आप सभी 18 अप्रैल के चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस का वीडियो देखिए। यह वीडियो आयोग के पतन का दस्तावेज़ (document of decline) है। जिस वक्त आयोग का सूरज डूबता नज़र आ रहा था उसी वक्त एक आयुक्त के हाथ की उंगलियों में पन्ना और माणिक की अंगुठियां चमक रही थीं। दफ्तर में बैठा अचानक न्यूज़ एजेंसी के ज़रिए आ रहे लाइव फीड को देखने लगा था। सिर्फ दो सवालों के जवाब में आयुक्तों के जवाब और उनकी निगाहें देख लीजिए। प्रधानमंत्री के हेलिकाप्टर की तलाशी और बालाकोट के नाम पर वोट मांगने पर क्या कार्रवाई हुई है, इनके जवाब को सुनिए, आपको साफ हो जाएगा कि चुनाव आयोग का सूर्य धुंधला हो गया है।
पन्ना और माणिक से लैस एक आयुक्त की दोनों अंगुठियां आंखों में खटकने लगीं तो किसी को फोन करने लगा कि हरे रंग का पन्ना और हल्के लाल रंग का माणिक कब पहनते हैं। जवाब मिला कि बुद्धि और सूर्य कमज़ोर हो तो उसे प्रबल करने के लिए पहनते हैं। मैं सोच में पड़ गया कि यह व्यक्ति संविधान की प्रक्रियाओं से आयुक्त बना है या फिर ज्योतिष के संयोग से। अगर इसके करियर में सिर्फ ज्योतिष के संयोग का योगदान है तो हम उम्मीद क्यों कर रहे हैं कि आयुक्त जी संवैधानिक मर्यादाओं के लिए इतिहास में अपना नाम दर्ज कराना चाहते हैं।
9 अप्रैल को महाराष्ट्र के लातूर की चुनावी रैली में दिए गए प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर आयोग अभी तक कोई एक्शन नहीं ले पाया है। उस रैली में प्रधानंत्री ने कहा था कि पहली बार वोट करने वाले मतदाता क्या आपना वोट पुलवामा के शहीदों और बालाकोट एयरस्ट्राइक में शामिल वीर जवानों को समर्पित नहीं कर सकते। इस बयान पर आयोग अभी तक कार्रवाई नहीं कर सका। महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से जवाब मांगा था। पत्रकारों ने पूछा कि उस पर क्या कार्रवाई हुई तो जवाब मिला कि प्रधानमंत्री के भाषण का सिर्फ एक पैराग्राफ आया था। पूरे भाषण की प्रमाणिक कापी मांगी गई थी जो आ गई है। उसकी जांच की जा रही है।
स्कूल की आदतें जीवन भर नहीं छूटती हैं। होमवर्क नहीं करने पर होमवर्क काफी घर छूट गई है का जवाब चुनाव आयुक्त के जवाब में झलक रहा था। जिस वक्त आयुक्त गिना रहे थे कि इतने लाख शिकायतों का निपटारा कर दिया गया है, उसी वक्त इस बात का जवाब नहीं दे पा रहे थे कि प्रधानमंत्री के भाषण पर एक्शन लेने में 9 दिन क्यों लगे। जबकि सेना के इस्तमाल पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मुख़्तार अब्बास नक़वी को आयोग ने चेतावनी दे दी है। ज़ाहिर है सेना का इस्तमाल वैधानिक नहीं है तो फिर प्रधानमंत्री के मामले में क्या आयोग के पन्ना पुखराज पहनने वाले आयुक्तों को डर लग रहा है? अगर इतना ही डर लग रहा है तो वे मूंगा और नीलम भी पहन लें और अपने पद से इस्तीफा दे दें। इतना याद रखना चाहिए कि इतिहास पन्ने पलटता है। वे न सिर्फ इतिहास बल्कि अपने वर्तमान से मुख़ातिब हैं। अपने दोस्तों, परिवारों से मुख़ातिब हैं।
चुनाव आयोग ने ओडिशा के आब्ज़र्वर मोहम्मद मोहसिन को निलंबित कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी के हेलिकाप्टर की तलाशी के कारण आयोग ने जिन नियमों का हवाला देते हुए निलंबित किया उनका कहीं कोई वजूद नज़र नहीं आता है। आयोग चुनाव ड्यूटी पर तैनात अफसरों को जो गाइडलाइन देता है उसी को उठाकर पढ़ ले और बता दे कि क्या उसमें कहीं लिखा है कि एस पी जी सुरक्षित व्यक्ति के हेलिकाप्टर की जांच नहीं करनी है। किस पन्ने पर लिखा है बता दे। ज़ाहिर है नहीं लिखा है। जब सवाल उठा तो आयोग को सारी बातों के साथ प्रेस कांफ्रेंस में आना चाहिए था मगर न तो इसका सीधा जवाब दे पाए कि किसकी शिकायत पर कार्रवाई की और न ही इसका कि किस नियम के तहत मोहम्मद मोहसिन को सस्पेंड किया। कभी कहा फील्ड अफसर कभी कहा डी ओ कभी कहा सी ई ओ, कभी कहा मजिस्ट्रेट। आप खुद भी वो वीडियो देखें जिसे मैंने प्राइम टाइम में दिखाया है, आपको चुनाव आयोग के पतन का चेहरा दिख जाएगा।
10 अप्रैल 2014 के आदेश का हवाला दिया जा रहा है। इस आदेश को आप भी पढ़ें। इसमें यह तो लिखा है कि एस पी जी सुरक्षित व्यक्ति सरकारी वाहनों का इस्तमाल नहीं कर सकता है मगर प्रधानमंत्री व अन्य राजनीतिक शख्सियतों को छूट है कि वे सरकारी वाहनों का इस्तमाल कर सकते हैं. क्योंकि इन्हें आतंकी और चरमपंथी गतिविधियों से ख़तरा होता है और उच्च स्तरीय सुरक्षा की ज़रूरत होती है. जिनकी सुरक्षा संसद या विधानसभा के बनाए संवैधानिक प्रावधानों से होती है.
लेकिन इस आदेश में यह कहीं नहीं लिखा है कि चुनाव अधिकारी उनके हेलिकाप्टर की तलाशी नहीं ले सकता है। यह ज़रूर लिखा है कि “अगर कभी इस बात को लेकर ज़रा भी संदेह हो कि एसपीजी एक्ट या अन्य विशेष प्रावधानों के तहत अथॉरिटी ने सुरक्षा का मूल्यांकन बढ़ा चढ़ा कर इस तरह से किया है कि उन वाहनों से किसी पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में चुनावी हितों को प्रभावित किया जा सके तो आयोग इस मामले को संबंधित सरकार की नज़र में लाएगा ताकि उचित कदम उठाया जा सके।”
यानी हेलिकाप्टर की तलाशी ली जा सकती है तभी तो आप देख पाएंगे कि हेलिकाप्टर का इस्तमाल चुनाव को प्रभावित करने के लिए हो रहा है या नहीं। ज़ाहिर है मोहम्मद मोहसिन ने ठीक काम किया था। प्रधानमंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह के वाहन की भी तलाशी ली गई थी। यही नहीं जब पत्रकारों ने पूछा कि किस आदेश के तहत सस्पेंड किया गया है उनकी कापी चाहिए तो आयुक्त जी जवाब दे रहे थे कि हम चेक करेंगे। हम पता करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि एक अफसर जांच कर रहा है तो क्या जांच से पहले मोहम्मद मोहसिन को निलंबित करना चाहिए था?
14 जुलाई 1999 का एक और आदेश है। चुनाव आयोग ने इसमें कहीं नहीं लिखा है कि तलाशी से किसी सरकारी विमान या हेलिकाप्टर को छूट दी गई है। 10 अप्रैल 2014 के आदेश में भी यह बात नहीं है कि प्रधानमंत्री के हेलिकाप्टर की तलाशी नहीं ली जा सकती। चुनाव ड्यूटी पर तैनात अफसरों को जो किताब दी जाती है उसमें भी नहीं लिखा है।
चुनाव आयोग ने अपने बचाव में 22 मार्च 2019 के आदेश का हवाला दिया है जिसे हमारे सहयोगी अरविंद गुनाशेखर ने पढ़ा है और अपनी रिपोर्ट में दिखाया भी है। यह आदेश कमर्शियल एयरपोर्ट पर उन लोगों की जांच नहीं होगी जिन्हें एस पी जी सुरक्षा के कारण छूट मिली है। मगर प्रधानमंत्री के हेलिकाप्टर की तलाशी ओडिशा के संबलपुर में हुई जहां कोई एयरपोर्ट ही नहीं है।
प्रधानमंत्री के कारण चुनाव आयोग हर दिन अपना भरोसा खो रहा है। राज्यपाल कल्याण सिंह के ख़िलाफ़ कार्रवाई की सिफ़ारिश राष्ट्रपति को भेज कर निश्चिंत हो गया है। राष्ट्रपति ने भी अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया है। 2019 के चुनाव में संस्थाओं की हर मंज़िल ढहती नज़र आ रही है। जनता को नहीं दिखता तो क्या ज्योतिष लोगों से ही कहा जाए कि वे आयोग के अधिकारियों को हर तरह के रत्न पहना दें ताकि वे अपना संवैधानिक काम कर सकें। क्या कोई ऐसी अंगूठी है जिसे पहन कर चुनाव आयुक्त की उंगलियां सुंदर भी लगें और वे निर्भय और निष्पक्ष होकर संवैधानिक काम कर सकें। अगर यह नहीं हो सकता है तो एक और काम कीजिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अलग से चुनाव आयोग खोल दीजिए जिसका दफ्तर उनके मोबाइल फोन में हो। जय हिन्द।
एनडीटीवी के चर्चित पत्रकार रवीश कुमार की एफबी वॉल से.