अनिल सिंह-
उत्तर प्रदेश में क्षत्रिय, भूमिहार, कायस्थ और बनिया एक फीसदी भी नहीं हैं. जो होंगे भी वो माइनस में ही होंगे. यहां जो भी उपरोक्त्ा जतियों का होना बताता है वह या तो झुट्ठा है या फिर वह ब्राह्मण होगा, जो अपने को क्षत्रिय, भूमिहार, कायस्थ या वैश्य बताता है. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, ऐसा बता रही है न्यूज ट्रैक की वेबसाइट.
उत्तर प्रदेश में जातीय स्तर पर कोई आंथेंटिक आंकड़ा नहीं होने के बावजूद तमाम समाचार माध्यम मनमाने तरीके से जातीय समीकरण बताते चले जाते हैं. अंदाजे से ही जो मन किया वो आंकड़ा लिख दिया जाता है. ऐसी ही एक खबर में जातीय आंकड़ा इतना बताया गया है कि यह सौ फीसदी के भी पार निकल गया है, बिना उक्त चार जातीय समूह को शामिल किये.
खबर को लिखने वाले पत्रकार भी इतने जातीय जोश में होते हैं कि आंकड़ों को बिना जांचे-परखे ही उसे पब्लिक डोमेन में डाल देते हैं. यह इसलिये किये जाता है ताकि एक फर्जी आंकड़ा जनता के बीच उछलता रहे और राजनीतिक दलों में ज्यादा जनसंख्या वाली जाति की अहमियत बनी रहे. यूपी में चुनाव से पहले यह प्रयोग सफल भी होता दिख रहा है. सारे दल ब्राह्मणों को हाथों हाथ ले रहे हैं.
अब न्यूज ट्रैक की इस खबर को लीजिये. ” UP Politics: मायावती के ब्राम्हणों पर डोरे डालने से पहले भाजपा, सपा और कांग्रेस भी तैयार” – हेडिंग वाली इस खबर को श्रीधर अग्निहोत्री ने लिखा है. उन्होंने इस खबर में बताया है कि- यूपी में दलितों की आबादी 15 प्रतिशत और ब्राम्हणों की आबादी 14 प्रतिशत को जोड़ने के साथ ही 54 प्रतिशत पिछड़ा वोट बैंक के और 20 प्रतिशत मुस्लिम वोट किसी भी दल की किस्मत बदलने के लिए काफी है।”
अब आप इन आंकड़ों पर गौर करें. सवर्णों की आबादी 19 से 20 फीसदी के आसपास मानी जाती है, लेकिन इसमें 14 फीसदी ब्राह्मण बताये गये हैं. यानी शेष छह फीसदी में क्षत्रिय, भूमिहार, कायस्थ और बनिया हैं. पर खबर लिखने वाले पत्रकार ने यह भी गुंजाइश नहीं छोड़ी है. उनके लिखे आंकड़े को जोड़ेंगे तो यह 103 फीसदी पहुंच जाता है. वह भी बिना क्षत्रिय, भूमिहार, कायस्थ और बनिया के.
अब आप देख सकते हैं कि खबर के अनुसार उक्त चार जातियां माइनस में चल रही हैं. अब यूपी की जातीय समीकरण को सौ फीसदी लाने के लिये इन चारों जातियों को मिलकर तीन प्रतिशत अपनी तरफ से उधारी में देनी पड़ेगी. अब तीन प्रतिशत के घाटे में किसका कितना हिस्सा होगा, उक्त लोग बैठकर तय करें. खैर, इन आंकड़ों की सच्चाई और अहमियत को देखना और समझना चाहते हैं तो आपको वरिष्ठ पत्रकार समरेंद्र सिंह के इस वीडियो को देखना चाहिए.