कल 04 अगस्त 2014 को जब सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर ने एसएसपी लखनऊ के सप्रू मार्ग स्थित गोपनीय कार्यालय पर दो बंद लिफाफे दिए तो वहां स्थित पुलिसवाले ने पहले तो लिफाफे को खोल कर पत्र पढ़ा और जब यह पाया कि इन पत्रों में पुलिसवालों के खिलाफ शिकायत है तो तत्काल ही लेने से मना कर दिया. इनमे एक पत्र में नूतन के साथ हजरतगंज थाने के दो दरोगाओं द्वारा किये गए दुर्व्यवहार और दूसरे पत्र में उनके पति अमिताभ ठाकुर द्वारा इन्स्युरेंस रैकेट के सम्बन्ध में मुक़दमा दर्ज नहीं करने वाले इन्स्पेक्टर हजरतगंज के खिलाफ कार्यवाही की मांग की गई थी. डॉ ठाकुर ने इस घटना के आधार पर डीजीपी यूपी को पत्र लिख कर उनके अधीन सभी पुलिस कार्यालयों में प्रस्तुत पत्र के रिसीव किये जाने के सम्बन्ध में एक समान नीति बनाए जाने तथा उसका पालन नहीं करने कर दिए जाने वाले दंड का निर्धारण करने का अनुरोध किया है. उन्होंने इसकी प्रति मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश को सरकार के समस्त विभागों तथा कार्यालयों में भी किसी भी व्यक्ति द्वारा कोई भी पत्र देने पर तत्काल रिसीव किए जाने हेतु आदेशित करने के लिए भेजा है.
सेवा में,
पुलिस महानिदेशक,
उत्तर प्रदेश,
लखनऊ
विषय- एसएसपी लखनऊ के गोपनीय कार्यालय द्वारा हमारे पत्र खोलने के बाद रिसीव नहीं करने विषयक
महोदय,
कृपया निवेदन है कि मैंने डॉ नूतन ठाकुर निवासी 5/426, विराम खंड, गोमती नगर, लखनऊ हूँ. कल दिनांक 04/08/2014 को मैंने एसएसपी लखनऊ को सम्बंधित अपना एक शिकायती प्रार्थनापत्र संख्या- NT/Insurance/HZG दिनांक- 04/08/2014 एसएसपी लखनऊ के सप्रू मार्ग स्थित गोपनीय कार्यालय पर भेजवाया था. उस पत्र में मेरे पति श्री अमिताभ ठाकुर तथा एक अन्य द्वारा एक कथित इन्स्युरेंस रैकेट के सम्बन्ध में प्रस्तुत प्रार्थनापत्र पर थानाध्यक्ष हजरतगंज द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं करने और इसके अलावा मेरे साथ स्पष्टतया दुर्व्यवहार करने के सम्बन्ध में शिकायत अंकित था.
इसके साथ ही एक प्रार्थनापत्र पत्र संख्या- AT/Insurance/HZG दिनांक- 04/08/2014 भी था जो मेरे पति श्री ठाकुर द्वारा उपरोक्त इन्स्युरेंस रैकेट के सम्बन्ध में धारा 154(3) सीआरपीसी में एफआईआर दर्ज करने हेतु था. ये दोनों प्रार्थनापत्र लिफाफों में सीलबंद थे. उन दोनों प्रार्थनापत्रों को गोपनीय कार्यालय के एक कर्मी, जो सादे में थे और जिनकी उम्र लगभग पचास साल थी, ने लिफाफों से खोल कर निकाला और एक-एक करके पढ़ा. फिर इन पत्रों को पढने ने बाद उन्होंने इसे यह कहते हुए वापस कर दिया कि ये शिकायती प्रार्थनापत्र हैं, ये यहाँ रिसीव नहीं किये जायेंगे.
उन पुलिस अधिकारी को यह समझाने की बहुत कोशिश की कि इससे पहले कई बार इसी कार्यालय पर ऐसे प्रार्थनापत्र रिसीव किये गए हैं पर वे नहीं माने. यह भी पूछा गया कि जब उन्हें पत्र रिसीव नहीं करना था तो उन्होंने पत्र को खोला ही क्यों. उन्होंने इसका कोई उत्तर नहीं दिया और सिर्फ यही कहा कि ये पत्र रिसीव नहीं किये जायेंगे और यदि रिसीव कराना है तो एसएसपी कार्यालय जा कर दिया जाये. इस प्रकार उक्त पुलिस अधिकारी ने पहले तो हमारा बंद लिफाफा खोल कर पढ़ा और जब उन्हें लगा कि इसके शिकायतें अंकित हैं तो उसे लेने से सीधे-सीधे इनकार कर दिया.
चूँकि उक्त कार्यालय काफी दूर था, अतः हार कर मुझे ये दोनों पत्र रजिस्टर्ड डाक से प्रेषित करने पड़े, जिनकी प्रति मैं संलग्न कर रही हूँ. साथ ही पूर्व में इसी गोपनीय कार्यालय द्वारा रिसीव किये गए पत्रों के सम्बन्ध में प्रमाण भी प्रस्तुत कर रही हूँ. यद्यपि उक्त पुलिस अफसर का यह कृत्य निश्चित रूप से कर्तव्य में लापरवाही की श्रेणी में आता है पर मेरा यह पत्र लिखने का उद्देश्य उस एक मामले में कार्यवाही कराना नहीं बल्कि उसके सन्दर्भ में एक बहुत बड़ी समस्या को आपके सम्मुख प्रस्तुत करना है, क्योंकि यह एक अकेली घटना नहीं है बल्कि ऐसी ना जाने कितनी ही घटनाएँ उत्तर प्रदेश के प्रत्येक थाने और पुलिस ऑफिस में आये दिन घटती रहती हैं जिनसे आम आदमी काफी प्रताड़ित और परेशान होता रहता है. अतः इस घटना को दृष्टिगत रखते हुए उपरोक्त तथ्यों के आधार पर मैं आपसे निम्न निवेदन कर रही हूँ-
1. कृपया एसएसपी लखनऊ सहित उत्तर प्रदेश के समस्त एसएसपी एवं पुलिस विभाग के प्रत्येक कार्यालयों के वरिष्ठतम अधिकारियों को इस सम्बन्ध में समुचित निर्देश निर्गत कर दें कि भविष्य में जब भी उनके गोपनीय कार्यालय अथवा दूसरे कार्यालय अथवा उनके अधीन समस्त कार्यालयों पर कोई भी पत्र किसी के द्वारा लाया जाता है तो उसे तत्काल रिसीव कराया जाना सुनिश्चित करें
2. कृपया आपके अधीन समस्त पुलिस कार्यालयों में पत्र के रिसीव किये जाने के सम्बन्ध में एक समान नीति (युनिफोर्म पालिसी) बनाए जाने तथा उसका प्रत्येक स्तर पर पालन किये जाने और इनका पालन नहीं होने और उसकी शिकायत आने पर दिए जाने वाले दंड के सम्बन्ध में समस्त अधिकारियों को निर्देशित किये जाने की कृपा करें
निवेदन करुँगी कि जैसा मैंने ऊपर कहा है यह समस्या मात्र मेरी नहीं है, लाखों आम जन की है जिन्हें पुलिस विभाग के विभिन्न कार्यालयों पर अपना पत्र रिसीव करवाने के लिए भारी मिन्नतें करनी पड़ती हैं और पुलिस विभाग के इन कार्यालयों में नियुक्त अपनी मनमर्जी के अनुसार कभी-कभी इन्हें रिसीव कर लेते हैं और ज्यादातर ये प्रार्थनापत्र/पत्र लेने से उसी प्रकार से मना कर देते हैं जैसा हमारे दोनों पत्रों को एसएसपी लखनऊ के गोपनीय कार्यालय में नियुक्त पुलिसकर्मी ने किया. अतः यदि आपके स्तर से उपरोक्त कार्यवाही और निर्देश निर्गत हो जायेंगे और इनका अनुपालन हो जाएगा तो इससे लाखो आम जन का काफी कल्याण होगा और इन कार्यालयों में पत्र रिसीव करने विषयक पुलिस की मनमानी भी काफी कम हो जायेगी.
पत्र संख्या- NT/Insurance/HZG
दिनांक- 05/08/2014
भवदीय,
(डॉ नूतन ठाकुर)
5/426, विराम खंड,
गोमती नगर, लखनऊ
# 094155-34525
प्रतिलिपि- मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश को इस अनुरोध के साथ प्रेषित कि जो समस्या पुलिस विभाग में देखने को मिलती है वह सचिवालय सहित शासन के लगभग अन्य सभी विभागों, कार्यालयों आदि में भी उसी मात्र में विद्यमान है. अतः कृपया अपने स्तर से भी उत्तर प्रदेश शासन के समस्त विभागों, कार्यालयों, संस्थाओं, संगठनों आदि में प्रत्येक व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किये जा रहे प्रत्येक पत्र रिसीव होने के सम्बन्ध में एक समान नीति (युनिफोर्म पालिसी) बनाए जाने तथा उसका प्रत्येक स्तर पर पालन किये जाने और इनका पालन नहीं होने और उसकी शिकायत आने पर दिए जाने वाले दंड के सम्बन्ध में समस्त अधिकारियों को निर्देशित किये जाने की कृपा करें ताकि पूरे प्रदेश के समस्त विभागों और कार्यालयों में वर्तमान में इस सम्बन्ध में हो रही विकट परेशानी से आम लोगों को निजात मिल सके और भविष्य में जब भी किसी कार्यालय पर कोई भी पत्र किसी के द्वारा लाया जाता है तो उसे तत्काल नियमानुसार रिसीव किया जाए
—
इसे भी पढ़ें…
जब तक दो दरोगाओं को दंडित नहीं करा लूंगी, चैन से नहीं बैठूंगी : नूतन ठाकुर
xxx
तीखे सवाल पूछे जाने पर मैडम सुतापा माइक सिकेरा की तरफ बढ़ाती हैं और सिकेरा एसएसपी प्रवीण कुमार की ओर
xxx
थूथू करवाने के बाद अखिलेश सरकार ने मोहनलालगंज कांड की सीबीआई जांच की सिफारिश की
xxx