अमर उजाला के लिये क्या ही कहूं
संजय कुमार सिंह
आज इंडियन एकसप्रेस की एक खबर ईडी की गलती बताती है जबकि हिन्दुस्तान टाइम्स की एक खबर एक केंद्रीय मंत्री के हवाले से उसकी विश्वसनीयता बताती है। यह अलग बात है कि विश्वसनीयता तो ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की भी दांव पर है और मीडिया की यह हिम्मत नहीं है कि उसपर सवाल उठाये। सरकार तो बोलती ही नहीं है या फिर मन की बात करती है। मीडिया का बड़ा वर्ग ताली-थाली बजाता है।
ऐसे में आज कई अखबारों में आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अऱविन्द केजरीवाल का यह बयान है कि उन्हें लोकसभा चुनाव से बाहर रखने की योजना है। अकेले हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे भाजपा के जवाबी हमले या पलटवार के साथ बड़ी खबर के रूप में प्रकाशित किया है। मुझे लगता है कि जो हो रहा है उसमें अरविन्द केजरीवाल को यह आरोप लगाने का पूरा अधिकार है और अखबारों को छापना भी चाहिये। केजरीवाल आरोप लगायें तो उसपर भाजपा का जवाब अगर है तो छपेगा कि नहीं और कितनी प्रमुखता से यह जवाब देखकर ही तय किया जाना चाहिये। यह ऐसा मामला नहीं है कि आरोप है तो जवाब चाहिये और जवाब है तो बराबर महत्व देना जरूरी है। कारण बताने की जरूरत नहीं है। भाजपा की कार्यशैली, प्रचारकों का रवैया और भाजपा के समर्थन में मीडिया का रुख ऐसा रहा है कि वार का जवाब और फिर उसका पलटवार भी है तो कूड़े दान में डालिये, खबर क्या है?
हिन्दुस्तान टाइम्स ने आज इसे पहले पन्ने पर सेकेंड लीड बनाया है तो भाजपा के जवाब या पलट वार को ही लेता हूं। खबर के अनुसार, (अनुवाद मेरा) कुछ घंटों बाद भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के विश्वसनीय आरोपों से भाग रहे हैं और कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए पीड़ित की भूमिका निभा रहे हैं। केंद्रीय राज्य मंत्री (विभाग नहीं लिखा है, अब यह महत्वपूर्ण नहीं रहा) नित्यानंद राय ने कहा कि एजेंसियां कानून के मुताबिक काम कर रही हैं। केजरीवाल की यह टिप्पणी दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति में कथित अनियमितताओं और उससे जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग जांच पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा तीसरी बार जारी किए गए समन में शामिल नहीं होने के एक दिन बाद आई है। सीएम ने दोहराया कि उन्होंने समन का जवाब नहीं दिया क्योंकि वे अवैध थे।
कल मैंने कहीं पढ़ा था कि मुख्यमंत्री ने कहा है कि वे लिखित सवालों का जवाब दे सकते हैं और इस तरह उसके पास दस्तावेजी सबूत भी होगा। खबर के अनुसार, दिल्ली के सिविल लाइन्स में अपने आधिकारिक आवास पर एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, “मेरे वकीलों ने मुझे बताया है कि ईडी के समन अवैध हैं…भाजपा का उद्देश्य मुझसे पूछताछ करना नहीं है, बल्कि मुझे गिरफ्तार करना है ताकि मैं लोकसभा चुनाव में प्रचार न कर सकूं।” लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई में होने की उम्मीद है। मुझे लगता है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। एक निर्वाचित मुख्यमंत्री से पूछताछ कितना जरूरी है और वह साथ नहीं दे रहा है तो सवाल सार्वजनिक करने में क्या दिक्कत है? इससे भी बड़ी बात यह है कि आरोप के समर्थन में सबूत क्या हैं? सबूत जुटाने के लिए आरोपी को ही गिरफ्तार करना, थर्ड डिग्री आदि तो वैसे भी गलत है। ऐसे में मुख्यमंत्री को पूछताछ में क्यों सहयोग करना चाहिये। वह भी तब जब आरोप ही दमदार नहीं है।
जांच विश्वसनीय तब होती जब करोड़ों बरामद हुए होते और उनका कोई स्पष्टीकरण नहीं होता। पर जहां तक मेरी जानकारी है, उड़ीसा में कांग्रेस सांसद के ठिकाने से करोड़ों बरामद होने के बाद भी उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया है। वहां मकसद उन्हें और कांग्रेस पार्टी को बदनाम करना था और अब अब लक्ष्य अगला या दूसरा है। जहां तक ईडी के आरोप और मनी लांडरिंग के केस की बात है आज ही इंडियन एक्सप्रेस में खबर है कि दो किसान भाइयों पर मनी लांडरिंग का आरोप है, पूछताछ के लिए समन है जबकि उनके खातों में मात्र 450 रुपये थे। खबर के अनुसार एक भाजपा नेता की नाराजगी के कारण ईडी ने मामले को पूरी तरह जाने बगैर कार्रवाई शुरू कर दी और कई वर्षों बाद अब मान लिया कि गलती हुई। ईडी जब भाजपा नेता के मामले में ऐसी गलती कर सकती है तो सरकार और प्रधानमंत्री के नाराज होने पर ऐसी गलती नहीं करेगी उसकी क्या गारंटी है। वैसे भी एक मामले में जांच के लिए किसी राजनीतिक दल के कितने नेताओं और निर्वाचित प्रतिनिधियों को जेल में बंद किया जायेगा?
बेशक अपराध हुआ है तो जांच होनी चाहिये और नियम सम्मत कार्रवाई होनी ही चाहिये पर सबूत कहां है और पूछताछ या गिरफ्तारी जरूरी है यह कैसे तय होगा। वह भी तब जब संबंधित एजेंसी की साख मिट्टी में मिलती जा रही है। ऐसा ही दूसरा मामला झारखंड के मुख्यमंत्री का भी है। उन्हें सात बार समन भेजा जा चुका है। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अफसरों को बिना जरूरत नहीं बुलाया जाना चाहिये। मेरा सवाल है कि ऐसी हालत में पांच साल के लिए निर्वाचित नेताओं को समन करने या जांच के नाम पर जेल में रखने का क्या मतलब है? वह भी सिर्फ उसे जो केंद्र सरकार का समर्थन नहीं करता है। झारखंड के मामले में चूंकि कानून व्यवस्था की समस्या हो सकती है इसलिए उनका मामला अलग है और दिल्ली का अलग क्योंकि यहां पुलिस केंद्र सरकार के नियंत्रण में है। कहने की जरूरत नहीं है कि कानून सबके लिए बराबर है, उसका क्या हुआ। अखबारों का काम सवाल उठाना है, प्रचार करना नहीं। प्रचार के लिए विज्ञापन छाप सकता है लेकिन खबरों में विज्ञापन या प्रचार नहीं हो सकता है, नहीं होना चाहिये।
इसके बावजूद आज कई अखबारों में दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिक की भी खबर है। इसके अनुसार दिल्ली के उपराज्यपाल मोहल्ला क्लिनिक की अनियमितताओं की सीबीआई जांच के पक्ष में हैं। मुझे लगता है कि मोहल्ला क्लिनिक का बजट उतना भी नहीं होगा जितने में कल प्रधानमंत्री लक्ष्यद्वीप घूम आये। अगर ज्यादा भी हो तो उसमें कथित अनियमितता की जांच सीबीआई से क्यों करानी चाहिये जब वे दिल्ली सरकार के ऊपर बैठे ही हैं। जो स्थितियां हैं उनमें निर्वाचित नहीं होने के बावजूद वे अपने ऊपर मुकदमा होने के बावजूद अदालती राहत के दम पर कुर्सी पर बैठे हुए हैं और समय पर निगरानी की बजाय कथित अनियमितता हो जाने के बाद सीबीआई से जांच कराने के पक्ष में क्यों हैं। और हैं तो करायें, बिना सबूत आरोप और खबर-प्रचार क्यों? कहने की जरूरत नहीं है कि भाजपा विधायक को नाराज करने पर अगर ईडी जांच कर सकती है तो प्रधानमंत्री से लोहा लेने पर क्या-क्या हो सकता है। ऐसे में अखबारों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन वे भी सरकार का प्रचार करें और ईडी की गलती स्वीकार करने की खबर न छापें तो आप समझ सकते हैं कि देश में क्या चल रहा है।
अमर उजाला की समझ
जहां तक अखबार वालों की खबरों की समझ और अपने विवेक का सवाल है, अमर उजाला की आज की यह तस्वीर, शीर्षक और कैप्शन से उसका अंदाजा लगता है। शीर्षक है, लक्षद्वीप में पीएम मोदी ने की समंदर में सैर। कहने की जरूरत नहीं है कि यहां समंदर में सैर का संदर्भ पानी के नीचे सैर से है। कैप्शन में गोता लगाया – लिखा भी है। फोटो से साफ है कि यह पानी के उपर नौकायन या कम पानी में पैदल चलने अथवा सामान्य ढंग से तैरना नहीं है। जो फोटो है उसमें प्रधानमंत्री लाइफ जैकेट पहने हुए हैं। इसलिए पानी में नीचे जाने का सवाल ही नहीं है। अगर गये हों तो यह फोटो गलत है। मैं नहीं जानता कि असल में क्या हुआ। पर लाइफजैकेट के साथ समंदर में गोता लगाने की खबर और उसे सैर लिखना अपने आप में अटपटा है। यह इतना बड़ा मामला भी नहीं है कि तमाम दूसरी खबरें छोड़कर पहले पन्ने पर छापी ही जाये। कहने की जरूरत नहीं है कि देश के प्रधानमंत्री से संबंधित यह खबर कई कारणों से पहली नजर में ही गलत और अटपटी लग रही है। नवोदय टाइम्स में भी मामला ऐसा ही है। पर वहां गनीमत है कि खबर सिंगल कॉलम में है।
चीन पर इंडियन एक्सप्रेस
वैसे भी, प्रधानमंत्री को ऐसे प्रचार की क्या जरूरत, पाठकों के लिए किस काम का? ऐसा नहीं है कि इसे पहले पेज पर छापना गलत है। खबर इसी में है और द टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर छापा है। कैप्शन है, ऑन असाइनमेट। प्रधानमंत्री की यह फोटो और उसका वर्णन लक्षद्वीप पर्यटन का प्रचार तो है ही। प्रधानमंत्री ने यह काम तो किया ही है और इसलिए वे लक्षद्वीप घूमने गये तो भी उसे असाइनमेंट कहा जा सकता है या उसपर सवाल उठाया जा सकता है। टेलीग्राफ ने वही किया है जो उसका काम है। लेकिन अमर उजाला ने इस फोटो के नीचे खबर छापी है, मोदी के नेतृत्व में तेजी से आगे बढ़ रहा है भारत : चीन। उपशीर्षक है, ग्लोबल टाइम्स ने की पीएम की प्रशंसा …. लिखा, 10 साल में बदल गया भारत प्रमुख शक्ति बना। मोदी की कूटनीति को सराहा – बीच में हाइलाइट किया गया है। यह खबर किसी घोषित स्रोत से नहीं आई है। और किसी दूसरे अखबार में पहले पन्ने पर नहीं दिखी। ग्लोबल टाइम्स ने कहा है तो उसके हवाले से खबर छापने में कोई बुराई नहीं है पर तब वाशिंगटन पोस्ट की खबर भी छापनी चाहिये थी और यह चुनाव ही संपादकीय स्वतंत्रता और विवेक कहलाता है।
इसीलिए इंडियन एक्सप्रेस की आज की सेकेंड लीड का शीर्षक है, सेना अपने पूर्व प्रमुख की किताब में लद्दाख की भिड़ंत के विवरण की समीक्षा कर रही है। प्रकाशक से कहा गया है कि वह समीक्षा पूर्ण होने तक किताब का विवरण साझा न करे। खबर के अनुसार, पूर्व सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवाने ने अपने संस्मरण, फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी में 31 अगस्त 2020 को रक्षा मंत्री से हुई अपनी बातचीत का विवरण दिया है। समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने 18 दिसंबर को इसपर खबर चलाई थी उसके बाद ही प्रकाशक से कहा गया है कि वह इसे साझा न करे। संस्मरण में चीन से भिड़ंत के साथ-साथ अग्निपथ योजना की भी चर्चा है। अखबार ने लिखा है कि जनरल नरवाने ने इस खास सवाल का जवाब नहीं दिया कि आधिकारिक अनुमति ली गई थी कि नहीं। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि पुस्तक का लोकार्पण क्या इसी कारण रुका हुआ है। खबर के उपशीर्षक में नरवाने के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने कई महीने पहले पांडुलिपी दी थी। जो भी हो, यह खबरों के चयन का अंतर है।
इंडियन एक्सप्रेस ने आज यह भी बताया है कि कांग्रेस इस बार 255 सीटों पर फोकस करेगी और बाकी पर इंडिया अलायंस के लिए जगह बनाने की अपनी इच्छा का संकेत दिया है इस खबर का उपशीर्षक है, 2019 में पार्टी ने 421 सीटों पर मुकाबला किया था और 52 जीती थी। जाहिर है, यह भी खबर महत्वपूर्ण है और कांग्रेस की भारत न्याय यात्रा की घोषणा कल होने के बावजूद आज उसकी खबर बहुत प्रमुखता से नहीं है।