
आईपीएस पंकज चौधरी-
जब अपन बचपन में अर्थव्यवस्था, निवेश से नितांत अनभिज्ञ व अज्ञानी थे तब आज से लगभग 40 वर्ष पूर्व सहारा नाम अख़बारों, रेल के डिब्बों व बस स्टैंड पर देखते थे तो, ये नाम बड़ा आकर्षित करता था. कारण अपन भी संघर्षशील व बड़े महत्वाकांक्षी रहे. सहारे की ज़रूरत रही. पिताजी की पोस्टिंग बनारस के आस पास के ज़िलों में रही, माताजी ने कुछ हज़ारों का निवेश मलदहिया ऑफिस में किया. मैंने भी कई बार निर्देशानुसार किस्तें जमा की थीं.

माता जी का विश्वास था ये सहारा हम सभी का थोड़ा सहारा रहेगा. कुछ वर्ष बाद पिता जी का तबादला गोरखपुर हो गया, दिक़्क़त अब सहारा की किश्त जमा करने की हुई. माताजी ने बोला सहारा का अकाउंट बनारस से गोरखपुर करना होगा ताकि ईएमआई समय पर जमा होती रहे. मैंने माताजी को मना किया अंततः वापस बनारस ही जाना है, सहारा का अकाउंट ट्रांसफ़र ना किया जाये पर माताजी की इच्छा से अकाउंट ट्रांसफ़र हुआ.
इसी बीच कई वर्ष बाद बनारस पिताजी का तबादला हुआ, पर अब सहारा का अकाउंट गोरखपुर बना रहा. अपन बाहर पढ़ाई और नौकरी में चले गए. सहारा को भूल गए. अब कौन ईएमआई जमा कराये. हज़ारों की जमा पूँजी लाखों में हो गई होगी. एक बार आधे मन से सहारा से पैसे निकालने का प्रयास हुआ पर तकनीकी दिक़्क़त से संभव नहीं हुआ. अब जब सुब्रत जी ही नहीं रहे तो बाक़ी निवेशकों की तरह ये पैसा भी अब फँस गया है. फिलहाल, दिवंगत सुब्रत रॉय जी को नमन.
लेखक पंकज चौधरी राजस्थान कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं.