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सियासत

ईमानदार होना ही नहीं, ईमानदार दिखना भी चाहिए योर ऑनर!

जे.पी.सिंह

जस्टिस सीकरी जब चयन समिति की बैठक में शामिल हुये, उसके पहले वे कॉमनवेल्थ ट्राइब्यूनल में भेजने के सरकारी प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे चुके थे

कहते हैं ईमानदार होना ही नहीं ईमानदार दिखना भी चाहिए। आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाने के लिए चयन समिति की बैठक में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के प्रतिनिधि के रूप में शामिल होने के लिए जब जस्टिस ए के सीकरी को नामांकित किया गया। तभी हितों के टकराव का मामला होने के कारण जस्टिस सीकरी को मना कर देना चाहिए था। क्योंकि जस्टिस सीकरी जब चयन समिति की बैठक में शामिल हुये, उसके पहले वे कॉमनवेल्थ ट्राइब्यूनल में भेजने के सरकारी प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे चुके थे।

अब सवाल है कि अगर जस्टिस सीकरी और चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को सरकार के इस फैसले के बारे में पता था तो क्या जस्टिस रंजन गोगोई को उन्हें बैठक में भाग लेने के लिए क्या नामांकित करना चाहिए था? क्या जस्टिस सीकरी को नैतिक आधार पर उस उच्चाधिकार समिति में होना चाहिए था, जिसने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाया? क्योंकि ये स्पष्ट रूप से हितों के टकराव का मामला है। जस्टिस गोगोई ने भी हितों के टकराव के नाम पर चयन समिति में अपने स्थान पर जस्टिस सीकरी को नामांकित किया था।इस मुद्दे पर गम्भीर विवाद उठने के बाद उच्चतम न्यायालय के जस्टिस सीकरी ने सरकार की ओर से कॉमनवेल्थ सेक्रटरिएट आर्बिट्रल ट्राइब्यूनल में भेजे जाने के प्रस्ताव पर दी गयी अपनी सहमति वापस ले लिया है।

दरअसल एक वेबसाईट ने यह खबर ब्रेक किया था कि मोदी सरकार ने जस्टिस ए के सीकरी को लंदन स्थित कॉमनवेल्थ सेक्रटरिएट आर्बिट्रल ट्राइब्यूनल के सदस्य के लिए मनोनीत किया है। हालांकि इस पर विवाद छिड़ गया था और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सीकरी के मनोनयन की रिपोर्ट पर ट्वीट करते हुए लिखा था, ‘न्याय के पैमाने से जब छेड़छाड़ की जाती है तो फिर अराजकता का राज आता है।’ राहुल ने इस मसले पर सीधे पीएम मोदी पर हमला करते हुए कहा था कि वह राफेल घोटाले को कवरअप करने में जुटे हैं। कांग्रेस ने सीबीआई डायरेक्टर को हटाए जाने पर उनकी सहमति से इसे जोड़ा था और सरकार से जवाब मांगा था।

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चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस सीकरी ने रविवार को कानून मंत्रालय को पत्र लिखकर अपनी सहमति वापस लेने की बात कही। जस्टिस सीकरी को मनोनीत करने का फैसला दिसबंर के पहले सप्ताह में लिया गया था, जबकि चीफ जस्टिस ने सीबीआई चीफ की नियुक्ति वाले पैनल में उन्हें जनवरी में नामित किया था। ऐसे में कांग्रेस ने जस्टिस सीकरी को मिले इस ऑफर को सीबीआई निदेशक को हटाए जाने पर उनकी सहमति से जोड़ते हुए सरकार से जवाब मांगा था।

जस्टिस सीकरी की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि चूंकि दिसंबर 2018 के पहले हफ्ते में ही इस ऑफर पर सहमति मांगी गई थी, वहीं मुख्य न्यायाधीश ने पिछले हफ्ते ही सीबीआई मामले की समिति में नॉमोनेट किया था, इसलिए इसका सीबीआई के मामले से कोई लेना-देना नहीं है।जस्टिस सीकरी ने कहा है कि मैं पहले हुए नामांकन और हाल के दिनों में घटे घटनाक्रम को एक साथ जोड़े जाने से आहत हूं। दोनों में किसी तरह का आपसी संबंध नहीं है। मैं आगे किसी तरह का कोई विवाद नहीं चाहता, इसलिए अपनी सहमति वापस ले रहा हूं।

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चर्चा है कि दिसम्बर के आखिर में सीकरी का नॉमिनेशन तय किया गया था। कहा जा रहा है कि तब उन्होंने जिम्मेदारी संभालने पर सहमति जताई थी, लेकिन बाद में सवाल उठने पर इनकार कर दिया। सीकरी 6 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने वाले हैं। वह इस समय चीफ जस्टिस के बाद दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं।

कहा जा रहा है कि पिछले महीने सीकरी से कॉमनवेल्थ ट्राइब्यूनल में नियुक्ति को लेकर मौखिक मंजूरी ली गई थी और उसका सीबीआई विवाद से कोई लेनादेना नहीं है। कहा जा रहा है कि सरकार ने इस जिम्मेदारी के लिए पिछले महीने जस्टिस एके सीकरी से संपर्क किया था।उन्होंने अपनी सहमति दी थी। इस पद पर रहते हुए प्रति वर्ष दो से तीन सुनवाई के लिए वहां जाना होता और यह बिना मेहनताना वाला पद था। प्रतिष्ठित सीएसएटी में सदस्यों को 4 साल के लिए नियुक्त किया जाता है, जिसे एक बार बढ़ाया जा सकता है।

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गौरतलब है कि हाल ही में पीएम मोदी, जस्टिस सीकरी और कांग्रेस लीडर मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व वाले तीन सदस्यीय पैनल ने सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को 2-1 से हटाने का फैसला लिया था। खड़गे इस फैसले के खिलाफ थे, लेकिन जस्टिस सीकरी और पीएम मोदी के वोट के चलते वर्मा को बहुमत से हटाने का फैसला हुआ। चयन समिति के इस फैसले की काफी आलोचना हो रही है।आलोक वर्मा के भविष्य का फैसला करने के लिए जस्टिस सीकरी का वोट महत्वपूर्ण था, क्योंकि वह मोदी और खड़गे के अलावा उच्च-स्तरीय चयन समिति के तीसरे सदस्य थे। बैठक में जस्टिस सीकरी का सरकार के समान दृष्टिकोण था, जबकि खड़गे ने कड़ी नाराजगी जाहिर की थी।

कॉमनवेल्थ सेक्रटरिएट आर्बिट्रल ट्राइब्यूनल का गठन कॉमनवेल्थ देशों के मेमोरैंडम का पालन सुनिश्चित करने के लिए किया गया था। इस मेमोरैंडम को 2005 में नए सिरे से तैयार किया गया था। इस ट्राइब्यूनल में सदस्यों का मनोनयन 5 साल के लिए किया जाता है और उनकी सदस्यता को एक बार ही रीन्यू किया जा सकता है। अध्यक्ष समेत ट्राइब्यूनल में 8 सदस्य होते हैं। 7 मार्च, 1954 को जन्मे ए के सीकरी 12 अप्रैल, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे। इससे पहले वह पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस भी रह चुके हैं।

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लेखक जेपी सिंह इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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