चंदन बंगारी-
साल 2016 को अप्रैल में अमर उजाला की जिम्मेदारी लेकर काशीपुर पहुंचा था। आफिस में पहुंचते ही शाह जी ही पहले साथी थे जिन्होंने हेलो डियर कहकर कार्यालय में गर्मजोशी से हाथ मिलाकर स्वागत किया था।
शाह जी का नाम तो सुना था मगर उनसे बेहतर मुलाकात काशीपुर में साथ साथ पत्रकारिता करते हुआ था। वे संजीदगी के साथ अपनी बात रखते थे। लेकिन उन्होंने काफ़ी कुछ सिखाया। सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि मेरे जैसे न जाने कितने ही पत्रकारों को उन्होंने काफी कुछ सिखाया। पत्रकारिता के इतर वे समाज को लेकर चिंतित रहते थे, पत्रकारिता में आ रहे भटकाव को लेकर भी वे हमेशा चर्चा में रहते थे।
एक खासियत थी कि गुरु और डियर शब्द तकिया कलाम रहते थे। मेरे साथ काम करने के दौरान कई बार खबरों पर बहस होती थी तो वे नाराज हो जाते थे। लेकिन फिर गुपचुप चाय मंगवाकर साथ साथ पीकर सब भूल जाते थे। अच्छी बात थी कि वे दिल में नाराजगी नहीं रखा करते थे। पत्रकारिता में बेहद मंझे हुए थे।
उनको जिन्होंने जाना उन्होंने उनसे बहुत कुछ सीखा। जिन्होंने नहीं जाना वो कभी भी किसी अच्छे शख्स को जान भी नहीं पाएंगे। शाह जी से जो मिले वो उनसे जुड़े ही रहे। वे चाय पीने के शौकीन थे और अगर आप परेशान हो तो आपकी परेशानी को वी खुद भी ले लेते थे। लेकिन उन्होंने अपने भीतर चल रही परेशानियों को किसी से कभी साझा नहीं किया। लेकिन जब भी बात करते थे परिवार की कुशल क्षेम जरूर पूछते थे।
दो दिन पहले ही बात हुई थी, कोई परेशानी नहीं झलकी थी बातों से। लेकिन अपने अंदर का दर्द उनको बेहद सफाई से छिपाना आता था। वे चले गए अनंत यात्रा पर। बिना किसी को कुछ बताए बिना किसी से कोई बात किए।
मन दुखी है परेशान है और भावुक भी है। उनका इस तरह से चला जाना तकलीफभरा है। इतना कि अब न गुरु कैसे हो और न हेलो डियर जैसे सुकून भरी आवाज में शब्द नहीं सुनाई देंगे। आपसे बहुत कुछ सीखा मगर आपको इस तरह थोड़े जाना था। अलविदा शाह जी।