Mohammad Anas : मुझे इस तस्वीर में कोई बुराई नहीं नज़र आती. यह सामाजिक बदलाव वाली तस्वीर है. जिसमे एक ब्राहमण साहित्यकार एक पिछड़ी जाति यादव मुख्यमंत्री से पुरूस्कार लेने के बाद चरण स्पर्श कर रहा है. इस तस्वीर में मुझे कुछ भी बुरा नहीं लग रहा, लेकिन जिन्हें बुरा लग रहा है उन्होंने ऐसे न जाने कितने यादव बुजुर्गों को गाँव गिरांव में पैरों में झुकाते रहते हैं. अखिलेश यादव ने तो इस चाटुकार ब्राह्मण को उठाना भी चाहा, लेकिन यूनिवर्सिटी के दिनों से ही ताकतवर के सामने झुकने और निर्बल को सताने वाली मानसिकता तब तक पूरा पूरा लेट चुकी थी.
मैं ऐसे ठाकुरों-ब्राह्मणों और अन्य उच्च जाति के सवर्ण हिन्दुओं को अहीर-गड़ेरिया और चमार के क़दमों में देखना चाहता हूँ. मैं उस दंभ को चूर होते हुए देखना चाहता हूँ जो हिन्दू समाज में जाति की कथित श्रेष्ठता के बाद आती है. मैं उन लम्पट-लौंडियाबाज और गुटखाखोर छात्र नेताओं को जानता हूँ जो उम्र से लेकर ज्ञान तक में पसंगा भर हैं और उनके पैर छूने के लिए अच्छे खासे पढ़े लिखे लड़के झुके रहते हैं. जब वहां मनाही नहीं है तो अखिलेश यादव के साथ मनाही कैसी?
यदि इस तस्वीर में ब्राह्मण साहित्यकार के बजाये कोई पिछड़ा होता तो अखबार यह कभी न लिखता की सियासत के कदम में लेट गया साहित्य. आप चाहे कितने भी तर्क दे लें लेकिन अखबार कभी न लिखता. उसने इसलिए लिखा है क्योंकि पंडित, जो की महाज्ञानी-परम प्रतापी होता है वो एक अहीर के कदम में कैसे झुक गया. आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा. क्योंकि ऐसे नज़ारे आम नहीं है. आम तो वे दृश्य हैं जिनमे बीस साल के ब्राह्मण के पैर में पचास साल का यादव झुकता हो, आसानी से पचा लेने वाली फोटू तो वो होती जिसमे कोई ठाकुर अपनी दबंगई के ठसक में किसी चमरौटी से गुजरते वक्त पूरे टोले को पैरों में झुका ले.
जिन लोगों को यह तस्वीर देख कर साहित्य की हत्या या आत्महत्या का बोध हो रहा है वे या तो इस परम्परा को बंद कर दें, पैर छूने वालों को सख्ती से मना कर दें या फिर जो हो रहा है उसे होने दें. क्या आपको बुरा लगा इसे देख कर? मुझे रत्ती भर भी नहीं लगा. क्योंकि मैं किसी भी मानव को उसकी जाति के आधार पर श्रेष्ठ या कमतर नहीं समझता. जहाँ तक ज्ञान की बात है तो भारतीय साहित्य का ज्ञान कैसा ज्ञान है, उस पर तो बात ही मत कीजिएगा.
पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट मोहम्मद अनस के फेसबुक वॉल से. इस मसले पर आए असहमतियों भरे कुछ कमेंट्स इस प्रकार हैं…
Rishi Raj : बैंक का बैलेंस खत्म हो तब भी आप ठीक रह सकते है लेकिन जब दिमाग का बैलेंस खत्म हो तो जीवन मुश्किल हो जाती है। एक70 साल का बुजुर्ग 40 सालके लड़के के पैर छुए तो उसे क्या कहा जाये (हालांकि अखिलेश उन्हें रोक रहे है यह साफ़ प्रतीत हो रहा है) लेकिन लोग इसको जस्टिफाई कर रहे है। बेशर्मी की हद है। घोर समाजवाद –घोर समाजवाद
Lima Tuti : पता नहीं शायद आप सही हों, पर मुझे लगता है, डा. मिश्र ने सही नहीं किया. मैं जातीय आधार पर नहीं कह रही हूँ…. वो उम्र में मुख्यमंत्री के पिता या उनसे भी बडी उम्र के हैं, और एक वरिष्ठ साहित्यकार हैं…. उन्हें इस तरह अखिलेश जी के कदमों में झुकना शोभा नहीं देता है। शायद मुख्यमंत्री जी को भी यह आशा नहीं थी उनसे. वो खुद हड़बड़ाए से लग रहे हैं।
Shikha Singh ठाकुर और ब्राह्मण को गालियां देने से अच्छा है की जिनके समर्थन में आप ये बात बोल रहे हैं वो स्वयं हिम्मत करें और तय करें की उन्हें किसी के सामने नहीं झुकना हैं और रही बात साहित्यकार के झुकने की तो उससे ये साफ़ झलकता है की उन्हें अपने संम्मान से ज्यादा मुख्यमंत्री की कृपा दृष्टि चाहिए। उसके लिए आप ठाकुर या ब्राह्मण को क्यों टारगेट कर रहें। इस वर्ग के शोषण करने वालों को तो आप सब बड़ा याद करते हैं लेकिन जिन्होंने अच्छे काम किये है जरा उनकी तारीफ भी कर लिया कीजिये। और आज के समय में कोई किसी को नही कहता है की पैर छुओ। आप को नहीं लगता कि सामने वाले के पैर छूने चाहिए तो मत छुओ।
Ankit Francis : असल में वो ब्राह्मण..यादव के नहीं सत्ता/मुख्यमंत्री के पांव छू रहा है..बाकी सारे विमर्श इस तस्वीर को लेकर ख्याली पुलाव हैं 🙂
Rashmi Kala : उम्र, जाति, हुनर सब जुड़ा है महज़ जाति तक न सीमित करें…परवरिश का हिस्सा है कि छोटा ही बड़े के पैर छुएगा…सोच का हिस्सा है कि साहित्यकार किसी ओहदे के आगे नहीं झुकते और फिर जाति तो दौड़ ही रही है खून के साथ नसों में…सभी कारण हैं महज़ जाति तक सीमित न करें
Navneet Singh : पैर छूने की संस्कृति तो बंद होनी ही चाहिए। आखिर इस कुप्रथा के शिकार सबसे ज्यादा समाज के पिछड़े लोग ही होते हैं
Divyanshu Patel : बलरामपुर डिग्री कालेज में सवर्ण छात्र चपरासी का पैर छूते हैं. ओबीसी दलित और मुसलमान अध्यापकों का नहीं. डा तबस्सुम फारुखी को कई बार कुर्सी नहीं दी ब्राह्मण चपरासी ने. पाँच अध्यापक खड़े हैं. चार ब्राह्मण. एक मेरे पिताजी हैं. एक आवारा ब्राह्मण गुंडा आयेगा. चारों के पैर छूयेगा. पापा को नमस्ते भी नहीं करेगा. जब भी मैं डा तारिक कबीर, डा फारुखी, डा अंसारी का पैर छूता था कालेज में तो ब्राह्मण ठाकुर सहपाठियों से ज्ञान मिलता था कि “अबे कटुआ का पैर काहे छूते हो? इनके में पैर छूने का रिवाज नहीं होता” और मेरे यह कहने में “अपने में तो पैर छूने का रिवाज तो है?, जिसकी इज़्ज़त करूँगा उसको पैर छू के सम्मान दूँगा” उनको बड़ा अजीब लगता था. यही इनका जहर है जिसके कारण जब लोग मायावती अखिलेश मुलायम जैसों के सामने झुकते देखते हैं तो कुछ बदले, न बदले लोगों को सम्बल जरूर मिलता है.
Swenka Tripathi : Bilkul sahi nahi laga wo sahityakar unse bht bade. Hindu m apne se bade ka per chhune ka riwaz hota h chahe samne wala insan kisi b #caste or #religion k ho. Jita hinduo ko kitna kch bola ja ra h lekin wo usse bht unche khyl k or achhe hote h. Or baat rahi akhilesh ji per chhune ko to inke per koi isi lye chuega kyunki ye #c.m hai kyunki up k c.m k pita jo bolte h jawani m gltiya hojati h ladko se or ye b ki 4 log rape nahi kr skte aese m kn chuega inke per, jo baat2 m dhmki dete h bijli pani mango #bjp se or kisi shiksha mitr k bhrti nahi krnge. Aese hi nahi #up m itni gundagardi h ladkia safe nahi h bilkul or yahi gujjar jo ki vishesh jati se h apni badi2 gadio m ghumte h ladkio ko chhedte h gujjar boy likh kr. Tbi yaha gundagrdi pr cntrl nahi kyunki jawani m hojati h galtiya, bhartiya b hoti h to srf vishesh jati k logo k or har jagah har uchh post p #yadav. Logo ki. Bhaiya abto brahmin alpsankhyk hojynge kch din m.
jagdish samandar
September 17, 2015 at 5:11 am
is tasveer kojativad ke najariyese dekhna sahi nhi h…asal me satta ki krpa prapti k liye charan vandan h….jaise sahitya ko sammanit kr rajneeti ne koi upkar kar diya ho….bujurg sahityakaro ki aisi chamchagiri se sahitya k maan or samman ko thes pahunchna lajimi h…
deepak kumar pandey
September 17, 2015 at 6:58 am
budhau sathiya gye hai.