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सुख-दुख

अखबार में खबर छपवाने वाले एक्टिविस्ट के खिलाफ मानहानि की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी

-शशिकांत सिंह-

कोई ठीकठाक वकील करने के बाद सुप्रीम कोर्ट तक जाने की अगर आपकी औकात है तो आप न्याय पा सकते हैं. निचली अदालतों के अन्याय से राहत सुप्रीम कोर्ट ही दे सकता है लेकिन सुप्रीम कोर्ट पहुंचना सबके वश की बात नहीं है. पर एक एक्टिविस्ट को सौभाग्य से एक ठीकठाक वकील मिल गए और लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक ले गए तो इनको फौरन राहत मिल गई.

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सुप्रीम कोर्ट ने एक्टिविस्ट के खिलाफ मानहानि की कार्रवाई पर रोक लगा दी है. एक्टिविस्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने अनावेदकों को भी नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया है. इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है.

कहानी होशंगाबाद निवासी एक्टिविस्ट संजय कुमार की है. इनके मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और न्यायाधीश कृष्ण मुरारी की बेंच के समक्ष हुई. एक्टिविस्ट संजय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसके गंगेले पेश हुए. गंगेले साहब हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति हैं. गंगेले ने मजबूती से संजय का पक्ष रखा.

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सीनियर वकील एसके गंगेले ने ने दलील दी कि अपीलेट कोर्ट के आदेश को बहाल रखने वाला हाई कोर्ट का आदेश चुनौती के योग्य है. एक वकील और व्यवसायी के बीच हुए झगड़े की खबर अखबारों तक पहुंचाना कोई जुर्म नहीं था. एक्टिविस्ट ने खबर अखबार तक पहुंचाने में सूत्र की भूमिका निभाई थी. ऐसा करना गलत नहीं है. यह एक समृद्ध परम्परा है. ऐसा करके एक्टिविस्ट ने वकील की कोई मानहानि नहीं की है. लिहाजा, याचिकाकर्ता एक्टिविस्ट के खिलाफ मानहानि की कार्रवाई पर रोक अपेक्षित है.

हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता एक्टिविस्ट संजय कुमार का पक्ष रखने वाले अधिवक्ता मोहनलाल शर्मा ने अवगत कराया कि वकील के परिवाद को अदालत ने खारिज कर दिया था. इसके बाद उसकी ओर से अपील दायर की गई. अपीलेट कोर्ट ने एक्टिविस्ट संजय से माफी मांगने के लिए कहा. लेकिन एक्टिविस्ट ने माफी नहीं मांगी. इसीलिए अपीलेट कोर्ट ने उसके खिलाफ मानहानि की कार्रवाई का आदेश पारित कर दिया. इसके खिलाफ हाई कोर्ट आने पर राहत नहीं मिली. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने प्रथमद्रष्टया मामला दुर्भावना का पाया. इसी के साथ स्थगनादेश पारित कर दिया.

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