सुधीर मिश्रा-
एक्सीडेंट रोकने के लिए सख्त कानून सारी दुनिया में हैं। होने भी चाहिए क्योंकि दुनिया में इंसानी जान से बड़ा क्या हो सकता है। अब आते हैं दस साल की सजा वाले कानून पर। ऐसा कानून बनाने और लागू करने से पहले ट्रैफिक से जुड़े अपने सारे सिस्टम को परखना होगा। ड्राइविंग लाइसेंस बनाने में होने वाली दलाली से लेकर सड़कों के गड्ढे और मनमाने स्पीड ब्रेकर तक। हाईवे पर वसूली के लालच में जान कुर्बान कर देने का दुस्साहस दिखाते सिपाहियों और सरकारी विभागों के लोगों को देखना होगा। ट्रैफिक और आरटीओ की चेकिंग की मंशा में सुधार करना होगा। वसूली के लिए नहीं बल्कि लोगों में ट्रैफिक सेंस लाने के लिए ऐसा हो। इन विभागों में तैनाती को क्रीम पोस्टिंग न बोला जाए।
शराब के ठेके कदम कदम पर हैं। रॉन्ग साइड पर चलना फैशन है। बाइक अगर लहराई नहीं तो फिर काहे का मजा और हेलमेट तो लगाना ही नहीं है। इसे चेक करने का सिस्टम बहुत लचर है। सारा देश दिल्ली या चंडीगढ़ नहीं है। बहुत कुछ ऐसा है जिसे कानून लाने से पहले सुधारना जरूरी है। वरना कानून तो पहले से ही बहुत सारे हैं। लोग उन्हें दिल से माने इसका सिस्टम तो बनाना ही होगा। एक्सीडेंट में ज्यादातर गलती एक आदमी की ही नहीं होती है।
रवीश रंजन शुक्ला-
करोना काल में खबर मिली कि लोग ग्रोसरी खूब खरीद रहे थे यहां तक कि नमक भी बीस-बीस किलो स्टोर कर रहे थे। इस जानकारी के आधार पर मैं मयूर विहार के एक बड़े ग्रोसरी स्टोर पर गया। हैरान रह गया लंबी लाइन लगी थी..अफरा तफरी.. लोग पागलों की तरह कई गैरजरुरी सामान भी खरीद रहे थे। एक शख्श हड़बड़ी में वहां मैगी के कई बड़े पैकेट रख रहा था। स्टोर में काम करने वाली लड़की बार बार समझा रही थी कि सर कोई सामान कम नहीं पड़ने वाला है आप कुछ पैकेट रख दीजिए ताकि दूसरे लोगों को भी थोड़ा-थोड़ा मिल सके। लेकिन वो आदमी सुन नहीं नही रहा था ऊपर से भड़क गया बोला कि मैं पैसे दे रहा हूं मेरे बच्चों को सुबह मैगी खाने की आदत है। ये सुनकर मैं सोचने लगा जो शख्ष इस आपदा में अपने बच्चों के एक टाइम का मैगी तक नहीं मिस करना चाहता है चाहे दूसरे बच्चे को महीने भर मैगी न मिले।
ऐसा समाज सामूहिक होकर कैसे किसी खतरे से लड़ेगा? साल भर बाद इसकी बानगी मुझे 2021 में करोना के वक्त दवा और आक्सीजन के लिए मची भगदड़ में देखने को मिली। अपनी सुविधा के लिए ऐसे स्वार्थी लोग हर बार दूसरों की असुविधा और समाज में अफरातफरी फैलाने के कारक बनते हैं। हमारे समाज में ऐसे बेसब्र लोगों की गिनती कम नहीं है। जो कौव्वा कान ले गया कि तर्ज पर हर बार कौव्वे के पीछे भागने को तैयार खड़े रहते हैं।