रिपोर्टर ऑन ग्राउंड : गोदी मीडिया को प्रदर्शन स्थल से भगाया किसानों ने, कहा बंद करो हमारे आंदोलन को बदनाम करना.. गोदी मीडिया के खिलाफ उतरे किसान, लगाये गोदी मीडिया मुर्दाबाद के नारे, कहा आंदोलनकारियों को कहा जाता है उग्रवादी..
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Pawan Singh-
एक दिन जनता सड़क पर दौड़ा-दौडाकर मारेगी… एक दिन आएगा जब आपको सड़कों पर कैमरा और आई डी लेकर O.B. VAN लेकर और स्कूटरों, बाईकों, कारों पर PRESS लिखकर घूमने में डर लगेगा।
जनता हाथ में जूता लेकर मारेगी जहां भी नजर आओगे….वह दिन नजदीक है अभी तो केवल बेज्जती करके भगाए जा रहे हो एक दिन सार्वजनिक रूप से जूते मार कर जनता भगाएगी। ….आवाम की नजरों में सम्मान तो कब का खत्म हो चुका है इसीलिए तमाम शब्द आपको नज़र किए गए हैं मसलन-रक्कासा, कोठा, प्रास्टीट्यूट, गोदी, डागी, दलाल, पत्तलकाल…..क्षमा करिएगा ये गरिमामयी शब्द आपने खुद कमाए हैं और इसके आगे जो कमाने वाले हैं उसका वक्त जल्द ही नजदीक आ रहा है।
आवाम जिस दिन सैलाब बनकर सड़कों पर उतरेगी तख्त और ताज सब बह जाएंगे…तुम्हारी कलम और कैमरों की बिसात ही क्या है….याद रखना यह मुल्क बार बार छला गया है और राख बनने के बाद फिर से उठ खड़ा हुआ है….इस मुल्क की आवाम एक दिन फिर सच पहचानेगी और उठ खड़ी होगी …तुम्हारे झूठ न पाखंड के खिलाफ….यह भी याद रखना कि अब आपने संवैधानिक संस्थाओं के साथ भी खेलना शुरू कर दिया है और यह खेल तबाही लाएगा….
इस देश को अगर किसी ने एक सूत्र में बांधे रखा है तो वह संविधान है…यह दरकेगा तो देश के लिए अच्छा नहीं होगा….इस मुल्क की आवाम ही इस देश की असली मालिक है और यह एहसास आवाम को तेजी से हो रहा है….फिर से लोग सड़कों पर होंगे… कितनों को मारोगे… कितनों को जेल में बंद खरोगे…. अंग्रेज़ो ने सही कहा था कि भारत को इतनी जल्दी आजाद करना ठीक नहीं है क्योंकि इस मुल्क के लोग ही इस मुल्क को खा जाएंगे….सच सामने है…. पूंजीपतियों के हवाले मुल्क है….इसकी कीमत वह भी अदा करेगा जो अभी गर्भ में है या गर्भ में आएगा….जो फसल लहलहाई गई है वह बड़ी हो रही है और जिस दिन पकेगी वह दिन मुल्क के लिए अभिशाप होगा।
पिछले दिनों मुंबई के एक बड़े पत्रकार शिर्के की आडियो रिकार्डिंग सुन रहा था जिसमें वह तमाम बड़े नेताओं के खुलासे के बाद कह रहा है कि हम मार-काट के एक भयावह दौर की ओर बढ़ रहे हैं…और इस देश का मीडिया नचनिया बना हुआ है…
Mintu Gurusaria-
अगर आप किसान विरोधी हैं या किसी और कारण से किसान से असहमत हैं तो आप कभी दिल्ली में बैठे इन किसानों के बीच में सुबह के वक्त आइए. कोई बज़ुर्ग किसान आप को गुरबाणी पड़ता नज़र आएगा, कोई बातों में मशगूल दिखेगा तो कोई खाना बना रहा होगा. यह खुद घर से सैंकड़े किलोमीटर दूर हालात और सरकार से लड़ रहे हैं मगर आप जायेंगे तो यह किसान आप को लंगर (खाने) की पेशकश करेंगे. हाँ थोड़ा ‘गोदी मीडिया’ से इनको ‘इश्क’ ज़्यादा है. कुछ गलत लोग और कुछ गलतियाँ हर जगह होती हैं वह तो हमारे घरों में भी हैं.
दरअसल यह आंदोलन एक अर्थ बाजार को बरकरार रखने का आंदोलन है नाकि यह किसी मज़हब या अलगाव की कोई लहर है. इस आंदोलन के अगवाई कर रहे कुछ लोग कम्युनिस्ट हैं तो कुछ हिन्दू भी हैं. आपको दर्जनों सिख किसान ऐसे भी मिलेंगे जिनके अपने सरहद पर जांबाज़ के तौर पर देश की हिफाज़त कर रहे हैं और वो अपने हकूक का जंग लड़ रहे हैं.
पंजाब में खेती और उस पर दी जाने वाली एमएसपी की बुनियाद पर एक बाजार है. यह बाजार अंदाज़न एक लाख करोड़ का मान लीजिये. मगर इस बाजार से आढ़तियों/शैलर मालिकों का ही नहीं लेबर, ट्रांसपोर्टर और बनिया का भी रोज़गार जुड़ा हुआ है और रोज़गार को जाति-धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता. खरीद की गारंटी और गेहू एव धान पर दी जाने वाली एमएसपी देश के महज़ 6 फीसदी किसानों को मिलती है, जिस में पंजाब को बहुत बड़ा लाभ होता है. यही वजह है पंजाब खुशहाल है. पंजाब में पांच एकड़ वाले किसान का बेटा आईलेट्स के बाद केनेडा में स्टडी करता है. क्या बिहार के पांच एकड़ धान की रुपाई करने वाले किसान का बेटा पटना से दिल्ली आ कर भी अच्छी शिक्षा हासिल कर सकता है ? क्या पांच एकड़ गेहू की बुआई करने वाला मध्य प्रदेश का किसान अपने बेटे को केनेडा में शिक्षत कर सकता है ? कुछ दानिशमंद भी यह सवाल करते हैं की पंजाब के किसानों को फंडिंग कौन कर रहा है और यह किसान नकली हैं क्यूंकि खेतों में तो गेहू की बुआई चल रही है. आप को बता दूँ की दिल्ली में बैठे किसान दस-दस, बीस-बीस लाख के ट्रैक्टर पर आये हैं. इनके ट्रैक्टरों पर बीस हज़ार तक का आपको म्युज़िक सिस्टम भी देखने को मिल सकता है. खेती भी यह इन मशीनों से करते हैं. हमारे पंजाब में एक दिन में किसान गेहू की बुआई कर लेता है और यह काम अक्टूबर के अंत में शुरू कर दिया जाता है. यह दोनों चीज़ें एमएसपी की वजह है की इनके पास महंगी मशीनरी और आधुनिक खेती की व्यवथा है.
होना तो यह चाहिए की पंजाब जैसी खुशहाली मराठवाड़ा के किसान की भी होनी चाहिए और तमिल की भी मगर हो यह रहा है जिनके पास यह मॉडल है उनसे भी छीना जा रहा है. क्या आप किसान की खुशहाली के पक्ष में हैं या बर्बादी के पक्ष में ? फिर खेती स्टेट सूचि में है मगर कांक्रेंट लिस्ट को इस्तेमाल करने के बाद राज्य सभा में जिस ढंग से इस बिल को पास कराया गया वह तो लोकतांत्रिक प्रणाली पर भी सवाल उठाता है , क्या किसान लोकतंत्र और संघीय ढांचे की लड़ाई नहीं लड़ रहा ? आप इस लड़ाई में किसान के साथ हो या विरोध में आप खुद तय कर लीजियेगा.
एक और मिथ घड़ी जा रही है की यह आंदोलन पंजाब का है. यह आंदोलन पंजाब का नहीं किसान का है और किसान कोई भी हो सकता है कहीं भी हो सकता है. अब तो राजस्थान का किसान भी इस में शामिल है और यूपी का भी. अब तो छत्तीसगढ़ से लेकर मध्य प्रदेश तक इस की गूंज है. पंजाब इस की अगवाई कर रहा है यह सत्य. इसकी भी एक वजह है. क्या महराष्ट्र के लाखों किसान दिल्ली में आ कर इतने समय तक आंदोलन कर सकते हैं ? नहीं, भारत के अधिकांश किसानों के पास तो दिल्ली में आने-जाने का भाड़ा भी एक चैलेन्ज होगा. प्रधान सेवक बोल दें की अंडमान निकोबार में मीटिंग होगी और वहीँ हम एलान करेंगे मगर यह तब संभव होगा तब पंजाब के लाखों किसान वहां आएं. यह पहुँच जायेंगे: क्यूंकि इनके पास एमएसपी है.
कांट्रैक्ट फार्मिंग और खुली मंडी का मॉडल अमरीका और यूरोप में कैसे फेल हो गया आप गूगल से दस मिंट में जान सकते हैं. सरकारी इन्वेस्टमेंट से चाइना की कृषि 2050 तक कहाँ होगी यह भी आप वहीं से पड़ लेना. हमें तो पंजाब और हरियाणा का मॉडल देश ही नहीं दुनिया के किसान को देना चाहिए था और हम इसी को बर्बाद करने जा रहे हैं. क्या आप भी इस में भागीदार हो ?
- मिंटू गुरुसरिया
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