पिछले दस दिनों में मैं और मेरे परिवार ने उस डर का सामना किया, जिससे बचने के लिए पूरी दुनिया संघर्ष कर रही है।
घबराहट, ख़ौफ़, बेचैनी जैसे शब्दों ने मेरे परिवार को जकड़ लिया था।
ताई जी 22 जुलाई को पॉज़िटिव आयी और उससे अगले दिन हम घर के सात लोग भी पॉज़िटिव आ गए, जिसमें मेरी आठ माह की गर्भवती वाइफ़ भी थी। पापा पॉज़िटिव नहीं आए जिन्हें साँस लेने में काफ़ी तकलीफ़ हो रही थी।
हम सभी को आइसोलेशन में हॉस्पिटल जाना था और पापा को एडमिट करने की सख़्त ज़रूरत थी।
समझदारी और सूझबूझ से मैंने पहले वाइफ़ के होम आइसोलेशन की इजाज़त ली। उसके बाद सस्पेक्ट के तौर पर पापा को मेरठ के मेडिकल कॉलेज के कोविड आइसीयू में एडमिट करा दिया।
पापा की हालत बिगड़ चुकी थी और उन्हें सिप्ला के इंजेक्शन की सख़्त ज़रूरत थी, लेकिन ये उन्हें ही मिलता जिनकी रिपोर्ट पॉज़िटिव होती। उस दिन शायद ही मैं बेड पर बैठा होऊँगा।
किसी तरह हमने दोनों जीजा जी को ग़ाज़ियाबाद इंजेक्शन लेने भेजा और मैंने पापा की 48 घंटे बाद की रिपोर्ट मँगाई, जिसका पॉज़िटिव आना पक्का था।
कड़ी मेहनत के बाद बड़ी कामयाबी पापा तक वो इंजेक्शन पहुँचना रही। इसके बाद रहा सिर्फ़ इंतज़ार।
अब दस दिन बाद (आज) हम सभी घर पहुँच गए हैं और पापा भी आइसीयू से वार्ड में शिफ़्ट हो गए हैं। उम्मीद है पाँच तारीख़ तक पापा भी घर पर होंगे।
मेरे लिहाज़ से क़ोरोना की इस बीमारी के दो पहलू हैं। पहला हम सब जो बिना किसी लक्षण के हॉस्पिटल में जेल जैसी सज़ा काट रहे थे और दूसरे पापा जिन्हें बीमारी ने कड़ा आघात पहुँचाया।
मैं पूरी दुनिया की तरह दिन रात एक करके मेहनत करता रहा। दोस्ती, रिश्तेदारों के लिए समय ही नहीं था। सच कहूँ, तो उन सभी का दिल से धन्यवाद देना चाहता हूँ, जो मेरे साथ इस मुश्किल की घड़ी में साथ खड़े रहे। ख़ास तौर पर मेरठ बार एसोसिएशन और इलाहबाद बार एसोसिएशन जो हर घड़ी हमारे साथ खड़ा रहा।
निखिल शर्मा
सेंट्रल खेल डेस्क
दैनिक जागरण
नोएडा
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