कुमार प्रियांक-
ओडिशा कैडर के 1987 बैच के भारतीय वन सेवा (IFoS) के अधिकारी अभयकांत पाठक के यहाँ से सतर्कता विभाग के पड़े छापों में अरबों की कमाई का पता चला है। भारत सरकार पेड़ लगाने के पैसे देती थी तो उसमें यह अपने लिए पैसे उगाता था।
मर्सिडीज, ऑडी इत्यादि जैसी कई महँगी गाड़ियाँ रखना, देश के बड़े शहरों में कई आलीशान भवन होना व करोड़ों का बैंक बैलेंस होना किसी उस अधिकारी के लिए असम्भव है, जिसकी आय महज 2 लाख 70 हजार रुपये मासिक हो!
यह महाभ्रष्ट तब पकड़ में आया जब लॉकडाउन के दौरान इसने परिवार के साथ 20 बार चार्टर्ड प्लेन से निजी यात्राएं की।
ऐसे ही कहानी है छत्तीसगढ़ कैडर के 1988 बैच के आईएएस (IAS) बाबूलाल अग्रवाल की। यह महाभ्रष्ट भी कई बार जेल गया और फिलवक्त बर्खास्त है सेवा से। परन्तु केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (CAT) से इसने रिलीफ (कैसे पाया होगा रिलीफ, यह भी जाँच का विषय हो सकता है) पा लिया था, पर फिर इस पर पड़े छापे में इसके पास से लगभग 28 करोड़ रुपये होने के सबूत मिले हैं।
ये दो तो महज उदाहरण भर हैं। सही तरीके से जाँच हो जाये, तो देश की नौकरशाही व न्यायपालिका में ऐसे धूर्त व दुष्ट महा-भ्रष्टाचारियों की लाइन लग जाये। इन सभी महाभ्रष्टों ने मिलकर एक ऐसा नेक्सस तैयार किया हुआ है, जिसमें ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी पिस कर रह जाते हैं। कई बार तो ईमानदारी का प्रतिफल बर्खास्तगी या शंट पोस्टिंग के रूप में भी मिलता है।
एक बार गुरु नानकदेव जी महाराज बग़दाद गये। वहाँ का शासक बहुत धूर्त था। अपनी जनता से इतना धन चूसता था कि जनता त्राहिमाम करती रहती थी। जब इस धूर्त शासक को जानकारी मिली कि कोई पहुँचे हुए महात्मा पधारे हैं, तो यह गुरु नानकदेव जी महाराज से मिलने पहुँचा।
वहाँ गुरु नानकदेव जी महाराज ने इस शासक से कहा कि मेरे लिए 100 पत्थर गिरवी रख दो अपने पास। बाद में ले लूँगा।
बग़दाद के शासक ने पूछा कि गिरवी रख तो दूँगा, पर आप ले कब जाएंगे इन पत्थरों को!
गुरु नानकदेव जी महाराज ने कहा कि मैं तुमसे पहले यह नश्वर संसार छोड़ जाऊँगा। मेरे पीछे तुम भी आओगे ही एक न एक दिन। तब लेकर आ जाना और मुझे दे देना!
बग़दाद का शासक चौंका। बोला- पर महाराज यह कैसे सम्भव होगा? मरने के बाद भला कोई कैसे यहाँ से कुछ साथ ले जा सकता है!
तब गुरु नानकदेव जी महाराज ने मुस्कुराते हुए बग़दाद के शासक को कहा कि जब मरने के बाद कुछ यहाँ से ले ही नहीं जा सकते, तो किसलिए जनता से धन चूसकर जमा करते रहते हो और बदले में गरीब जनता की आह रूपी पाप बटोरते हो?
अगले ही पल बग़दाद के शासक की आँखें खुल गयीं और वह गुरु नानकदेव जी महाराज के चरणों में गिरकर रोने लगा कि महाराज मुझसे बड़ी भूल हो गयी।
बग़दाद के शासक की आँखें तो खुल गयीं, पर देश के सर्वश्रेष्ठ (?) कहे जाने वाली परीक्षा को पास कर आने वाले तथाकथित सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमानों की आँखें कब खुलेंगी, जो अपनी महत्वाकांक्षा, क्षुद्र स्वार्थ व लोभ-लालच-मलाईदार पोस्टिंग के चक्कर में अपना स्वाभिमान गिरवी रख देते हैं!
याद रखियेगा आप दो पैसे भ्रष्ट तरीकों से अधिक तो कमा सकते हैं, पर आम बहुसंख्य जनता की नजर में हीरो तो वही अधिकारी होता है जो अपना स्वाभिमान बरकरार रख कर निडरता व कर्तव्यनिष्ठा से अपना फ़र्ज़ निभाता है, न कि दो कौड़ी के अनपढ़ नेताओं के चरणों में गिरकर अपनी फजीहत कराता रहता है। यहाँ तो बच जाओगे आल-जाल करके, पर वहाँ कौन बचाएगा बेटा!