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सुख-दुख

जस्टिस सच्चर साहब को पहली पुण्यतिथि पर याद किया गया

जस्टिस सच्चर की पहली पुण्यतिथि पर कल 20 अप्रैल को दिल्ली में सोशलिस्ट पार्टी की युवा इकाई सोशलिस्ट युवजन सभा व पी. यू. सी. एल के संयुक्त तत्वावधान में जस्टिस सच्चर के व्यक्तित्व के विविध पहलुओं पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता जस्टिस जसपाल सिंह (पूर्व न्यायधीश दिल्ली हाई कोर्ट) ने की। इस अवसर पर वक्ताओं में एनडी पंचोली (उपाध्यक्ष पीयूसीएल), अनिल नौरिया (अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट) डॉ. हरीश खन्ना (पूर्व प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय), मंजु मोहन (महासचिव सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), अशोक अरोडा(अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट), डॉ. सलीम मोहम्मद इंजिनियर (महासचिव लोकतंत्र और सांप्रदायिक सद्भाव मंच) थे।

संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जसपाल सिंह ने जस्टिस सच्चर को याद करते हुए कहा कि वे उनके जीवन का सबसे बड़ा सरमाया हैं, पूंजी हैं। उन्होंने जस्टिस सच्चर को अपने अभिभावक के रूप में याद करते हुए श्रद्धांजलि दी। उन्होंने अपने ख़ास अंदाज़ में कहा कि सच्चर साहब पक्के समाजवादी थे लेकिन मैं उन्हें अपने जीवन की पूँजी मानने के चलते पूंजीवादी हूँ! .उन्होंने आगे कहा कि वे बहती धारा के साथ बहने वाले व्यक्ति नहीं थे। मानवाधिकारों व संवैधानिक मूल्यों की स्थापना हेतु व लोकतंत्र की रक्षा के लिए धारा के विपरीत जाकर लडने वाली शख्सियत थे। साथ ही वे एक मुहब्बती इंसान थे जो मेरे जैसे न्याय व्यवस्था के अधीनस्थ स्तर पर काम करने वाले व्यक्ति के साथ भी बराबर का बर्ताव करते थे।

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वरिष्ठ वकील अनील नौरिया ने जस्टिस सच्चर के व्यक्तित्व के आंदोलनकारी पहलू पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सच्चर साहब पर स्वाधीनता आंदोलन के समय से ही समाजवादी आंदोलन का गहरा प्रभाव था। लोहिया, जिन्होंने नागरिक अधिकारों की पुरजोर वकालत की, के प्रभाव स्वरुप वे आजीवन नागरिक अधिकारों व व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत रहे। आपातकाल के दौरान वे जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित पी. यू. सी. एल से जुड़े व लोकतांत्रिक व संवैधानिक मानवाधिकारों के लिए संघर्ष किया। वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली ने जस्टिस सच्चर को याद करते हुए कहा कि ये समाजवादी आंदोलन से विरासत में मिली प्रतिबद्धता व प्रशिक्षण ही था कि सच्चर साहब न्यायधीश के पद पर रहते हुए भी १९८४ के दंगों व १९८७ के मेरठ दंगों में, हाशिमपुरा नरसंहार में सेहत खराब होने के बावजूद लोगों के बीच गए व कई दिनों तक जनसुनवाई करके सबूत एकत्र किए जिन के आधार पर बाद में मुकदमा चला। साथ ही जज रहते उन्होंने यह भी आदेश दिया कि १९८४ दंगों की वो सारी एफ.आई.आर दर्ज हों जो उस दौरान नहीं की गई थी।

कुर्बान अली ने कहा कि संघ की मुस्लिम तुष्टिकरण की अफवाह की पोल पहली बार सच्चर कमेटी की रिपोर्ट सामने आने से ही खुली जिससे इस देश के मुस्लिमों की वास्तविक सामाजिक, आर्थिक स्थिति सामने आयी। इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के वकील अशोक अरोड़ा ने जस्टिस सच्चर को याद करते हुए कहा कि उनका जीवन एक उत्सव की तरह रहा है। उनसे हमें प्रेरणा लेनी चाहिए सच्चर साहब सामाजिक क्रांति की बात करते थे जिसके विषय में वे कहते थे कि सामाजिक क्रांति व बदलाव कोर्ट कचहरी या वकीलों से नही आना है वह व्यक्ति के सोशल होने से आएगा। उन्होंने कहा कि जस्टिस सच्चर के भीतर एक मां का प्यार बसता था जो हम सबको मिलाता था। डॉ. सलीम इंजीनियर ने कहा कि उनके दरवाज़े हर शख्स के लिए हमेशा खुले थे। हम कई बार बिना सूचना के उनसे मिलने चले जाते थे। अगर वे सो भी रहे हों तब भी अवाज सुन कर उठ जाते थे. मुझे उनसे इंसानियत और इंसानी हकों के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला। इस अवसर पर पीयूसीएल के उपाध्यक्ष एनडी पंचोली ने जस्टिस सच्चर को याद करते हुए कहा कि सच्चर साहब को याद करते हुए हमें वे मूल्य याद आते हैं जो स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई के दौरान सामने आए थे। स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व के मूल्य जिनके लिए सच्चर साहब आजीवन लड़ते रहे।

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डॉ. हरीश खन्ना ने कहा कि वे हम दिल्ली के समाजवादियों के लिए प्रेरणा स्रोत थे। वे अत्यधिक उम्र हो जाने के बावजूद धुप-बारिश की परवाह न करते हुए सडकों पर होने वाले धरने प्रदर्शनों में शामिल होते थे। मंजु मोहन ने कहा कि सच्चर साहब हमारे घर के सदस्य की ताराग थे। संगोष्ठी का संचालन कर रहे योगेश पासवान ने इस अवसर पर जस्टिस सच्चर को याद करते हुए कहा कि उनका जीवन देश व समाज के प्रति समर्पण भाव से परिपूर्ण था। कर्तव्यनिष्ठा व सोद्देश्यता उनके व्यक्तित्व व जीवन के बड़े गुण हैं। जिनसे प्रेरणा ग्रहण कर हमें अपना जीवन बेहतर समाज निर्माण व देश को संवारने में देना चाहिए व जस्टिस सच्चर की राह का अनुसरण करना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार चरण सिंह ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि यह तथ्य भी ध्यान में रखना चाहिए कि सच्चर साहब ने 2011 में अन्य कई वरिष्ठ और युवा समाजवादियों के साथ मिल कर सोशलिस्ट पार्टी को फिर से खड़ा किया था, डॉ. प्रेम सिंह जिसके अध्यक्ष हैं। यह दुःख की बात है कि उन्हें समाजवादी बताते हुए यह तथ्य छोपा लिया जाता है। न समाजवादी और न ही अल्पसंख्यक, खास कर मुसलमान, जिनके जीवन स्तर पर सच्चर कमिटी रिपोर्ट उन्होंने पेश की, उनकी पार्टी से जुड़े।

इस अवसर पर सभागार में कई विद्वतजन व सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे थॉमस मैथ्यू, नरेंद्र सिंह, अश्विनी कुमार (सुकरात), जस्टिस सच्चर के परिवार से उनकी बेटी माधवी व बड़ी संख्या में नौजवान व विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी इस अवसर पर मौजूद रहे।

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आकाशदीप

एसवाईएस

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