संजय कुमार सिंह
नवोदय टाइम्स में आज तिरुचिरापल्ली डेटलाइन से एजेंसी की खबर का शीर्षक है, भारतीय युवा एक नई दुनिया बना रहे हैं। खबर के अनुसार प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय वैज्ञानिक चंद्रयान जैसे अभियानों के माध्यम से दुनिया के नक्शे पर पहुंच चुके हैं। भारत के मानविकी क्षेत्र के विद्वान दुनिया के सामने भारत की कहानी को ऐसे प्रदर्शित कर रहे हैं जैसा पहले कभी नहीं हुआ। इसके साथ एक और खबर है, क्या कोई दिल्ली जाने का इच्छुक है? इसमें बताया गया है कि दो छात्राओं ने हाथ उठाया और मुस्कुराकर अपना जवाब दिया। मुझे लगता है कि यह आधी अधूरी खबर है और कोई खबर देने की बजाय यह बताती है कि प्रधानमंत्री ने क्या किया। इसमें शीर्षक ही खबर है। भारतीय युवाओं के संबंध में प्रधानमंत्री का ऐसा कहना और उसका दूर दिल्ली के अखबार में शीर्षक बनना बताता है कि प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र बनारस में उनके करीबी युवाओं पर जो करने का आरोप है उसपर से देश का ध्यान हटाया जाये।
आप जानते हैं कि बलात्कार के मामले में पहचान होने के बावजूद उन्हें 60 दिन बाद गिरफ्तार किया गया है। अमूमन अभियुक्त जहां कहीं रहता है पुलिस उसकी खबर लेती है और उनपर अपराध और अपराधी के सहयोग का मामला बनता। इस मामले में यह सब बताने की बजाय अखबार प्रधानमंत्री का बयान छापें तो उसे रेखांकित करना बनता है। खासकर तब जब इंडियन एक्सप्रेस ने आज अपनी खबर से बताया है कि बनारस में गिरफ्तार अभिुक्तों ने पहले भी कैम्पस में छेड़छाड़ और दूसरी शैतानियां की हैं। तीन अन्य मामलों में शामिल रहे हैं और इतना ही नहीं, रात 11 बजे से आधी रात के बाद एक बजे तक उनका लोकेशन कैम्पस में पाया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि कैम्पस में छेड़छाड़ की कम से कम तीन घटनाओं के बावजूद बाहरी तत्व अगर आधी रात के बाद भी रह सकते थे तो यह परिसर की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल है जो अखबारों के लिए मुद्दा ही नहीं है। और तिरुचिरापल्ली की खबर दिल्ली में पहले पन्ने पर छप रही है। यह खबर दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं दिखी।
आईटी सेल के इन युवाओं और देश भर इनके प्रभाव के बारे में कब बोलेंगे प्रधानमंत्री
पहले पन्ने पर युवाओं से संबंधित जो खबरें दिखीं उनमें एक टाइम्स ऑफ इंडिया में सिंगल कॉलम की है। इसके अनुसार उत्तर प्रदेश में एक पिता ने 19 साल की अपनी बेटी और उसके 20 साल के पुरुष मित्र की हत्या कर दी। वे इनके संबंधों के खिलाफ थे जबकि दोनों पड़ोसी थे और एक ही समुदाय के थे। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ नारे के 10 साल बाद पहलवानों की शिकायत पर भाजपा सांसद के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई और समाज का यह हाल है तो खबर क्या है? जो प्रधानमंत्री अपनी पीठ खुद थपथापने के लिए बोलते हैं या वास्तविकता? दूसरे अखबारों से पहले नवोदय टाइम्स की ही बात करूं तो भारतीय युवा पर प्रधानमंत्री की खबर के बराबर में छपी खबर का शीर्षक है, सिपाही ने महिला से दुष्कर्म के बाद फंदे पर लटकाया। खबर के अनुसार 27 साल के पुलिस कांस्टेबल को 25 साल की महिला की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया है। वह उसके किराये के कमरे में लटकी मिली है।
युवा चालकों के लिए देश में नये बने कानून के बारे में आप जानते ही हैं। भले ही ट्रक चालकों के विरोध के बाद इसे लागू करना टाल दिया गया है लेकिन इससे फिर पता चला कि सरकार कैसे काम करती है और कैसे कानून बनाती है। यही नहीं, इससे यह भी पता चला कि ट्रक चालकों को वेतन कितना कम मिलता है। उनका कोई संगठन नहीं है, दुर्घटना सड़कों की खराब हालत के कारण भी होती है और ड्राइवर भागते हैं क्योंकि उन्हें लिन्च कर दिये जाने का डर रहता है। नए कानून में इससे सुरक्षा नहीं है और नए कानून के बाद अगर वे निकटम थाने में समर्पण कर भी दें तो क्या गारंटी है कि पुलिस उन्हें फरारी के बाद गिरफ्तार नहीं दिखायेगी और ऐसा नहीं करने के लिए उनसे वसूली नहीं होगी। वैसे भी ऐसे और इस कानून की मांग कहां थी। पर सरकार ने यह सब किया, कार्यकाल के अंत में किया चुनाव से ठीक पहले किया तो आज सरकार से सवाल का दिन था या प्रचार का?
अखबार सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए प्रचार का काम ही कर रहे हैं। अमर उजाला में आज पहले पन्ने पर खबर है, दयानिधि ने अभद्र टिप्पणी पर माफी मांगी। आपको शायद पता हो, मारन के वर्षों पुराने एक बयान के लिए हाल में उनकी आलोचना होने लगी और “कांग्रेस चुप क्यों है” का गंभीर सवाल भी उठाया जाने लगा था। आप जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी ने दस साल में एक प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है, सवालों के जबाब नहीं देते हैं, मन की बात करते हैं, मीडिया उनसे सवाल नहीं करता है, मणिपुर पर वे महीनों चुप रहे, लेकिन कांग्रेस चुप क्यों है, यह सवाल अक्सर उठता है। हाल में एक राज्य सभा सदस्य के ठिकानों से 350 करोड़ रुपए मिलने पर भी उठा था। अब मामला शांत है। कोई नहीं पूछ रहा कि उस बरामदगी के लिए किसके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई या क्या पता चला। आईटी सेल नए मुद्दे बना देता है और दयानिधि मारन के साथ यही किया गया।
जबाव में उन्होंने तमिल कहावत का जिक्र किया (जिसका अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद किया गया होगा)। इसके अनुसार, “जब नाई के पास काम नहीं होता तो वह बिल्ली का सिर मुंडवा देता है। इसी तरह, भाजपा की आईटी सेल शाखा के पास करने के लिए कुछ भी उपयोगी नहीं है और इसलिए वह मेरे पुराने वीडियो फैला रहा है।” मुझे लगता है कि यह आईटी सेल पर आरोप है। इसका नाई के काम या नाई समाज से कोई संबंध नहीं है और मारन ने ऐसा पुराने वीडियो फिर से फैलाने के संदर्भ में कहावत के हवाले से कहा है। फिर भी दयानिधि मारन के इस बयान पर भाजपा ने निशाना साध लिया और मीडिया ने खबर बना ली। भाजपा ने कहा कि मारन ने नाई समाज का अपमान किया है। ऐसे में माफी मांगने का कोई विकल्प हो नहीं सकता और वह पहले पन्ने की खबर भी है। यह बताये बिना कि मारन को उनके पुराने बयान के लिए लपेट लिया गया था क्योंकि इस समय वे इंडिया गठबंधन के साथ है। इसीलिए पुराने वीडियो से संबंधित खबरों में भी यह नहीं होता था कि बयान पुराना है और मारन ने जब खुद बताया तो इसे नाई समाज के अपमान से जोड़ दिया गया। एबीपी लाइव का एक शीर्षक है, दयानिधि मारन के विवादित बयान से सवालों में इंडिया गठबंधन, राजद और जेडीयू ने काटा बवाल, भाजपा ने पूछा- कांग्रेस चुप क्यों?
मतलब साफ है, एक पुराने बयान पर बिहार में सक्रिय दो बड़ी पार्टियां बवाल काट ही चुकी हैं तो कांग्रेस के लिए बोलना क्यों जरूरी है? पर खबर और शीर्षक का क्या कर सकते हैं – मीडिया आजाद है। संपादकों का अपना विवेक है और उन्हें अपने अंदाज में देश भक्ति या नौकरी करने का अधिकार है। इसी अधिकार का उपयोग करते हुए आज किसी भी अखबार ने सरकार के आश्वासन पर ट्रक चालकों का विरोध खत्म होने की खबर के साथ यह नहीं बताया है कि राहुल गांधी ने इस मामले में सरकार का विरोध किया या चालकों का समर्थन किया। द हिन्दू और नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर मूल खबर के साथ एक खबर है जिसका शीर्षक है, सलाह मश्विरे के बिना कानून बनाने के लिए राहुल गांधी ने सरकार की आलोचना की। मुझे लगता है कि राहुल की बात में दम है और सरकार के जिस आश्वासन पर ट्रक चालकों का प्रदर्शन वापस लिया गया है उसी से पता चलता है कि यह कानून बगैर सलाह मश्विरा के पास हुआ था। मुझे लगता है इस बार चुनाव के कारण सरकार ने जल्दी हार मान ली वरना 700 से ज्यादा किसानों की मौत के बाद प्रधानमंत्री को अहसास हुआ था कि उनकी तपस्या में कमी रह गई होगी। गलती एक बार हो सकती है। बार-बार हो तो गलती नहीं है। और उसका विरोध नहीं छापना पत्रकारिता नहीं है। खासकर तब जब सरकार और उसके समर्थकों ने यह हालत बना दी है कि विरोध करने की हिम्मत भी कम ही लोग कर पाते हैं। पहले तो सीडी ही आती थी अब तो पेगासस भी है।