सौमित्र रॉय-
आखिर वही हुआ, जिसकी मैंने भविष्यवाणी की थी।
LIC का शेयर आज स्टॉक एक्सचेंज में पहली बार खुलते ही धड़ाम हो गया। सुबह की पूजा कोई काम नहीं आई।
949 रुपये का इशू प्राइज एक पल में 867.20 पर आ गिरा और निवेशकों के 42500 करोड़ रुपये डूब गए।
आज विश्व ब्लड प्रेशर डे पर लोगों का खून खौल रहा है। वे सोच रहे हैं कि बेच दें या रखे रहें।
मोदी सरकार ने LIC की संपत्ति को आधा कर देश का सबसे बड़ा घोटाला किया है।
जनता का मानना है कि एलआईसी का भी Paytm होना तय है।
चर्चा है कि ओवर प्राइज के साथ हेरा फेरी करके निकाला गया था। इसीलिए बहुत सारे लोगों ने इस पर बिड नहीं लगाई।
वैसे ग्रे मार्केट में LIC के शेयर प्राइस डाउन होने का न्यूज तो कल से चल रहा था।
समर अनार्य-
भारत की सबसे ज़्यादा लाभ कमाने वाली कंपनियों में सा एक एलआईसी के सार्वजनिक शेयर पहले ही दिन लुढ़के- निवेशकों के 50,000 करोड़ रुपए डूबे। इस सरकार के पहले तक यही एलआईसी डूब रही कंपनियों को बचाती थी। बाक़ी ये हाल सभी कंपनियों का है- पेटीएम से लेकर एलआईसी तक।
भारत का विदेशी मुद्रा रिज़र्व लगातार आठवें हफ़्ते लुढ़क के 600 अरब डॉलर से भी नीचे गया- कुल 596 अरब डॉलर पर। यह सितंबर 2021 के $642.5 अरब डॉलर से क़रीब 8 प्रतिशत की गिरावट है। सितंबर में भारत को 256 अरब डॉलर का क़र्ज़ चुकाना है। माने सीधे आधा हो जाएगा। ऐसी स्तिथि में किसी भी आकस्मिक खर्च को भूल ही जाइए- कच्चे तेल जैसी सामान्य ख़रीद फ़रोख़्त पर भी संकट आ जाएगा! और तेल के दाम निकट भविष्य में घटने वाले नहीं हैं- माने हुआ पंगा! श्री लंका इसी स्तिथि में पहुँचा हुआ है!
यहाँ यह भी जोड़िए कि दिसंबर 2014 में भारत पर कुल विदेशी क़र्ज़ 461 अरब डॉलर था। दिसंबर 2021 तक यही क़र्ज़ बढ़ के 615 अरब डॉलर हो चुका था और इसका 45% हिस्सा 2022 के अंदर चुकाना है।
रुपया डॉलर के सामने आज तक के सबसे निचले स्तर 77.69 रुपये पर लुढ़क गया है। और फिर- सब रोक भी दें तो कच्चा तेल और पॉम ऑयल आयात किए बिना काम चलना नहीं है।
आप बुलडोजर जेसीबी से लेकर खुरपी तक की खुदाई खेलते रहिए। यहाँ अर्थव्यवस्था आईसीयू में नहीं कोमा में जाने को तैयार बैठी है। और वो गयी तो कुछ नहीं बचेगा। जुलाई अगस्त आते आते सरकारी निजी सब क्षेत्रों में देखिएगा।वैसे भी न राशन कार्ड यूँ ही निरस्त हो रहे हैं, न ही किसान सम्मान निधि यूँ ही वापस वसूली जा रही है।
बात न समझ आई हो तो क्रैश ऑफ़ टाइगर इकॉनमीज़ पर कुछ पढ़ लीजिएगा।
थोक मूल्य इंडेक्स (WPI) की मुद्रास्फीति 75 साल के सारे रिकार्ड तोड़ 15% के ऊपर चली गई है…
डबल्यूपीआई का मतलब होता है थोक विक्रेताओं और उत्पादकों के लिए उनके सामान की क़ीमत- उदाहरण के लिए अगर साबुन ही ले लें तो साबुन की फ़ैक्टरी और उसके राज्य स्तर टाइप वाले थोक विक्रेताओं के लिए पड़ने वाली क़ीमत।
डबल्यूपीआई मूलतः दो कारणों से बढ़ता है- या तो कच्चे माल, ईंधन आदि के दाम आसमान छू रहे हों या फिर बाज़ार में माँग ही न हो- उपभोक्ताओं की कमर टूटी हुई हो और इसलिए माल फ़ैक्टरी/गोदाम में ही फँसा हो। नया माल बनाने की जगह भी न हो।अफ़सोस भारत में दोनों वजहें मौजूद हैं।
नोटबंदी, जीएसटी जैसी बेवक़ूफ़ियों से बाज़ार और आम आदमी दोनों पहले से बर्बाद थे। बची खुची कसर महामारी ने पूरी कर दी। सप्लाई चेन टूटी सो अलग। कुछ और बचा हो तो रुस यूक्रेन युद्ध ने रोक दिया!
यूँ डबल्यूपीआई में मुद्रास्फीति का मतलब अनिवार्य रूप से खुदरा महंगाई बढ़ना नहीं होता। झटका वक्ती हो तो उत्पादक खुद झेल लेते हैं ताकि बाज़ार बरबाद न हो। उपभोक्ता भी भागें न।
पर तब नहीं जब डबल्यूपीआई में मुद्रास्फीति लंबी चल जाय- और अपने यहाँ नवंबर 2021 से ही 14% के ऊपर है! अब न सरकार बहादुर ईंधन पर टैक्स कम करने वाले, न तुरंत कोई माँग बढ़ रही है। सो हालात और ख़राब होंगे ही- और सब चीजों के दामों में आग लगेगी!
जुलाई आते आते मध्य वर्गीय लोग भी दूध फल ख़रीद पाएँ तो कमाल ही होगा।
तब तक जो मन वो खोदते रहें!