गीताश्री-
नेटफ़्लिक्स पर कल रात इस फ़िल्म ने दिमाग़ घुमा दिया. देख डालिए …

सुंदरता क्या होती है
बाहरी या भीतरी ?
रुप – अरुप की मारी लड़कियों को बताती है कि उनका असली सौंदर्य काला, गोरा , मोती दंतमुखी होना नहीं, खुद को शिक्षित करके , आर्थिक रुप से निर्भर होना है… फिर लोग आएँगे पीछे-पीछे.
यह फ़िल्म बताती है कि दुनिया का दारोग़ा अमेरिका किस तरह दो देशों के बीच युद्ध में कुटिल भूमिका निभाता है.
एक महिला पत्रकार से प्रेम करता हुआ एक लीबियाई प्रेमी ( आतंकवादी कहती है दुनिया) मर जाता है और उसके अंतिम शब्द यही होते हैं – “अमेरिका हमें युद्ध में न झोंकता अगर हमारे पास तेल के कुंएं न होते. तुम लोग सतर्क रहो, भारत के पास मिनरल की खदानें बहुत हैं.”
ये प्रेमी का अंतिम वाक्य है.
17 साल का लड़का जिसे जबरन गृहयुद्ध में धकेल दिया गया है. जो अपने छोटे से देश की स्वतंत्रता के लिए हथियार उठा चुका है. वह जानता है कि उसका जीवन बहुत छोटा है, वह एक अनजान दक्षिण भारतीय लड़की से प्रेम कर बैठता है. यह सब फ़ेसबुक के ज़रिये होता है.
यह फ़िल्म बताती है – एक स्वतंत्र चेतना वाली स्त्री को परिवार भी पसंद नहीं करता.
यह भी कि कोई लड़की ऑनलाइन मित्रता का हाथ बढ़ाती है तो विवाहित , अधेड़ सब पुरुष उसे सहज उपलब्ध मानकर सेक्स चैट करने लगे. ऐसे लफ़ंगों को एक्सपोज़ करती है फ़िल्म. और यह भी कि दक्षिण का सिनेमा बहुत बदल गया है. वह स्त्रियों की पारंपरिक छवि बदल रहा है. उसे कठोर, मज़बूत इरादों वाली फ़ौलादी स्त्री में बदल रहा है.
अभिनेत्री तृषा कृष्णन का अभिनय … वाह ! मुझे कई बहादुर महिला पत्रकारों की याद आई जिन्होंने जोखिम उठा कर रिपोर्टिंग की.