-जयदत्त शर्मा-
श्वेत पत्र – अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस… पुरुष से सम्बन्धित समस्याओं पर राष्ट्रीय संसद में विचार हो, ऐसी हमारी राष्ट्रीय पुरुष दिवस के उपलक्ष में मांग है। संपूर्ण भारत वर्ष में तथा विश्व में राष्ट्रीय पुरुष दिवस को धूमधाम से मनाने हेतु प्रत्येक पुरुष अपनी मूंछ और दाढ़ी को इस नवंबर माह में खुशी के तौर पर बढ़ाता है। 19 नवंबर सन 1999 में सर्व प्रथम पुरुष दिवस की स्थापना की गई तथा यह लगभग पूरे विश्व में 90 से ज्यादा देशों में धूमधाम से मनाया जाता है तथा धीरे-धीरे और देशों में भी इसका विपणन हो रहा है। गत वर्ष के अनुरूप अभी इस वर्ष भी कई कम्पनियां अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस के उपलक्ष में अपने उत्पादों पर एक विशेष छूट का लाभ दे रही हैं।
हमारी मुख्य मांग है इस वर्ष भारतीय संसद के शीत सत्र के दौरान पुरुषों द्वारा सामान्य जनजीवन में उनके आगे आने वाली विभिन्न परेशानियों पर सिर्फ 1 दिन के लिए चर्चा सुनिश्चित की जाए। पिछले कई वर्षों से यूनाइटेड किंगडम में पुरुषों की समस्याओं को लेकर 1 दिन चर्चा उनके संसद सत्र में जरूर की जाती है। यूके के सांसद श्रीमान फिलिप डेविस जी ने यह मांग उठाई थी तथा इस वर्ष भी पुरुषों के विषय पर चर्चा की गई। चर्चा निम्न दिए गए बिंदुओं पर अपेक्षित है,
- पुरुषों के स्वस्थ व प्रसन्न रहने की मानसिकता।
- पुरुषों में आत्महत्या की दर का प्रति वर्ष बढ़ना।
- पुरुषों का कार्य स्थल पर किसी कार्य को अंजाम देते हुए मृत्यु को प्राप्त हो जाना।
- बलात्कार तथा घरेलू हिंसा के महिला पक्षीय कानून को लिंग तटस्थ बनाकर महिलाओं को भी इसका दोषी ठहराना।
- बाल श्रमिकों में बालकों व बालिकाओं पर होने वाले अत्याचारों की रोकथाम करना।
- जिन पति पत्नी के आपस में मुकदमे बाजी चल रहे हों उसमें बच्चों के पालन पोषण के लिए पति के लिए साझा व्यवस्था करना
- पुरुष की चिकित्सक व शारीरिक-मानसिक उपचार हेतु समुचित योजनाओं का क्रियान्वयन करना।
- पारिवारिक मामलों में महिला एवं पुरुष दोनों को कानूनी रूप से समान अधिकार देना।
- विद्यालयों व पाठशाला में पोरुष से संबंधित पाठ पढ़ाया जाना।
हमें समझना चाहिए कि पुरुष को शामिल करे बगैर सामाजिक व महिलाओं की परेशानियों पर चर्चा व उनका समाधान संभव नहीं है। संपूर्ण भारत में 3 करोड़ से अधिक पुरुषों द्वारा महिलाओं द्वारा प्रदत्त घरेलू हिंसा का सामना किया जाता है। पुरुषों को न तो कानून व्यवस्था से और न ही पुलिस व्यवस्था से किसी भी प्रकार की कोई मदद हासिल हो पाती है। कई सारे पुरुषों को पुलिस और कोर्ट के द्वारा हिरासत में लिया गया हैं अथवा धमकी दी जाती है। उनकी मदद की जानी चाहिए।
अनेक पुरुष जो घरेलू हिंसा के शिकार हैं, अवसाद में आकर कईयों ने आत्महत्या तक कर ली है। हिन्दुस्तान में लगभग 7% शादियां अलगाव की तरफ बढ़ रही हैं या अलगाव हो चुका है। इन अलगाव की वजह से कई सारे पुरुष अपने बच्चों से दूर रह रहे हैं। बच्चों के साथ नहीं मिल पाते हैं।
अगर हम एक अच्छे समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो यह बहुत जरूरी है कि हम सभी बातों पर चर्चा करें, बजाय इसके कि हम सिर्फ महिला की समस्याओं पर केंद्रित रहें और पुरुष की समस्याओं को चर्चा से बाहर कर देते हैं। यह भी नोट किया गया है कि हमारे देश में अमीर और बाहुबली सिर्फ पुरुष हैं किंतु यह ताकत 99% साधारण पुरुषों को नहीं दी गई है।
हर साल लगभग एक लाख पुरुष और लड़के आत्महत्या करते हैं और इसमें से लगभग 65000 विवाहित पुरुष होते हैं। बहुत सारी हेल्पलाइन इन आत्महत्याओं को रोकने में नाकाम साबित हुई हैं। पारिवारिक कारण और घरेलू हिंसा विशेष से लगभग 22000 पुरुषों की आत्महत्या हिन्दुस्तान में हर साल होती है।
पुरुष अपनी नौकरी से निकाले जा रहे हैं। कई सारे पुरुष अपनी समस्याओं को समाज में खुलकर नहीं कह पाते क्योंकि समाज में पुरुषों के लिए सुनने वाले बहुत कम लोग हैं। ज्यादातर पुरुष आज के समय में वैवाहिक परेशानियों से घिरे हुए हैं उनके ऊपर झूठे इल्जाम लगाए जाते हैं और डरे हुए भी हैं क्योंकि झूठे केस उनके ऊपर किए जाते हैं।
पब्लिक तथा प्राइवेट कंपनियों को अब यह सोचना चाहिए कि वह थोड़ा पुरुष के अधिकारों के बारे में भी सोचे और उसे बेहतर करने की कोशिश करें।
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 7% से 9% पुरुष जो पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर में काम करते हैं वह वैवाहिक और फैमिली की परेशानियों से जुड़े हुए हैं। अगर इन पुरुषों की मदद की जाएगी तो इससे पुरुष आत्महत्या रुक सकती है। और हमारे समाज को भी मजबूती मिलेगी।
पुरुषों के लिए प्रमुख चुनौतियां-
- कोविड-19 महामारी की वजह से पुरुषों के ऊपर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है।
- हिंदुस्तान में कुल आत्महत्या में से लगभग 70% पुरुष आत्महत्या है।
- हिंदुस्तान में लंबे समय से लॉक डाउन होने के कारण हजारों पुरुष घरेलू हिंसा के शिकार हुए हैं। और घरों में बंद होने के कारण उनके पास किसी भी तरीके का कोई विकल्प नहीं बचा ताकि वे किसी होटल में जा सके अथवा पेइंग गेस्ट के रुप में अपनी जिंदगी व्यतीत कर सकें।
- इस महामारी की वजह से लाखों पुरुषों ने अपनी नौकरी खो दी है।
- तलाकशुदा अथवा अपनी पत्नी से अलग रह रहे लाखों पुरुष इस महामारी की वजह से अपने बच्चों से नहीं मिल सके हैं। जबकि उनके पास कोर्ट के आदेश भी हैं अपने बच्चों से मिलने के लिए। और यह बहुत ही दुख भरी स्थिति है उन बच्चों के लिए भी जो अपने पिता से अलग हैं। और वजह उनकी मां है जो उन्हें अपने पिता से अलग कर रही हैं।
- हिंदुस्तान में झूठे घरेलू हिंसा की एवं झूठे बलात्कार के केसों की धमकियां पुरुषों की आत्महत्या को और अधिक बढ़ावा दे रही हैं। इसका सबसे दुखद पहलू यह भी है कई सारे पुरुष फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर आत्महत्या करने से पहले अपने वीडियो और अपने स्टेटमेंट को रिकॉर्ड कर रहे हैं।
Jaidutt Sharma
[email protected]
+91 7386 077 376