सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से स्पष्ट कर दिया है कि खोजी पत्रकार उमेश कुमार के खिलाफ मुकदमें उत्तराखंड में ही चलेंगे. उमेश कुमार की इस बाबत दायर याचिका खारिज हो गई है.
सीएम त्रिवेंद्र रावत के इर्द-गिर्द बने करप्शन घेरे का स्टिंग करने-कराने के दौरान उमेश कुमार के खिलाफ उत्तराखंड सरकार आक्रामक हो गई. उमेश को जबरन कई केसेज में डालकर अरेस्ट किया गया और देहरादून व रांची की जेलों में रखा गया. जेल से छूटकर निकले उमेश ने सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेते हुए त्रिवेंद्र रावत सरकार को बैकफुट पर ला दिया था.
इसी प्रक्रिया में उन्होंने उत्तराखंड सरकार द्वारा लादे गए सभी केसेज की सुनवाई उत्तराखंड से बाहर कराने के लिए एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगवा दी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका रद्द करते हुए सभी केस उत्तराखंड में ही चलाए जाने के आदेश दिए.
उधर, उत्तराखंड सरकार के समर्थक लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने केस ट्रांसफर याचिका की सुनवाई के दौरान जो शुरुआत में स्टे दे दिया था उससे उत्तराखंड सरकार के हाथ पांव बंध गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने तब अपने आदेश में कहा था कि जब तक केस ट्रांसफर याचिका की सुनवाई नहीं हो जाएगी तब तक उमेश कुमार पर उत्तराखंड सरकार और प्रशासन की तरफ से किसी प्रकार की कोई भी कार्यवाही किसी भी मुक़दमे से संबंधित नहीं की जाएगी. यह आदेश उमेश पक्ष के लिए संजीवनी का काम कर गया.
बाद में उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने सरकारी व प्राइवेट अधिवक्ताओं के साथ मामले को ख़ारिज करवाने की मज़बूती से कवायद शुरू कर दी. इसी मामले में शिकायतकर्ता पत्रकार पंडित आयुष के वक़ील अरविंद शुक्ला ने बताया कि बेहद चालाकी से उमेश कुमार पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर पेटिशन दायर कर सिर्फ़ उन्हीं लोगों को नोटिस दिया जो कि मुल्ज़िम पक्ष थे यानी सह अभियुक्त थे. उनके क्लाइंट और मामले के कम्प्लेंटेंट पंडित आयुष को इस मामले में कोर्ट में कुछ भी कहने का मौक़ा नहीं मिला. मामले की गंभीरता देख वादी के वक़ील अरविंद शुक्ला ने इंटरवेनशन नोटिस भी दाख़िल किया और अदालत से गुज़ारिश की कि वादी को भी इस मामले में अपना पक्ष रखने की इजाज़त दी जाए जिसे कोर्ट ने स्वीकार किया.
तक़रीबन 4-5 सुनवाईयों में दोनों तरफ़ से वकीलों ने जमकर बहस की. उत्तराखंड राज्य की ओर से जेएस रावत, कुलदीप परिहार व अन्य अधिवक्ता निरंतर भिड़े रहे. उमेश कुमार की ओर से कपिल सिब्बल ने बहस की. पत्रकार आयुष के वकील ने कोर्ट को समझाया कि क्यों मुक़दमे की सुनवाई उत्तराखंड में ही होनी चाहिए, न कि दिल्ली NCR में.
वकीलों ने यह भी बताया कि पूर्व में उमेश कुमार के ऊपर दर्ज कई मुक़दमों को उत्तराखंड सरकार ने वापस लिया, ऐसे में यह कहना कि उत्तराखंड में फ़ेयर ट्रायल नहीं हो पाएगा, यह पूरी तरह से ग़लत होगा. दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने केस ट्रांसफर याचिका को डिस्मिस कर दिया.
इस बाबत याचिकाकर्ता उमेश कुमार का कहना है-
पिछले साल अक्टूबर में मैं सुप्रीम कोर्ट गया था. मेरे वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच में ये तर्क रखा कि हमारे खिलाफ जो मुकदमे हैं उनका जो ट्रायल है उसकी सुनवाई राज्य के बाहर होनी चाहिए क्योंकि हमें उत्तराखण्ड सरकार और पुलिस पर भरोसा नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत में सभी तीनों मामलों की सुनवाई पर रोक लगा दी थी। एक साल तक लगातार सुनवाई चलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा कि याचिकाकर्ता ने न्यायालय पर नहीं पुलिस पर संदेह जताया है। तीन में से दो मामलों में चार्जशीट आ गई है तो पुलिस का रोल बहुत ही लिमिटेड रह गया है इसलिए किसी अन्य राज्य में सुनवाई के लिए ट्रांसफर करने का कोई औचित्य नहीं बनता। ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी।
उमेश कुमार कहते हैं-
खास बात ये है कि उत्तराखण्ड राज्य का गठन होने के बाद पिछले 20 साल में पहली बार उत्तराखंड सरकार ने मुकुल रोहतगी जैसे देश के वरिष्ठ वकील को हायर किया। गंभीरता से देखें तो आज तक कभी उत्तराखंड सरकार ने किसी भी केस रामपुर तिराहा कांड हो या कोई अन्य, किसी की भी सीबीआई जांच या किसी अन्य मामले के लिए किसी बड़े वकील को हायर करने की जहमत नहीं उठाई। इससे सरकार का बदरंग चेहरा दिखता है। सरकार अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए किस स्तर तक लड़ाई लड़ रही है। इससे ये साफ हो जाता है। मुझे न्यायालय पर पूरा भरोसा है। सत्य की जीत होगी। ट्रायल चलेगा। पुलिस किसी भी प्रकार का कोई भी षड़यंत्र करने में लगी रहेगी लेकिन मेरी लड़ाई न्यायालय के जरिए जारी रहेगी।