Yashwant Singh-
बुआ को हार्ट में दिक़्क़त है। चेकअप के लिए बीएचयू में भर्ती हुईं। फ़ोन पर बता रहीं थीं कि बग़ल में जो मरीज़ प्रयागराज से आया है उसका प्राइवेट जाँच में ब्लॉकेज अस्सी परसेंटेज बताया प्राइवेट डॉक्टर ने। बीएचयू में जब कार्डियोलॉजी के एचओडी डॉ Om Shankar ने इस मरीज़ का अपने नेतृत्व में दुबारा टेस्ट कराया तो ब्लॉकेज साठ परसेंट पता चला। प्रोफ़ेसर ओम शंकर ने इस मरीज़ को कह दिया कि घबराओ नहीं, दवा से ये ठीक कर दूँगा।


सोचिए, प्राइवेट और सरकारी में कितना अंतर है। प्राइवेट में लुटेरे छुरा काँटा लेकर बैठे हुए हैं हार्ट से खेलने के लिए।
दुर्भाग्य है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार का तवज्जो नहीं है जिससे बहुत प्रेशर में सरकारी डॉक्टर काम करते हैं।
डॉक्टर ओम शंकर हम लोगों के समय के दुर्लभ डॉक्टर हैं। उनके कई रूप हैं। वे शानदार डॉक्टर के अलावा दलित चिंतक-विश्लेषक, सोशल एक्टिविस्ट, व्हिसल ब्लोअर भी हैं। वे बीएचयू के भ्रष्टाचारियों की आँखों की किरकिरी हैं क्योंकि वे ग़लत को ग़लत आँख में आँख डालकर कह देते हैं।
डॉ ओम शंकर जनपक्षधर डॉक्टर हैं। वे अपने पोलिटिकल व्यूज को छुपाते नहीं। उनका फ़ेसबुक वॉल देख डालिये। एक्टिविज्म कूट कूट कर भरा है।
बुआ के मन से डर ख़त्म हो गया है। उनके हृदय में भी समस्या डायग्नोज हुई है। पर वे आश्वस्त हैं कि सिर्फ दवा से ही डाक्टर ओम शंकर जी हार्ट को ठीक कर देंगे!
डॉक्टर को देख सुन कर मरीज़ में ठीक हो जाने की आश्वस्ति आ जाए तो समझिए आधा रोग छू मंतर हो गया!



भड़ास एडिटर यशवंत की उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आईं ढेरों प्रतिक्रियाओं में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-
Ashok Kumar Sharma–
हार्ट में ब्लॉकेज की समस्या तो मेरी पत्नी को भी आई थी। होम्योपैथिक के बेहद सस्ते इलाज से ठीक हुई। पूरी कहानी में लिख रहा हूं। अपनी पत्नी रंजना को मैंने आज से लगभग 3 साल पहले सांस फूलने की शिकायत के बाद संजय गांधी आयुर्विज्ञान महाविद्यालय (एसजीपीजीआई, लखनऊ) में दिखाया था, तो उनकी न्यूक्लियर मेडिसिन डिपार्टमेंट में कई जांचें की गई। हृदय रोग डिपार्टमेंट में इकोकार्डियोग्राफी और ट्रेडमिल स्ट्रेस टेस्ट किया गया। इसके बाद यह राय दी गई थी उनके हृदय में दो स्टंट लगाने की नौबत आ सकती है क्योंकि हृदय की धमनियां 70 प्रतिशत ब्लॉक हैं। 2 दिन में इतने परीक्षणों के ऊपर तब तक आने जाने तथा टेस्ट का ₹30000 से अधिक खर्च भी हो गया और इसके बाद हमने स्टंट दिलाने के लिए एडवांस ₹70000 जमा भी कर दिया। लेकिन स्टंट डालने की तिथि हमें कुछ बाद की मिल रही थी इसलिए घर आ गए।
इस बीच लखनऊ होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज के रीडर डॉ सव दमन सिंह मेरे पास किसी काम से आए। लेकिन पत्नी की तबीयत खराब होने के कारण मैं बहुत अनमने ढंग से उनसे बात कर रहा था। पूरी बात सुनने के बाद डॉक्टर सिंह ने मुझसे कहा कि उन्हें 15 दिन का समय दे दिया जाए और होम्योपैथिक की दवा लेने के बाद 15 दिन बाद में एसजीपीजीआई में फिर से जांच करा लें। मरता क्या ना करता हमारे पास कोई चारा ही नहीं था इसलिए हमने डॉक्टर सिंह की दवाई रंजना को खिलानी शुरू की। 15 दिन बाद वह दिन आगे आ जाओ हमें संजय गांधी पीजीआई में जाना था। टेस्ट से एक दिन पहले रात में हमें प्राइवेट रूम दे दिया गया और वहीं पर हम रूके अगले दिन सुबह 8:00 बजे जब हृदय रोग डिपार्टमेंट में विभाग के प्रमुख डॉ आदित्य कपूर मेरी पत्नी को एंजियोप्लास्टी और स्टंट डालने के लिए लेकर गए। तो कुछ ही देर में वापस लौट कर बहुत ही आवेश में चिल्लाने लगे कि किस मूर्ख ने, किस अकल से पैदल इंसान ने इनकी जांच की थी और हार्ट में ब्लॉकेज बताया था।
मुझे इस प्रकार के स्वर की अपेक्षा नहीं थी। इसलिए मैंने उनसे बताया कि न्यूक्लियर मेडिसिन डिपार्टमेंट के डॉक्टर गंभीर ने जांच की थी जो की सहयोग से डॉक्टर कपूर के वरिष्ठ थे। उनकी काबिलियत का लोहा सभी मानते हैं और वह बेहद शरीफ तथा विद्वान व्यक्ति भी हैं। वह भी थोड़ी देर बाद वहां आ पहुंचे और उन्होंने अपनी आंखों से एंजियोप्लास्टी की जांच के दौरान लिए गए वीडियो को देखा और पाया कि मेरी पत्नी के हाथ में किसी भी नाली में ब्लॉक नहीं था। इसलिए संजय गांधी पीजीआई ने मेरे द्वारा जमा किए गए स्टंट के पैसे को वापस देने का निर्णय लिया और मैं अपनी पत्नी को लेकर वापस आ गया।
होम्योपैथिक चिकित्सा के रूप में आज भी लखनऊ में कार्यरत हैं और यदि आप कभी उनसे मिलेंगे तो आपको ऐसा लगेगा जैसे किसी खांटी भोले बाबा से मिल रहे हैं। लेकिन अगर आप उनके क्लीनिक पर पहुंच गए तो आपको लगेगा जैसे कि मरीजों का कुंभ मेला लगा हो। चलते-चलते आपको यह जरूर बता दूं की होम्योपैथिक के उसे इलाज पर 15 दिन में मेरा ₹300 खर्च हुआ था।
Amit Tripathi
ओम शंकर बहुत ही अच्छे डॉक्टर हैं जबकि वहां के एच ओ डी बहुत ही महंगे डॉक्टर हैं । वैसे भैया कार्डियोलॉजी के लिए उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा हॉस्पिटल कानपुर में है। बीएचयू में जो जांच एंजियोग्राफी 8000 में होती है वह कानपुर के एलपीएस में 500 में होती है बीएचयू में मिनिमम एक ब्लॉकेज का 60 से 80 हजार रुपए लगता है जबकि एलपीएस कानपुर में 25 से ₹40000 लगते हैं। भैया ब्लॉकेज है और स्टड डलवाना है तो सीधे एलपीएस कानपुर (कानपुर हार्ट केयर सेंटर) भेजिए। हार्ट से संबंधित किसी प्रकार के सर्जरी के लिए सबसे बढ़िया कानपुर ही है। गरीब मरीज के लिए फ्री में भी सर्जरी हो जाएगी ।
Jai Prakash Singh
इलाहाबाद के डॉक्टर बिना मोतियाबिंद मरीज के आंख का ऑपरेशन कर देते हैं और लेंस के नाम पर हजारों ऐंठ लेते हैं. दिल की बाईपास की सलाह देते हैं और पीजीआई में पता चलता है बाई पास की जरूरत नहीं है। इसमें दिल्ली के कुछ बड़े निजी अस्पताल शामिल हैं। मेडिकल फ्रॉड एक बड़े स्कैम का रूप ले चुका है
Kinjal Singh
इस समय संवेदनाएं पूरी तरह मर चुकी है और स्वास्थ्य सेक्टर सबसे बड़ा धंधा बन चुका है जहां पर इससे जुड़े लोगो से भी किसी प्रकार की दया की अपेक्षा नहीं कि जा सकती है, चार दिन पहले मेरे मित्र के पिता जी को सास फूलने और चक्कर की समस्या थी, उसने बिना किसी से पूछे गूगल पर सर्च करके रेटिंग देखके पत्रिका चौराहे पर dr अनुराग सेठ को दिखाया, उसने तुरंत इंजेक्शन टेस्ट के नाम पर 10 हजार से ऊपर का बिल बना दिया और बोला इनका हार्ट काम नहीं कर रहा है, खून नही बन रहा है, भरती करो पेसमेकर लगाना पड़ेगा। उसके बाद मित्र जी की नीद खुली मुझे फोन किया फिर मैंने का ठीक है जो भी हुआ है एक बार तुम नाजरेथ के डॉटर उमर को दिखा लो, चुकी उन्होंने मेरे जान पहचान के कई लोगो का इलाज किया है तो उनकी कार्यशैली से मैं परिचित हूं, कल उसने उन्हें दिखाया तो उन्होंने बोला ऐसी कोई समस्या नहीं है, फालतू परेशान मत हो दावा से ठीक हो जायेगा। सोचे कही वो डॉक्टर उमर को न दिखा कर किसी और के कहने पर सरस्वती हार्ट केयर वाले अग्रवाल के पास चला गया होता तो वो उससे भी बड़ा डर दिखा के अब तक हार्ट खोल चुका होता। डॉक्टरी पेशा अब केवल डर का धंधा बन चुका है, जिसको दिखा कर ये अब केवल पैसे कूट रहे है।