाला किया गया था. CAG की वार्षिक ऑडिट के मुताबिक भारत जैसे विकासशील देश के करदाता जरूरत मंदों का विकास करने के लिए तरह-तरह के टैक्स देते हैं परंतु इस टैक्स का सही इस्तेमाल होने की बजाए फर्जी सब्सिडी का दावा कर सरकार से ले ली गई.
जांच का विषय यह है जब यह उर्वरक देश में पहुंची ही नहीं तो सरकार ने आईपीएल को धन जारी कैसे कर दिया?
2008-09 में आईपीएल द्वारा आयात की गई उर्वरक आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल में 30.42 लाख टन उर्वरक आयात के कागजात बतौर साक्ष्य कंपनी प्रस्तुत नहीं कर सकी. इसी तरह 1.64 लाख टन उर्वरक पर आईपीएल ने गलत तरीके से 762 करोड़ का सब्सिडी धन क्लेम किया है. सन् 2007-08 में 43 शिपमेंट का 1652 करोड़ 100 फीसदी लदान की कीमत अग्रिम भुगतान की गई थी जिस पर 4233.43 करोड़ क्लेम लेकर राशि समायोजित नहीं की गई है.
यह भी गंभीर प्रकरण सरकार की आंखों से इसलिए ओझल रहा कि आईपीएल में इफको का शेयर 33.99 फीसदी है और समय-समय पर सरकार का राग अलापने वाले अवस्थी उक्त कंपनी में बतौर निदेशक हैं. आगे पढ़ें.. फंक्शनल निदेशकों का गैंग…
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखित किताब ‘इफ़को किसकी?’ का आठवां पार्ट.
जारी है..
सातवां पार्ट.. इफको की कहानी (7) : IFFCO में अवस्थी के यह विचार सुनकर देशभर से आए सभी दंग रह गए!