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‘नैनीताल समाचार’ बंद होने की आहट से अब नये सिरे से घर से बेदखली का अहसास हो रहा है

पलाश विश्वास

मुझे बहुत चिंता हो रही है नैनीताल और ‘नैनीताल समाचार’ को लेकर। इससे पहले राजीव नयन बहुगुणा ने ‘नैनीताल समाचार’ बंद होने की आहट लिखकर चेतावनी के साथ इसे बचाने की अपील भी की है। अब डीएसबी कालेज में हिंदी विभाग के अद्यक्ष रहे प्रख्यात साहित्यकार बटरोही जी ने फिर ‘नैनीताल समाचार’ पर लिखा है। ‘नैनीताल समाचार’ न होता तो अंग्रेजी माध्यम से बीए पास करने वाला मैं अंग्रेजी साहित्य से एमए करते हुए हिंदी पत्रकारिता से इस तरह गुंथ न जाता।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p><span style="font-size: 10pt;"><strong>पलाश विश्वास</strong></span></p> <p>मुझे बहुत चिंता हो रही है नैनीताल और 'नैनीताल समाचार' को लेकर। इससे पहले राजीव नयन बहुगुणा ने 'नैनीताल समाचार' बंद होने की आहट लिखकर चेतावनी के साथ इसे बचाने की अपील भी की है। अब डीएसबी कालेज में हिंदी विभाग के अद्यक्ष रहे प्रख्यात साहित्यकार बटरोही जी ने फिर 'नैनीताल समाचार' पर लिखा है। 'नैनीताल समाचार' न होता तो अंग्रेजी माध्यम से बीए पास करने वाला मैं अंग्रेजी साहित्य से एमए करते हुए हिंदी पत्रकारिता से इस तरह गुंथ न जाता।</p>

पलाश विश्वास

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मुझे बहुत चिंता हो रही है नैनीताल और ‘नैनीताल समाचार’ को लेकर। इससे पहले राजीव नयन बहुगुणा ने ‘नैनीताल समाचार’ बंद होने की आहट लिखकर चेतावनी के साथ इसे बचाने की अपील भी की है। अब डीएसबी कालेज में हिंदी विभाग के अद्यक्ष रहे प्रख्यात साहित्यकार बटरोही जी ने फिर ‘नैनीताल समाचार’ पर लिखा है। ‘नैनीताल समाचार’ न होता तो अंग्रेजी माध्यम से बीए पास करने वाला मैं अंग्रेजी साहित्य से एमए करते हुए हिंदी पत्रकारिता से इस तरह गुंथ न जाता।

यह सही है कि गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी की प्रेरणा से हाई स्कूल पास करते ही मैं बांग्ला के साथ हिंदी में भी लिखने लगा था।लेकिन तब मैं कविताएं और कहानियां लिख रहा था।दैनिक पर्वतीय में भी मैं कविताएं ज्यादा लिखा करता था और कभी कभार पन्ना भरने के मकसद से धीरेंद्र शाह के कहने पर टिप्पणी वगैरह कर देता था। जनपक्षधर पत्रकारिता की दीक्षा मेरी नैनीताल समाचार में ही हुई। शेखर पाठक और गिरदा से मैंने रपटें लिखनी सिखी।

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कितने लोग उस टीम में थे। विपिन त्रिपाठी और निर्मल जोशी, जो बाद में हाईकोर्ट के वकील बने, दिवंगत हो गये। भगत दाज्यू दिवंगत हो गये। षष्ठीद्तत भट्ट नहीं रहे। शेरदा अनपढ़ नहीं रहे। उप्रेती जी नहीं रहे। गोविंद पंत राजू बड़े पत्रकार बन गये तो धीरेंद्र अस्थाना बड़े सहित्यकार। कैलाश पपनै भी नैनीताल समाचार से जुड़े थे तो दिवंगत सुनील साह और प्रमोद जोशी भी। वाया गिरदा देशभर के रंगकर्मी भी हमसे जुड़े रहे हैं। शेखर जोशी से लेकर शैलेश मटियानी तक सारे लोगं से नैनीताल समाचार की वजह से घरेलू संबंध बने। नैनीताल समाचार की वजह से महाश्वेता देवी हमें कुमायूंनी बंगाली कहती लिखती रहीं।

हरीश पंत और पवन राकेश नैनीताल में और लखनऊ से नवीन जोशी व्यवस्था की कमान संभाले रहते थे। सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, ज्ञान रंजन, वीरेन डंगवाल, देवेन मेवाडी, पंकज बिष्ट से लेकर हिंदी साहित्य के तमाम लोग और हिमालय से हर शख्स नैनीताल समाचार से जुड़ा था। उमा भट्ट से लेकर उत्तराखंड की कितनी महिला कार्यकर्ता, शमशेर सिंह बिष्ट की अगुवाई में उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी के तमाम कार्यकर्ता जिनमें मौजूदा मुख्यमत्री हरीश रावत, सांसद प्रदीप टमटा, राजनेता राजा बहुगुणा और पीसी तिवारी किसका नामोल्लेख करुं और किसका न करुं।

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नैनीताल के तमाम रंगकर्मी जहूर आलम की अगुवाई में नैनीताल समाचार से जुड़े थे तो डीएसबी कालेज के हर अध्यापक का जुड़ाव नैनीताल समाचार से था। इनमें से चंद्रेश शास्त्री तो दिवंगत हो गये। फेड्रिक स्मैटचेक भी नहीं रहे। बटरोही जी हैं। अजय रावत जी से अब बहुत दिन हुए हमारा संपर्क नहीं रहा। नैनीताल समाचार हर मायने में नैनीताल, उत्तराखंड और हिमालय का प्रतिनिधित्व करता रहा है। उसके बिना न नैनीताल और न हिमालय की कोई कल्पना कर सकता हूं।

नैनीताल समाचार को हम गिरदा जैसे लोगों की विरासत कह सकते हैं लेकिल इसे संपादक राजीव लोचन शाह का निजी उद्यम न माने तो बेहतर हो। चिपको आंदोलन से लेकर पहाड़ के जीवन मरण के हर मसले को लगातार संबोधित करने का यह सिलसिला बंद हो जायेगा तो यह न सिर्फ हिमालयी जनता का, बल्कि हिंदी पत्रकारिता का भारी अपूरणीय नुकसान होगा। हम नैनीताल समाचार के माध्यम से ही लघु पत्रिका आंदोलन होकर समयांतर और समकालीन तीसरी दुनिया से जुड़े।

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राजीवदाज्यू को मैं किशोर वय से जानता रहा हूं और वे सचमुच मेरे बड़े भाई रहे हैं। उनका परिवार मेरा परिवार रहा है और उनका घर मेरा घर रहा है। मैं जब भी पिछले 36 साल की पत्रकारिता में बसंतीपुर अपने घर गया तो नैनीताल हर हाल में जाता रहा है क्योंकि नैनीताल समाचार की वजह से हमेशा नैनीताल मेरा घर रहा है। अब नये सिरे से घर से बेदखली का अहसास हो रहा है।

लेखक पलाश विश्वास लंबे समय तक जनसत्ता कोलकाता में कार्यरत रहे और इन दिनों आजाद पत्रकार के रूप में सक्रिय हैं.

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