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सुख-दुख

‘ऐसे अनपढ़ आदमी को किसने हाईकोर्ट का जज बना दिया’

मार्कण्डेय काटजू-

हिंदी से संबंधित एक घटना… मुझे 1991 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और उसके कुछ महीने बाद यह घटना हुई।

मेरे अच्छे दोस्त नीलकांत, एक हिंदी लेखक और इलाहाबाद (मेरे पैतृक शहर) के आलोचक हैं। एक दिन वह मुझसे मिलने मेरे घर आये। उन्होंने हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक राहुल सांस्कृत्यायन पर एक पुस्तक लिखी थी और वे चाहते थे कि हिन्दुस्तानी अकादमी, इलाहाबाद में उसके विमोचन के लिए होने वाले समारोह में मैं मुख्य अतिथि के रूप में आऊँ। जब तक मैं सिटिंग जज था तब तक मैं आम तौर पर किसी भी समारोह में जाने से परहेज करता था, लेकिन चूंकि नीलकांत अच्छे और प्यारे इंसान थे इसलिए मैं सहमत हो गया।

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जब मैं कार्यक्रम स्थल पर पहुँचा तो लगभग 200 व्यक्तियों या उससे अधिक (हिंदुस्तानी अकादमी हॉल की क्षमता) की भारी भीड़ दर्शक के रूप में इकट्ठी थी। उनमें से कई साहित्यकार थे जो खुद को महान लेखक मानते थे। कई वक्ताओं ने आधुनिक हिंदी साहित्य की प्रशंसा की, और फिर मेरी बारी आई।

मैं उठा और कहा कि मुझे खेद है लेकिन मैं उन अधिकांश वक्ताओं से सहमत नहीं हो सका जो मुझसे पहले बोल चुके थे। जहाँ सूर, तुलसी, कबीर आदि नि:संदेह महान थे, वहीं आधुनिक हिंदी साहित्य, प्रेमचंद जैसे कुछ दुर्लभ अपवादों को छोड़कर, ‘दरिद्र’ और ‘घटिया’ (अर्थात् निम्न स्तर का) था, जिसका विश्व साहित्य में कोई स्थान नहीं है।

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मैंने यह भी कहा कि आधुनिक हिंदी कविता में कोई ‘दम’ नहीं है, और उर्दू शायरी का कोई मुकाबला नहीं है। मैंने बिस्मिल की उर्दू कविता ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ का उदाहरण दिया, जिसमें बड़ी ताकत थी, और भारत के स्वतंत्रता संग्राम का युद्ध गान बन गया। अगर इसे हिंदी में अनूदित किया जाए तो यह ‘मस्तिष्क कटवाणे की मनोकामना अब हमारे हृदय में है’ बन जाता है, जिसमें ‘दम’ नहीं हैं । इसी तरह, फैज़ की उर्दू कविता ‘बोल की लब आज़ाद हैं तेरे, बोल जुबान अब तक तेरी है’ हिंदी में ‘उच्चारण करो कि ओठ स्वतंत्र हैं तुम्हारे, उच्चारण करो कि जिह्वा अभी भी तुम्हारी है’ बन जाएगी। मैंने ऐसे कुछ और उदाहरण दिए।

पहले तो दर्शक स्तब्ध रह गए, लेकिन जैसे जैसे मेरा बोलना आगे बढ़ रहा था, धीरे-धीरे हंगामा शुरू हो गया, जो जल्द ही चरम पर पहुंच गया। श्रोताओं में से लोग चिल्लाने लगे ”ऐसे अनपढ़ आदमी को किसने जज बना दिया”, ”आप यहां क्यों आए? ”, आदि।

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मैंने शांत भाव से उत्तर दिया कि मैं इसलिए आया हूं क्योंकि मुझे नीलकांत ने आमंत्रित किया था जिनकी पुस्तक का विमोचन हो रहा था, लेकिन कोई मेरी बात सुनने को तैयार नहीं था और जल्द ही गालियों और अपशब्दों की झड़ी लग गई।

जब यह मेरी सहनशक्ति की सीमा पार कर गया तो मैंने कहा ”तुम गुंडों के झुंड हो” और आवेश में हॉल से निकल गया।

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अगले दिन कई अख़बारों ने इस घटना का विवरण प्रकाशित किया, जिसमें मेरा यह बयान भी शामिल था कि भीड़ में गुंडों का एक समूह शामिल था। परिणाम यह हुआ, जैसा कि नीलकांत ने बाद में मुझे बताया, नीलकांत की किताब की भारी मांग थी, और पहला प्रिंट जल्द ही बिक गया, और दूसरे संस्करण की मांग थी (जो, मुझे बाद में बताया गया, वह भी बिक गया)

कुछ दिन बाद नीलकांत मेरे घर आये, और भीड़ के दुर्व्यवहार के लिए दरियादिली से माफ़ी मांगी। मैंने कहा कि चिंता मत करो। उन्हें अब आधुनिक हिंदी साहित्य पर एक और पुस्तक लिखनी चाहिए, और मुझे फिर से विमोचन के लिए आमंत्रित करना चाहिए, जहाँ मैं फिर से आधुनिक हिंदी साहित्य की जमके आलोचना करूँगा, और इससे उनकी पुस्तक की एक और बड़ी बिक्री सुनिश्चित होगी!

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An incident relating to Hindi. I had been appointed a Judge of the Allahabad High Court in 1991, and this incident happened a few months thereafter.

My good friend Neelkant, is a Hindi writer and critic of Allahabad ( my native town ). One day he came to meet me at my residence. He had written a book on the famous Hindi writer Rahul Sanskritayan , and he wanted me to come as Chief Guest at a function at the Hindustani Academy, Allahabad for its release. I normally avoided going to functions as long as I was a sitting Judge, but since Neelkant was such a fine and loveable person I agreed.
When I reached the venue there was a huge crowd of about 200 persons or more, ( the capacity of Hindustani Academy hall ) assembled in the audience, many of them literary figures who regarded themselves great writers.. Several speakers spoke, praising modern Hindi literature,and then came my turn.

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I got up and said that I was sorry but I could not agree with most of the speakers who had spoken before me. While Sur, Tulsi, Kabir, etc were no doubt great, modern Hindi literature, with a few rare exceptions like Premchand, was ‘ daridra ‘ and ‘ ghatiya ‘ ( i.e. of a low level ) it has no place in world literature, etc.
I also said that modern Hindi poetry had no ‘ dum ‘ in it, and was no match to Urdu poetry. I gave the example of Bismil’s Urdu verse ‘sarfaroshi ki tamanna ab hamaare dil mein hai ‘, which had great power, and became the battle anthem of India’s freedom struggle. If this is translated into Hindi it becomes ”Mastishk katwaane ki manokaamna ab hamaare hriday mein hai’, which has no ”dum’ in it. Similarly, Faiz’ Urdu verse ‘ Bol ki lab azaad hain tere, bol zubaan ab tak teri hai’ would become in Hindi ‘Uchchaaran karo ki onth swatantra hain tumhaare, uchchaaran karo ki jihva abhi bhi tumhaari hai ‘. I gave some other such examples. .

At first the audience was stunned, but gradually as I was speaking an uproar began, which soon reached a crescendo. People in the audience started shouting ” Aise anpadh admi ko kisne judge bana diya ” ( who appointed such an illiterate person as a judge ), ” aap yahan kyon aaye ? ” ( why did you come here ? ), etc.

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I coolly replied that I had come because I had been invited by Neelkant whose book was being released, but no one was prepared to listen to me, and a barrage of abuses, invectives and vituperations were soon hurled on me.

When this crossed the limits of my endurance I said ” You are a bunch of goondas ” and left the hall in a huff.

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Next day many newspapers published accounts of this incident, including my statement that the crowd consisted of a bunch of goondas. The result was, as Neelkant later told me, that there was a huge demand for his book, and the first print was soon sold out, and there was a demand for a second edition ( which, I was later told, was also sold out )
A few days later Neelkant came to my house and apologized profusely for the misbehaviour of the crowd. I told him not to worry. He should now write another book on modern Hindi literature, and invite me again for the release, where I would again lambast modern Hindi literature, and this would ensure another huge sale of his book !

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34 Comments

34 Comments

  1. Dr. Taruna S Gaur

    May 13, 2023 at 5:18 pm

    मस्तिष्क कटवाने नहीं जज साहब
    मस्तक सही शब्द है…….लेकिन मुझे तो रश्मिरथी के शब्द अद्भुत उर्जावान लगे …… आपके जितना साहित्य तो मैंने पढ़ा भी नहीं है जज साहब… बात अपनी सोच की है ….तो क्या आपने किताब फेमस करने के लिए विवाद उत्पन्न किया था….?

    • Ajay

      May 14, 2023 at 9:46 pm

      विचलित मन कसक रहा, चाहे मातृभूमि के लिए आत्म बलिदान!
      अब देखें भुजाएँ संहारक की कितनी है सामर्थ्यवान!

  2. द्वारकादास एस.लड्डा

    May 13, 2023 at 7:47 pm

    लेखन का शीर्ष “ऐसे अनपढ आदमी को किसने जज बना दिया” बहुत ही गलत और शर्मनाक हैं। वास्तविकता में शीर्ष के संबंध में जो भी लीखा है,उसका शीर्ष (Title) से कोई संबंध नहीं है।हमे हमारी न्याय व्यवस्था एवंम न्यायाधिश पर टिप्पनी करना अथवा उनके न्यायप्रविणता पर मत प्रदर्शन करना याने हमारे संविधान के ढाँचे और प्रणाली का अनुकरन करते हुए जजोंकी नियुक्ती पर संदेह करने से जादा अपने स्वयं के साथ पुरे देशवासीयों के निंदा,अपमान है।किसी व्यक्ती के बारे में अपनी निजी राय या अनुभव से गलत टिप्पनी करना भी भारतीय संस्कृती की छवी को कम करने की कोशिश प्रशंसनीय नहीं होगी।

    • Om Prakash Dhusia

      May 14, 2023 at 7:53 am

      अरे भाई, कैसी हिन्दी लिखते हो: ‘लीखा, हमे, न्यायधिश, टिप्पनी, न्यायप्रविणता, याने, अनुकरन, नियुक्ती, जादा, पुरे, देशवासीयों, व्यक्ती, संस्कृती, छवी। क्या थोड़ी सी भी लज्जा नहीं है?

    • Ajay

      May 14, 2023 at 9:21 pm

      ऐसे अनपढ़ आदमी को किसने टीकाकार बना दिया?

    • विनय कुमार श्रीवास्तव

      May 15, 2023 at 7:41 am

      जिस व्यक्ति को अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व नहीं वो व्यक्ति कितने ही उच्च पद प्राप्त कर ले वो सम्मान कभी नहीं प्राप्त कर सकता है |

  3. Balram

    May 13, 2023 at 7:47 pm

    Baat to sahi tha iss gadhe ne na jaane kitna galat decision diya hoga…Pake hue gdhe hai…

    • Sheshnath

      May 14, 2023 at 7:28 pm

      Ye jug mansik roop se vichhipt hai…. Ye pata nahi kitane galat nirnay diya hoga ye hindu aur hindi dono se nafarat karata hai

  4. Ram Dass Gupta

    May 13, 2023 at 7:53 pm

    यह उसी तरह है जैसे तमाम लोग कालिदास की तुलना सेक्सपीयर से करते हैं. अरे भाई कालिदास पहले हुए तो सेक्सपीयर की तुलना कालिदास से करनी चाहिए. उलटा इसलिए हो रहा है क्योंकि कुछ लोगों को हमारी संस्कृति, हमारी भाषा से दिक्क़त है. हर भाषा अच्छी है. उर्दू कविता का अनुवाद हिंदी में क्यों किया, इसलिए क्यों कि हिंदी भाषा की कविता याद नहीं आई होगी. पर किसी भाषा की बुराई करना अनुचित है.

  5. कमल सैनी

    May 13, 2023 at 11:20 pm

    बहुत बढ़िया,

    चलिए अब इन पंक्तियों का उर्दू अनूवाद करिए…

    मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
    प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला।

    Attention Seeker = नामका भूखा?

  6. Raj Kishore

    May 14, 2023 at 4:39 am

    चाह नहीं मैं सुरबाला के
    गहनों में गूँथा जाऊँ,

    चाह नहीं, प्रेमी-माला में
    बिंध प्यारी को ललचाऊँ,

    चाह नहीं, सम्राटों के शव
    पर हे हरि, डाला जाऊँ,

    चाह नहीं, देवों के सिर पर
    चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।

    मुझे तोड़ लेना वनमाली!
    उस पथ पर देना तुम फेंक,

    मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
    जिस पथ जावें वीर अनेक

  7. पन्नालाल गोयल

    May 14, 2023 at 10:05 am

    ये तो सुप्रीम कोर्ट के जज थे !! जस्टिस मार्तंड काटजू जी !!

  8. शुभ्रांशु

    May 14, 2023 at 11:15 am

    महोदय,
    कभी मौलिक हिंदी साहित्य पढ़ा है आपने? या सिर्फ अनुवाद पढ़ते हैं? फिर अपने मन से अनुवाद करके हंसते हैं। गद्य का अनुवाद आसान है। आप चाहते हैं कि कविता का अनुवाद अपनी सीमित भाषाई समझ से करें और भाव भी मौलिक रूप से ही व्यक्त हो जाए? इस जाहिली (उर्दू शब्द है, जिसका अर्थ है अशिक्षित) का क्या जवाब दें?

    • Ajay balani

      May 17, 2023 at 9:31 pm

      जहालत शब्द ज़्यादा तार्किक लगता!

  9. Janardan ojha

    May 14, 2023 at 11:57 am

    Nobody can be omniscient.everybody should restrict his views to his own field of activity where he is supposed to have acquired enough .Not complete .knowledge .it is Not necessary that a judge necessarily has great knowledge of literature Or science .the message sent by the retired judge seems to be superficial And biased.

  10. सुशील कोठारी

    May 14, 2023 at 12:17 pm

    श्रीमान आप निसंदेह एक शातिर दिमाग़ के मालिक हे और एसिलिये आप् sc जज बने वरना सीधे सरल इंसान की क्या ओक़ात की वह जज बन सके वो भीं सुप्रीम कोर्ट का एक साधारण एडवोकेट

  11. सुशील कोठारी

    May 14, 2023 at 12:18 pm

    श्रीमान आप निसंदेह एक शातिर दिमाग़ के मालिक हे और एसिलिये आप् sc जज बने वरना सीधे सरल इंसान की क्या ओक़ात की वह जज बन सके वो भीं सुप्रीम कोर्ट का

  12. Roop Singh Chandel

    May 14, 2023 at 12:41 pm

    अनिल कुमार सिंह की टिप्पणी

    जस्टिस काटजू ने असली बात तो बताई ही नही ।मैं खुद उस गोष्ठी में मौजूद था । न वहां श्रोताओं ने कोई हंगामा किया था और न ही उस गोष्ठी में गुंडों का कोई गुट ही मौजूद था । इलाहाबाद का साहित्यिक समाज ऐसे लोगो को पहचान कर पहले ही फिल्टर कर देता था । काटजू जी ने कहा था कि हिंदी साहित्य में कुछ भी स्तरीय नही है ।कोई एक भी रवींद्र या बंकिम या शरत जैसा लेखक नही ।इस बात पर अध्यक्षता कर रहे भैरव जी ने अपने भाषण में उनसे पूछा कि तुमने हिंदी में पढ़ा क्या है ?किसने तुम्हे हाईकोर्ट का जज बनाया ?अगर मैं सुप्रीम कोर्ट का जज होता तो तुम्हे बरख्वास्त कर देता । भैरव जी की इस बात पर जज साहब अपने जूते हाथ में लिए (चूंकि हिंदुस्तानी अकादमी में जमीन पर बैठ कर गोष्ठियां होती थीं ) मंच छोड़ कर भागे थे । इस पर श्रोतावों ने उन्हें हूट किया था ।कई लोग इन्हें मनाने के लिए लपके । अफरातफरी में मंच संचालन कर रहे जस्टिस काटजू के दूसरे परम मित्र और मेरे गुरु सत्य प्रकाश मिश्र जी की माइक पर कड़क आवाज़ आई थी कि जाने दो साले को । नीलकांत जी के कहने पर भी काटजू नही लौटे । इलाहाबाद में पद देख कर नही योग्यता देख कर सम्मान होता रहा है । जस्टिस काटजू ने भैरव प्रसाद गुप्त ,शेखर जोशी , मार्कण्डेय, दूधनाथ सिंह,लक्ष्मीकांत वर्मा ,और भी न जाने कितने नए पुराने दिग्गजों के बीच समूचे हिंदी साहित्य को ललकारने की जुर्रत की थी ।जवाब तो उन्हे मिलना ही था । नीलकांत जी की पत्रिका कलम तो वैसे ही हाथों हाथ बिकती थी । राहुल विशेषांक भी बिक ही जाता ।

  13. Devendra Bawariya

    May 14, 2023 at 2:47 pm

    है तो सही बात, ऐसे गधे को जज किसने बना दिया, ऐसे ही लोग देश की संस्कृति का बंटाधार करते चले आ रहे हैं. अभी शुद्ध हिंदी के दो शब्दों का अर्थ पूछ लिया तो दस्त लग जायेंगे

  14. Mrs Deep prabha kaul

    May 14, 2023 at 5:16 pm

    जज साहब,हर भाषा का अपना पद्य होता,हमने पढ़ा नहीं उसका अर्थ यह नहीं कि पद्य है ही नहीं।
    1,’बुंदेले हर बोलों के मुहं हमने सुनी कहानी थी
    खूब लड़ी मरदानी वो तो झांसी वाली रानी थी।
    2,छोड़ दृमों की मृदु छाया
    तोड प्रकृति से भी माया
    बाले तेरे बाल जाल में कैसे
    उलझा दूँ लोचन।
    और कुछ नहीं तो कवि दिनकर की रश्मि रथी पढ़ कर देखिये,आप अपने शब्दों पर फिर से विचार करने लगेंगे।

  15. राजेश कसाना

    May 14, 2023 at 6:06 pm

    जज साहब आपको हिन्दी और हिंदुस्तान को समझने की ज़रूरत है , ना कि विश्लेषण करने की।

  16. विक्रमादित्य

    May 14, 2023 at 6:18 pm

    ये तो गोबक्षी कुत्ता है ।

  17. R.D.Shahi

    May 14, 2023 at 7:08 pm

    आप को उसने अपनी इज्जत बढ़ाने के लिए बुलावा भेजा था l खुद की इज्जत का फालूदा बनाने के लिए नहीं l मै अगर आप का मित्र होता तो आप को जूते से नहीं पीट पाता, इसका मुझे अफसोस रहता l

  18. धम्मचारी मुदिता वीर

    May 14, 2023 at 8:15 pm

    जस्टिस काटजू जी ने आज के साहित्य में दम नहीं है ऐसा कहा
    । लेकिन लेखक साहित्य की गहराई में नहीं गए अपनी कमी को छिपा कर जज साहब पर भड़के।
    लेखक ने लेखनी में सुधार करना चाहिए।
    धम्मचारी मुदिता वीर

  19. Shyam Z

    May 14, 2023 at 9:04 pm

    You are indeed one of the rare personality in Indian judiciary who is indecent, intolerant and to great extent shameless and a traitor. You have been like that in past and you are like that even today. It is very clear that you have reached to the high level not due to your talent but due to your family background and loyalty to political family.
    Shame on you literate but uneducated.

  20. डा. नरेश चन्द्रा

    May 14, 2023 at 9:11 pm

    भाई-भतीजावाद से जज बने हो शायद देख लो, उसके लिए किसी खास योग्यता की जरूरत नहीं होती।

  21. Ajay

    May 14, 2023 at 9:30 pm

    Katju always speaks his mind..no doubt he’s a great persona.. परंतु, उर्दू श्रेष्ठ है, इसमे मतभेद नहीं, साथ ही, आपकी सोच इस पे मुनहसिर करती है कि आपकी रुचि/ज्ञान कितना है, अर्थात् उसकी थाह. रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी पंक्तियों को उद्धरित करता हूं, कोई माई का लाल हो तो दावा करे कि हिंदी कविता बेदम है-
    ‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध!
    जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध!’

  22. Vishnu Singh

    May 14, 2023 at 9:42 pm

    Never comments on that person,whos elcet by rheir tallent ,

  23. Ajay

    May 14, 2023 at 9:53 pm

    विचलित मन कसक रहा, चाहे मातृभूमि के लिए आत्म बलिदान!
    अब देखें भुजाएँ संहारक की कितनी है सामर्थ्यवान!

  24. Ajay

    May 14, 2023 at 9:55 pm

    Katju always speaks his mind..no doubt he’s a great persona.. परंतु, उर्दू श्रेष्ठ है, इसमे मतभेद नहीं, साथ ही, आपकी सोच इस पे मुनहसिर करती है कि आपकी रुचि/ज्ञान कितना है, अर्थात् उसकी थाह. रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी पंक्तियों को उद्धरित करता हूं, मजाल है जो कोई दावा करे कि हिंदी कविता बेदम है-
    ‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध!
    जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध!’

  25. Ajay

    May 14, 2023 at 10:02 pm

    विचलित मन कसक उठे, चाहे मातृभूमि के लिए आत्म बलिदान!
    अब देखें भुजाएँ संहारक की कितनी है सामर्थ्यवान!

  26. Pardeep kumar

    May 15, 2023 at 6:00 am

    शीर्षक सही है अनपढ़ को जज किस ने बनाया?
    एक भाषा की महिमा एक भाषा की निंदा??
    जब तक हमारे देश से कॉलेजियम सिस्टम बंद नही होता,तब तक जजों के रिश्तेदार ही जज बनते रहेंगे

  27. विनय कुमार श्रीवास्तव

    May 15, 2023 at 7:42 am

    जिस व्यक्ति को अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व नहीं वो व्यक्ति कितने ही उच्च पद प्राप्त कर ले वो सम्मान कभी नहीं प्राप्त कर सकता है |

  28. Jitendra nath prasad

    May 15, 2023 at 8:11 am

    मार्कंडेय जी
    किसी का नाम संस्कृत होने से भाषा का विदवान नहीं होता। गरीबदास नामधारी अमीर होते हैं।
    Poems or geet ka word by word translation ho hin nahin sakata. हां, एक ही भावना वाली अलग कविता या गीत मिल सकाते हैं। ये उन्हें समाज मैं नहीं आएगा जो अपने देश या संस्कृति से प्यार नहीं कराटे।

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