Dayanand Pandey : कि पेड न्यूज़ भी शरमा जाए…. आज का दिन न्यूज़ चैनलों के लिए जैसे काला दिन है, कलंक का दिन है। होली के बहाने जिस तरह हर चैनल पर मनोज तिवारी और रवि किशन की गायकी और अभिनय के बहाने मोदियाना माहौल बना रखा है, वह बहुत ही शर्मनाक है। राजू श्रीवास्तव, सुनील पाल आदि की घटिया कामेडी, कुमार विश्वास की स्तरहीन कविताओं के मार्फ़त जिस तरह कांग्रेस आदि पार्टियों पर तंज इतना घटिया रहा कि अब क्या कहें।
रवि किशन जैसा गंभीर अभिनेता भाड़ बन कर उपस्थित हुआ इन प्रहसनों में कि मुश्किल हो गई। रवि किशन गायक नहीं हैं, पर आज वह गायक बन गए। चारण और भाट भी शरमा जाएं मनोज तिवारी और रवि किशन का यह रुप देख कर। लगता ही नहीं कि श्याम बेनेगल के साथ भी कभी रवि किशन ने शानदार काम किया है।
आज नहीं बल्कि कल शाम से ही यह सब सभी चैनलों पर चालू है अभी तक। रवि किशन, मनोज तिवारी लगातार हर जगह चीख चीख कर गा रहे हैं, बम-बम बोल रहा है काशी! लतीफेबाज घटिया कवियों वाले कवि सम्मेलन भी इन न्यूज़ चैनलों पर मोदी राग में ही न्यस्त रहे। सिर्फ़ मोदी का भाषण, मोदी की तारीफ़ के पुल में बंधी कमेंट्री, मोदी पर गाना। ठीक है मोदी ने अप्रत्याशित जीत हासिल की है लेकिन सारे न्यूज़ चैनल भाजपा के स्पीकर बन जाएं, भाड़ बन जाएं, यह न्यूज़ चैनलों का काम नहीं है।
सब जानते हैं कि मनोज तिवारी भाजपा के सांसद हैं और कि दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष भी, रवि किशन भी भाजपा ज्वाईन कर चुके हैं। उनको तो यह करना ही था। पर न्यूज़ चैनलों को? क्या न्यूज़ चैनलों ने भी भाजपा ज्वाइन कर लिया है?
जनता पार्टी की सरकार की विदाई के बाद जब इंदिरा गांधी की वापसी हुई थी तो उन से बंद हो चुके अख़बार नेशनल हेराल्ड के बाबत पूछा गया कि कब खुलेगा? इंदिरा गांधी ने पूरी बेशर्मी से जवाब देते हुए तब कहा था, अब इसकी कोई जरुरत नहीं है क्यों कि जो काम हमारे लिए नेशनल हेराल्ड करता था, अब वह काम सारे अख़बार करने लगे हैं। लेकिन आज जो न्यूज़ चैनलों ने किया है वह नमक में दाल हो गया है। सारे न्यूज़ चैनल भाजपा के जरखरीद गुलाम बन गए। इस कदर कि पेड न्यूज़ भी शरमा जाए। साक्षर और दलाल पत्रकारिता की यह हाईट है।
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार दयानंद पांडेय की एफबी वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेरों कमेंट्स में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं….
Ajay Kumar Agrawal मीडिया का ये रूप बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है जब कहीं भी सिर्फ गुणगान होने की उम्मीद हो तो क्या देखना मैंने कोई न्यूज़ नहीं देखी।
Praveen Kumar Mishra क्षमा प्रार्थना के साथ लेकिन मनोज तिवारी कभी गायक हो ही नहीं पाये, गा ज़रूर लेते हैं लेकिन बिना ग्रामर के। लोक गायक भी नहीं हैं क्योंकि तुकबंदी इनके पूरे व्यक्तित्व पर भारी है। अधिक से अधिक चारण परंपरा में रख सकते हैं।
Vijaya Bharti सही कहा है भाई साहब आपने क्योंकि ये सभी चारण हैं क्योंकि चारण गाकर ही ये उपलब्धियाँ पाकर नौटंकी पसारे हुए हैं।
DrParmod Pahwa पत्रकारिता के नाम पर मूर्खो की टोली एकत्रित हो गई है। न्यूज़24 पर प्रह्लाद होलिका की कथा बिहार से जोड़ दी,जबकि ऐतिहासिक साक्ष्य पाकिस्तान के मुल्तान में हजारों सालों से है। अब तो विश्वास कर सकते है कि सिकन्दर पटना तक आया होगा ।
Shyam Dev Mishra न्यूज़ चैनलों को क्या आप आज भी न्यूज़ चैनल समझते हैं? ज्यादातर लोग तो बहुत पहले से उनकी असलियत समझते हैं, इसलिए न उनसे अपेक्षा है, न कोई शिकायत।
Rajeev Dwivedi प्रणाम, इनकी तो छोड़िये जो लोग पानी पी पी के गाली देते थे वो भी कसीदे पढ़ रहे है lll
Sudhanshu Tak सर आज होली के छुट्टी है । छुट्टी मतलब पूर्ण छुट्टी । सभी एंकर , पत्रकार अपने घर , परिवार , मित्रों के साथ होली मना रहे है । ये प्रि रकोर्डेड प्रोग्राम है जो केवल टाइम पास के लिए चलाये गए हैं । कल से सब ड्यूटी पर हैं । अब ये कोई नजर नही आएगा । आप मौज करो । कल से सब धंधे पानी में लग जाएंगे । अब मोदी जी का भक्त मीडिया क्या पूरे देश की जनता हो रही है । ऐसा पहले कभी नही हुआ इसलिए पचाना मुश्किल है । वैसे कल से आपजो तकलीफ नही होगी । सादर
Dayanand Pandey बिलकुल नहीं , सारे कार्यक्रम आज के हैं । कल ही रिजल्ट आया है और आज कार्यक्रम में उस का यशोगान ।
Sudhanshu Tak सर रिजल्ट परसों आ चुका था 11 तारीख को । वैसे पत्रकारों की छुट्टी थी । कलाकारों का तो आज कमाने का दिन था । होटल में मनाये जा रहे होली के कार्यक्रमों में भी यही कलाकार आज अपनी प्रस्तुति भी दे रहे थे । सादर
Dayanand Pandey नतीजे एक शाम पहले ही सही । पर यह सब आज ही कल में हुआ । सवाल फिर कार्यक्रम पर नहीं न्यूज़ चैनलों के एप्रोच और उन के बिकाऊपन पर है यहां।
Shubham Tiwari रवि किशन, मनोज तिवारी ही नहीं मालिनी अवस्थी भी
Munna Pathak बनले के सार सभे बनेला, बिगड़ले के बहनोई भी बनल केहू ना चाहेला। जब मोदिये राजा बाड़े, त सोनिया के अब के पूछी ? वइसे भी मीडिया पइसा खइला से चाहें हुँकइला से, दुइयेगो तरीका से वश में रहेले। ई त पुरान परिपाटी ह ।
जितेंद्र दीक्षित कल युगपुरुष प्रेस से बात करने वाले हैं।
Bodhi Sattva आज मोदी और भाजपा विरोध देशद्रोह हो गया है । कब तक चलेगा यह मोदी राग । देखते हैं ।
Wahid Ali Wahid हाँ भाई देखा.भाँड भी शरमायें ऐसे तथाकथित कलाकारों कवियो के कृत्य पर.
Om Nishchal सांसद नाचै ताल दै कहै काढि के खीस टीवी मोदीमय हुए, चैनल माउथपीस। जोगीरा सररर।
Rajeev Bhutani चैनल देखना है तो राज्यसभा चैनल एक बार देखो दुबारा कोई चैनल समझ नही आयेगा …. ये झोलाछाप NCR चैनल दरअसल भांड चैनल हैं इनकी कवरेज दिल्ली और 100 किमी के दायरे तक सिमित है ……फटाफट न्यूज —– कुत्ता पेड़ पर चढ़ गया… भैस नाले में गिर गई …बस कंजरखाना
Rajneesh Kumar Chaturvedi बस जुलाई तक।।हामिद अंसारी की विदाई के साथ ही राज्यसभा चैनल का भी वही हाल होना है।
Sridhar Sharma ये बाजार है सर… यहां सब बिकते हैं। बहुत सटीक टिप्पणी की है सर आपने।
Shashi Bhooshan एक नाम अवस्थी मैडम का भी जोड़ लीजिये। लिखा तो आपने अपनी इधर की लिखत के बीच विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए ही है लेकिन मुझे अच्छा लगा। उम्मीद है लडडू बाँटने का वीडियो भी आप तक पहुँचता ही होगा।
Bharat Shrivastava सभी चैनल्स या तो मोदी विरोधी है या मोदी समर्थक। होली में भी राजनीति की भांग घोल दी इन चैनल्स ने। पहले भी राजनीति पर चुटकियां ली जाती थी होली के अवसर पर किन्तु इस बार तो मीडिया वालो ने चाटुकारिता और विरोध की हदें पार कर दी।
सतीश शर्मा आदर्शवादी निष्पक्ष सन्तुलित पत्रकारिता आजादी के साथ ही लुप्त हो गयी है अब तो यह केवल कमाऊ व्यवसाय है जिसमे हर बात जायज और जरूरी है जिससे पैसा और थोथी लोकप्रियता मिले।फिर 24 घण्टे बकबक करे भी तो क्या?
रजनीकांत याज्ञिक कल चैनल पर कुमार विश्वास भी कविता पाठ कर मोदी पर अपनी भड़ास निकाल रहे थे।उस तरफ आपका ध्यान नहीं गया।स्वाभाविक है आपने जो चश्मा लगाया उससे यह नहीं दिखा होगा।
Puneet Nigam बुरा न मानो होली है। इतना सीरियस होने की जरुरत नहीं है भाई साहब। मौका है मौसम भी है , थोड़ी चुटकी ले ली तो क्या बुराई है।आप भी थोड़ी देर के लिए होली के रंग में रंग जाइये न।
Gambhir Shrivastav इसमें न कोई आश्चर्य है, न अफ़सोस है, और न ही ये पतन की ‘हाइट’ है. देखते रहिये, बहुत कुछ देखना अभी बाकी है. यूँ आपका आक्रोश वाज़िब है.
Vijender Gsp इसमें इन चैनलों का कोई दोष नहीं है । असल में ये न्यूज चैनल है ही नहीं और न ही कभी बन सकते है । वाजपेयी सरकार ने जब न्यूज चैनल खोलने के लिए आवेदन मांगे तब अधिकाँश लोगों ने यह सोचकर आवेदन कर दिया कि अलॉट हो गया तो लाइसेंस बेचकर पैसे कमा लेंगे । लेकिन हुआ यह कि जिसने भी आवेदन किया था उन सबको लाइसेंस दे दिए गए । अब चेनल चलाना मजबूरी हो गया लेकिन न्यूज चैनल चलाना कोई खाला जी का बाड़ा नही है । एक चैनल को चलाने के लिए भी कम से कम दस हजार वर्करों की जरूरत पड़ती जो इनके बुते से बाहर थी लिहाजा इन्होंने वो दृश्य दिखाने शुरू किए जिनका निर्माण नेट की सहायता से स्टूडियो में बैठकर किया जा सके । राशिफल, टोने-टोटको के साथ 4C अर्थात क्राइम, सिनेमा, क्रिकेट और सेलिब्रिटी ही इनके समय बिताने के मुख्य साधन है । अब खबरें तो इनके पास है नही तो चुटकले सुनाकर ही टाइम पास करना पड़ेगा । 24 घंटे बिताना कोई सरल काम तो है नही ।
Raghwendra Pratap Singh पत्रकारिता अब मिशन के रूप में कम कमीशन के रूप में ज्यादे नजर आने लगी है । ये इस क्षेत्र के लिए घातक है।
Rakesh Pandey साहब न्यूज चैनल्स आर कम्पलिटली न्यूड इन द कान्टेक्ट आफ रियल न्यूज और न्यूज चैनल देखना तब हो जब नो यूज आफ न्यूज
Vir Vinod Chhabra आपसे कई बार राजनैतिक पोस्ट को लेकर मतभेद रहा है। कई बार पूर्ण सहमति भी। लेकिन आज कई दिन बात आपसे सौ प्रतिशत से अधिक (यदि ऐसा होता है तो) सहमति है। इस पोस्ट में व्यक्त विचार से सहमति तो है ही, आपने लिखा भी बहुत अच्छा है, वास्तव में।