सत्येंद्र पी एस-
भयानक है। खबर है कि भारत समाचार के प्रमुख ब्रजेश मिश्र के घर पर छापे पड़ रहे हैं।
उनकी आमदनी के स्रोत पर मुझे कुछ नहीं कहना लेकिन हाल के वर्षों में सरकार विरोधी पत्रकार बनकर उभरे हैं। आम जनता के पक्ष में खबरें दिखाने में वह हर सरकार में सक्रिय रहे हैं।
दैनिक भास्कर के बाद भारत समाचार पर छापे लोकतंत्र के लिए अशुभ संकेत ही हैं।
संजय शर्मा-
आप तय कीजिये कि आप क्या चाहते है। देश भर में कोरोना से मरते हुए लोगों का सच दिखाये या सरकार की चमचागिरी करते हुए करोड़ों, अरबों रुपये के विज्ञापन लेते रहे।
अगर आपको सच चहिये तो अपने अपने स्तर से भास्कर और भारत समाचार और बृजेश मिश्रा जैसे बहादुर पत्रकार, चैनलों और अख़बार पर छापों का विरोध करिये।
याद रखिये लोकतंत्र बचेगा तो आप बचेंगे। यह इंकम टैक्स , ईडी या ईओडवलू जैसे हथियारों से मीडिया को डराने वाले लोग इस देश के लोकतंत्र को नहीं जानते। हर तानाशाह को खुद के ख़ुदा होने पर इतना ही यकीं होता है।
समीरात्मज मिश्रा-
दैनिक भास्कर के कई दफ़्तरों पर छापेमारी के बाद लखनऊ में भारत समाचार चैनल के दफ़्तर और चैनल के संपादक ब्रजेश मिश्र के घर पर भी आयकर विभाग को अचानक कुछ गड़बड़ी मिल गई। जिस वजह से उन्हें छापेमारी करनी पड़ी।
पता नहीं कुछ गड़बड़ी मिलने की जानकारी आयकर विभाग देगा या नहीं, पर जो संदेश देना था वो दे दिया है।
एक मित्र कहने लगे—- “ई तो…..होना ही था।”
रोहिन कुमार-
दैनिक भास्कर हिंदी प्रदेशों में पढ़ा जाने वाला अखबार है.
हिंदी प्रदेशों में लोकसभा की लगभग पचास फीसदी सीटें हैं.
pegasus के बारे में हिंदी प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में कितनी खबरें छप रही हैं? हिंदी डिजिटल कितनी छाप रहा है?
वैसे, राज कुंद्रा पर भी कौन सी ही क्राइम रिपोर्टिंग हो रही है!
उसी तरह भारत समाचार उत्तर प्रदेश में तूफान मचा रहा था!
2014 में ये दोनों वैसे नहीं थे जैसे ये 2021 में हो गए! कुछ तो बदला ही है न!
तो क्या इनकी जांच नहीं होनी चाहिए थी? आखिर मालूम तो चलना ही चाहिए न कि इनमें हिम्मत का संचार किधर से हो रहा है?
रिपब्लिक टीवी, दैनिक जागरण, आज तक, एबीपी न्यूज़, आदि इत्यादि जनता के पैसे पर चलते हैं. सब्सक्रिप्शन मॉडल है इनका! आईटी वाले आखिर क्यों जांच करेंगे इनकी?
जिनको आपातकाल चिल्लाते रहना है, वो चिल्लाते रहें!
श्याम मीरा सिंह-
दैनिक भास्कर अख़बार के भोपाल, जयपुर और अहमदाबाद कार्यालय पर इनकम टैक्स छापा मार रही है. दैनिक भास्कर ने कोविड में छुपाई जा रही मौतों की ग्राउंड रिपोर्ट की. जिस सरकार ने कहा कि भोपाल में कोई मौत नहीं हुईं, इंदौर में कोई मौत नहीं हुईं, तब दैनिक भास्कर ने ज़मीनी सच निकालते हुए बताया कि 100-100 मौत हर रोज़ हो रही हैं. दैनिक भास्कर की वजह से सरकार पर दबाव बनता, सरकार अधिक से अधिक कोरोना टेस्ट करने को मजबूर होती, अधिक से अधिक सख़्त होती.
दैनिक भास्कर ने पीड़ितों की सही संख्या बताई तो उससे अनाथ बच्चों, विधवाओं को लेट अबेर मुआवज़ा मिल सकेगा. जिस समय दैनिक जागरण अख़बार सरकार की चाटुकारिता में लगा हुआ है. उस समय दैनिक भास्कर जनता की रिपोर्टिंग कर रहा था.
बीते दिन भी सरकार ने कहा कि ऑक्सिजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई, भास्कर ने अपने अख़बार में लिखा क्या बात करते हो हुज़ूर, और कई पीड़ितों की कहानियाँ अपने अख़बार में छापीं जिन्होंने ऑक्सिजन की कमी से अपने खोए. बीते दो सालों से भास्कर जनता का अख़बार बना हुआ है. उसने जनता और सरकार में से जनता का पक्ष चुना.
इतने समय से सरकार ने दैनिक भास्कर अख़बार को विज्ञापन देना बंद कर दिया है. अख़बारों की कमाई का बड़ा सोर्स सरकारी विज्ञापन होते हैं. बिना इसके एक अख़बार का चल पाना मुश्किल है. फिर भी दैनिक भास्कर अख़बार ने अपने पैसे अपने पत्रकार ग्राउंड पर भेजे, अस्पतालों में भेजे, गाँव में भेजे. इस जिजीविषा को बचाने की ज़रूरत है. पत्रकारों पर हुए हमले पर सिर्फ़ पत्रकार ही क्यों बोलें? आप क्यों नहीं बोलते? जनता क्यों नहीं बोलती? फिर आप ही कहते हैं मीडिया बिक गया है.
जब आप दैनिक भास्कर जैसे अख़बारों के लिए खड़े नहीं होते.. तब आप उसे अप्रत्यक्ष रूप से बता रहे होते हैं कि जनता मर चुकी है. मरी हुई जनता की क्या खबरें करना. दैनिक जागरण बन जाओ, सरकार की खबरें करो.. और बताओ कैसे मोदी के आने के बाद भारत अमेरिका बन चुका है.
Comments on “मीडिया और मीडियावालों पर छापा : मोदी-शाह की जोड़ी क्या करके मानेगी भाई!”
काश ये लाला सुधीर मजीठिया का सच भी बताता। बहुत बड़ा चोर है ये। कुछ गडबड नहीं तो डरने की जरूरत नही सुधीर को।
कुछ पत्रकार तो भास्कर पर छापे से ख़ुश है। इस पर महीनगांव के सामाजिक कार्यकर्ता शहिद ने कहा, Godi Media to khush hoga hi । इस पर मैने कहा, भाष्कर समूह को पत्रकार दिल से गाली दे रहे हैं, खुश है, भाष्कर समूह में शोषण की कहानी सुना रहे हैं। अखबार में उच्च पदों से रिटायर होने वाले 90 फीसद पत्रकार सही खबर छापते हैं तो उद्योगपति मीडिया मालिक उनका उत्पीड़न करता है। यह भी कि पत्रकारों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ निर्णय सुनाती है। फिर भी मजेठिया आयोग की सिफारिश मीडिया मालिक नहीं मानते हैं। इसे पत्रकारों का संघ सूप्रीम कोर्ट की मानहानि बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में फिर मुकदमा दायर करता है। दो सदस्ययों की न्मूयार्ति की पीठ इसे मानहानि मनाने से इन्कार कर देती है। मजेठिया आयोग की रिपोर्ट इसी के साथ दम तोड़ देती है। तब माना गया था कांग्रेस के जमाने में मजेठिया आयोग लागू हुआ और मोदी की सरकार में दम तोड़ दिया। भास्कर समूह पर छापेमारी से सिद्व हुआ कि उक्त सोच निराधार थी।