मदन मोहन सोनी-
आगरा शहर की पत्रकारिता की बात की जाए तो लोग बड़े आदर और सम्मान के साथ नसीम अहमद का नाम लेते हैं। नसीम अहमद इस वक्त एनडीटीवी से जुड़े हुए हैं। नसीम आगरा से आने वाले एक ऐसे पत्रकार हैं जिन्होंने पत्रकारिता की कोई औपचारिक डिग्री तो नहीं ली है लेकिन कई बार उनकी खबरें देश विदेश में सुर्खियां बंटोर चुकी हैं। नसीम अहमद ने इस पेशे में इज्जत भी बहुत कमाई है। आगरा के लोगों में वो नसीम भाई के नाम से काफी लोकप्रिय हैं।

पत्रकारिता में आने से पहले नसीम अहमद छात्र राजनीति में थें। नसीम के पत्रकारिता में आने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। आइए, आज जानते हैं नसीम अहमद की जिंदगी से जुड़ी कुछ अहम बातों को…
नसीम अहमद के व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो वो एक बेहद साधारण परिवार से आते हैं। उनके पिताजी ट्रक मैकेनिक हुआ करते थें। छह भाई और तीन बहनों का बड़ा परिवार था पर परिवार में शिक्षा का माहौल शुरु से ही था। नसीम अहमद एक 10 साल की बेटी के पिता भी हैं। आज भी नसीम का पूरा परिवार संयुक्त रहता है और इसे वो ईश्वर का आर्शीवाद मानते हैं।
नसीम अहमद की प्रारंभिक शिक्षा आगरा के ही नेहरु इंटरमीडियट कॉलेज से हुई। ग्रेजुएशन की डिग्री उन्होंने आरबीएस कॉलेज आगरा से ली। नसीम के परिवार का दूर दूर तक पत्रकारिता से नाता नहीं रहा है। उनके ताउजी स्वतंत्रता सेनानी थें। नसीम उनके बच्चों की तरह रेलवे या फिर किसी सरकारी नौकरी में जाने की इच्छा रखते थें।
1996-97 में जब नसीम स्कूली शिक्षा प्राप्त कर रहे थें तब वो भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन यानी एनएसयूआई से जुड़ गए। उस दौरान वो संगठन की प्रेस विज्ञप्ति और खबरें लेकर आज अखबार के आगरा कार्यालय जाया करते थें। आज अखबार में डॉ रमेश राय एक पत्रकार हुआ करते थें। नसीम की लेखन शैली से वो प्रभावित रहा करते थें। एक दिन उन्होंने नसीम को काम करने का ऑॅफर दिया और वहीं से नसीम अहमद छात्र राजनीति से पत्रकारिता की दुनिया में कूच कर गए।
नसीम खुद बताते हैं कि शुरुआती दौर में उनकी पत्रकारिता की ट्रेनिंग डॉ रमेश राय के सान्निध्य में आज अखबार में हुई। नसीम आगे की पढ़ाई भी करते रहें और पत्रकारिता भी करते रहें क्योंकि उनके अंदर पत्रकारिता का एक जुनून था। पढ़ाई के दौरान ही नसीम ने तय कर लिया था कि अब पत्रकारिता ही करनी है।
इसके बाद उन्होंने दाता संदेश, ताज केसरी जैसे स्थानीय अखबार के लिए काम किया। ताज केसरी में वो उपसंपादक के पद तक पहुंचे। इसके बाद कई सारे अखबारों और चैनलों के लिए उन्होंने काम किया। आज की तारीख में नसीम एनडीटीवी जैसे बड़े बैनर के साथ काम कर रहे हैं।
नसीम अहमद अपने इस सफर के लिए आगरा के लोगों का बड़ा योगदान मानते हैं। उनका मानना है कि आगरा के लोग उनसे बहुत प्यार करते हैं। वो पत्रकारिता के क्षेत्र में चाहे कितना भी बड़ा मुकाम हासिल कर लें, आगरा के लोग हमेशा उनके दिल में रहेंगे।
वर्ष 1999 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। आगरा में भारत पाकिस्तान समिट हुआ था। पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुर्शरफ आए हुए थें। यह कार्यक्रम एक तरह से नसीम अहमद की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट था। देश भर के पत्रकार आगरा में जुटे हुए थें। नसीम एनडीटीवी के दिवंगत पत्रकार कमाल खान और राजदीप सरदेसाई का जिक्र करते हुए कहते हैं कि इन दोनों ने मुझे खूब प्रेरित किया। नसीम यहां तक कहते हैं कि पत्रकारिता के क्षेत्र में आज मैं जो कुछ भी हूं, वो कमाल भाई की बदौलत हूं।
नसीम को कई बार अपनी निष्पक्ष एवं बेबाक पत्रकारिता की वजह से अलग अलग तरह के दबाव का सामना करना पड़ा लेकिन नसीम कभी झुके नहीं। उन्हें कई बार धमकियां भी मिली लेकिन वो अपना काम ईमानदारी और निष्ठा के साथ करते रहें।
नसीम के काम करने की अपनी खास शैली भी है। वो पत्रकारिता के साथ ही एक सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका भी निभाते हैं। पूरा आगरा इस तथ्य से परिचित है कि जब भी किसी असहाय और कमजोर को इंसाफ नहीं मिलता तो नसीम उनकी आवाज बनकर किसी से भी टकरा जाते हैं। उनका ये अंदाज उन्हें बाकी के दूसरे पत्रकारों से अलग करता है।
इस बारे में जब नसीम से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हमारा समाज आज भी तमाम कमियों के बावजूद पत्रकारों पर बहुत भरोसा करता है। जब लोग अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों से निराश हो जाते हैं, तब उनकी एकमात्र उम्मीद पत्रकार ही होते हैं।
नसीम तमाम मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखते हैं। इंडिया गठबंधन द्वारा देश के 14 न्यूज एंकरों के बहिष्कार के फैसले से वो अपनी असहमती जताते हैं। नसीम यह स्वीकार करते हैं कि आज के दौर में पक्षपात पूर्ण पत्रकारिता हो रही है। यह भी सच है कि बहुत सारे पत्रकार सरकारी प्रवक्ता जैसा व्यवहार कर रहे हैं लेकिन बहिष्कार समाधान नहीं है।
जिन एंकरों से आपकी असहमति हैं, उनके साथ आपको संवाद स्थापित करना चाहिए था। उन्हें अपनी भावनाओं से अवगत कराते हुए उन्हें कुछ समय देना चाहिए था। इस तरह से चुनिंदा पत्रकारों का बहिष्कार लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सही नहीं है।
देखें इंटरव्यू का पहला पार्ट- https://youtu.be/AXEhFF_s9Mc?si=B23dfCnMzhMBvj6n
देखें इंटरव्यू का दूसरा पार्ट- https://youtu.be/wt2Y-mUiNuc