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सियासत

किरण बेदी को तगड़ा झटका

सुप्रीम कोर्ट से उप राज्यपाल को मिली निराशा, केंद्र की याचिका पर सुनवाई से इनकार, हाई कोर्ट जाने को कहा

जे.पी.सिंह

पुदुचेरी सरकार अब अपने मन मुआफ़िक फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हो गयी है।उच्चतम न्यायालय ने उस अंतरिम रोक को हटा लिया है जिसमें कोर्ट ने यह कहा था कि पुदुचेरी कैबिनेट के वित्तीय मामलों को प्रभावित करने वाले फैसलों को लागू नहीं किया जा सकता। पुदुचेरी सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले में उपराज्यपाल किरण बेदी और केंद्र सरकार की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इसे किरण बेदी के लिए तगड़ा झटका माना जा रहा है।

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चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने कहा कि वो इस मामले में दखल नहीं देंगे। याचिकाकर्ता गृहमंत्रालय इसके लिए हाई कोर्ट जा सकते हैं। गौरतलब है कि बीते 4 जून को सुप्रीम कोर्ट ने पुदुचेरी सरकार सरकार को निर्देश दिया था कि वो 7 जून को कैबिनेट की बैठक तो कर सकती है लेकिन इस दौरान सुनवाई की अगली तारीख तक वित्त व भूमि ट्रांसफर संबंधी फैसलों को लागू नहीं कर सकती। बाद में इस आदेश को जुलाई तक बढ़ा दिया गया था।

जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस एम. आर. शाह की अवकाश पीठ ने केंद्र सरकार और पुदुचेरी की उपराज्यपाल किरण बेदी की याचिका पर केंद्रशासित प्रदेश के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा था। सुनवाई के दौरान केंद्र और एलजी की ओर से कहा गया था कि सरकार ने 7 जून की कैबिनेट बैठक का एजेंडा तय कर दिया है। इस बैठक पर रोक लगाई जाए। वहीं सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल व अन्य ने इसका विरोध किया था।

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दरअसल पुदुचेरी की उपराज्यपाल (एलजी) किरण बेदी “प्रशासनिक अराजकता” का आरोप लगाते हुए उच्चतम न्यायालय पहुंची थीं और उन्होंने मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी को वित्त, सेवाओं से संबंधित किसी भी मुख्य कार्यकारी आदेश को पारित करने से रोकने की मांग की जब तक कि उच्चतम न्यायालय पुदुचेरी सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों का फैसला न् कर दे ।किरण बेदी की अर्जी में यह कहा गया कि पुदुचेरी में प्रशासनिक अराजकता का माहौल है और अफसरों को समझ नहीं आ रहा है कि वो कोर्ट के आदेशों पर अमल करें या नहीं। उन्हें अवमानना कार्रवाई की धमकी दी जा रही है। वर्तमान में पुदुचेरी में कांग्रेस का शासन है जबकि बेदी की केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक के तौर पर एनडीए सरकार ने नियुक्ति की है।

11 मई को उच्चतम न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें यह कहा गया था कि पुदुचेरी के उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार के दैनिक मामलों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। फैसले में कहा गया था कि प्रशासक उन मामलों में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं, जहां विधान सभा, केंद्र शासित प्रदेशों के अधिनियम, 1962 की धारा 44 के तहत कानून बनाने के लिए सक्षम है। हालांकि सरकार की कार्रवाई के बारे में एक बुनियादी मुद्दों पर तर्कों पर आधारित सरकार के विचारों के साथ भिन्न होने के लिए सशक्त है।

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पुदुचेरी के विधायक के. लक्ष्मीनारायणन द्वारा दायर याचिका पर 30 अप्रैल को उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया था। उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रशासक के पास इस मुद्दे को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक सिद्धांतों और संसदीय कानूनों को नकारने वाले प्रशासन को चलाने का कोई कोई विशेष अधिकार नहीं है। ये याचिका 4 जुलाई 2018 के उच्चतम न्यायालय के संविधान पीठ के फैसले के मद्देनजर दायर की गई थी, जिसमें प्रशासन के मामलों में उपराज्यपाल पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार की प्रमुखता को बरकरार रखा गया था।

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