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सुख-दुख

नई आई इस फ़िल्म को 20-30 साल बाद चर्चा लोग खोजकर देखा करेंगे!

दिनेश श्रीनेत-

मैं जिस सिनेमाहाल में आज ‘मैरी क्रिसमस’ का पहले दिन शाम का शो देखने गया था, गिनती के लोग थे. मगर हमें इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए. अच्छे सिनेमा का टेस्ट बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट पढ़कर नहीं बनेगा. यह बनेगा अच्छे सिनेमा की परख और समझ से. श्रीराम राघवन की कुछ पिछली फ़िल्मों की तरह ये एक कल्ट क्लासिक है. बहुत मायनों में ‘जॉनी गद्दार’ और ‘एक हसीना थी’ से टक्कर लेती हुई. तय है इस फ़िल्म पर आज से 20-30 साल भी चर्चा होगी, संभव है कि लोग इसे खोजकर देखा करेंगे. सस्पेंस थ्रिलर के साथ दिक्कत यह होती है कि आप उसके बारे में ज्यादा लिख-बोल नहीं सकते. पर यहां मैं यकीन दिलाता हूँ कि इस चर्चा (रिव्यू नहीं) में उतना ही स्पॉइलर होगा, जितना फ़िल्म के ट्रेलर में होता है.

श्रीराम राघवन इस फ़िल्म में अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में हैं. बारीक डिटेलिंग, कहानी का तफसील से बयान और रेट्रो के प्रति उनका जाना-पहचाना अनुराग. ‘मैरी क्रिसमस’ उस दौर की कहानी कहती है जब मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे और मुंबई तब बंबई कहलाता था.

फिल्म की शुरुआत में ही रंग-बिरंगी रोशनी फेंकती वजन वाली मशीन से एक कार्ड निकलता है जिस पर राजेश खन्ना की तस्वीर के साथ एक कोट होता है, ‘The night is darkest just before the dawn.’ यहीं से फिल्म अपने फ़लसफ़े की बुनियाद रख देती है और धीमी आँच पर पकता यह (स्लो बर्न) प्लॉट अंत तक आते-आते आपको जकड़ लेता है.

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श्रीराम के पास कहानी कहने का अपना तरीका है. वे किसी फैशनेबल ट्रेंड को फॉलो नहीं करते. प्लॉट ‘ए’ से ‘बी’ और ‘बी’ से ‘सी’ तरफ बढ़ता है. बेवजह नॉन लीनियर कहानी कहने कोई कोशिश नहीं. तनाव धीरे-धीरे गहराता जाता है. एक समय बाद आप खुद बेचैन होने लगते हैं कि कहानी आगे किस करवट जाएगी.

हां, जिनका ‘जवान’, ‘एनीमल’ और ‘सालार’ जैसी फ़िल्मों से टेस्ट ख़राब हो चुका है, उनके पास इस फ़िल्म को देखने का धैर्य नहीं होगा. राघवन कहते हैं, “मुझे अपरंपरागत चीजों की खोज करने में मजा आता है. मुझे अल्फ्रेड हिचकॉक पसंद है; मैं उनकी फिल्में देखकर बड़ा हुआ हूं. एक सामान्य प्रेम कहानी की तुलना में एक थ्रिलर आपको कैमरे और ध्वनि के साथ खेलते हुए रचनात्मकता प्रदर्शन की अधिक गुंजाइश देता है.”

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यकीनन ‘मैरी क्रिसमस’ में वे हिचकॉक के बेहद करीब आए हैं. दुनिया के कुछ बेहतरीन निर्देशकों की तरह राघवन अपने दृश्यों को कहानी का हिस्सा बनाए रखते हुए किसी गहरे दार्शनिक अर्थों या प्रतीकों से भी जोड़ते चलते हैं. इसके अलावा वे बहुत छोटी-छोटी चीजों से अपने प्लॉट को दिलचस्प बनाते हैं. संगीत का टुकड़ा, कोई वस्तु या फिर कोई आदत.

‘मैरी क्रिसमस’ में कई जगह वे अद्भुत हुए हैं. जैसे कि फिल्म का ओपनिंग क्रेडिट सीन या फिर एक जगह विजय सेतुपति और कैटरीना कैफ का एक डांस सीक्वेंस काफी लंबा है, उन्होंने उसे छोटा करने कोशिश नहीं की है और ऐसा करके वो पूरी फ़िल्म को एक मूड और गति देते हैं. इसी तरह से क्लाइमेक्स में सिर्फ बैकग्राउंड संगीत का इस्तेमाल करके भी उन्होंने कमाल कर दिया है.

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एक बेहतर अपराधकथा इसलिए बेहतर होती है क्योंकि वह मानव मन के अंधेरे और उजले पक्षों को इस तरह सामने लेकर आती है, जैसा आपने पहले कभी देखा या महसूस नहीं किया होता है. ठीक उसी तरह जैसे हम लैब में केमिकल्स को उनके शुद्धतम रूप में परख पाते हैं. यह फिल्म मानव मन को उसी तरह परखती है. कैटरीना कैफ पहली बार अपनी रहस्यमय सुंदरता के जरिए अभिनय में गहरे जाती दिखी हैं. विजय सेतुपति ने असाधारण सहजता से अपने किरदार को निभाया है.

श्रीराम राघवन ने एक बार कहा था, “मैं फिल्में बनाना चाहता था, लेकिन 1990 के दशक में जो फिल्में बन रही थीं, वे मेरी तरह की नहीं थीं.” अंततः उन्होंने अपना रास्ता और अपनी शैली खोज ही ली. बीच में वे एकाध बार ही भटके मगर ‘मैरी क्रिसमस’ यह भरोसा दिलाती है कि श्रीराम राघवन की अगली फिल्म की प्रतीक्षा की जानी चाहिए.

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