Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

पद, पुरस्कार और सम्मान की रिश्वतखोरी जो अब खबर भी नहीं रही

नीतिश कुमार के दल बदलने का ट्रेलर भी पहले पन्ने पर छाया है और फ्रांस की महिला पत्रकार को सरकारी स्तर पर परेशान किये जाने की खबर सिर्फ टेलीग्राफ में

संजय कुमार सिंह

गणतंत्र दिवस कार्यक्रम और भाजपा के प्रचार की खबरों के बीच आज फ्रांस की महिला पत्रकार को सरकारी तौर पर परेशान किये जाने की खबर सिर्फ द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर है। यह खबर जर्नलिज्म ऑफ करेज के पहले पन्ने पर भी  नहीं है। यह सब तब है जब आज के अखबारों में कल के कार्यक्रम और आयोजन की खबरें होनी ही थीं पर नीतिश कुमार के दल बदल की संभावना से संबंधित खबर को ज्यादा प्रमुखता मिली है। मुझे लगता है कि नीतिश कुमार इतनी बार और ऐसे मौकों पर दल बदल कर चुके हैं कि वह खबर नहीं है। खबर यह होनी चाहिये कि नीतिश कुमार आखिर किस दबाव में दल-बदल करते हैं। यह बिल्कुल असामान्य है कि कोई व्यक्ति इस तरह दल-बदल करे और उसे स्वीकार किया जाता रहे। निश्चित रूप से यह घटिया राजनीति का उदाहरण है। खबर राजनीति के गिरते स्तर और भारत रत्न की राजनीति की होनी चाहिये। जैसे सचिन तेन्दुलकर के समय हुई थी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आजकल अखबारों से ऐसी उम्मीद नहीं की जाती है। ऐसे में गणतंत्र दिवस की छुट्टी और फिर सप्ताहांत का समय। न्याय यात्रा में ब्रेक और राहुल के अचानक दिल्ली भागने की खबरें छपती और छपवाई जाती हैं। भाजपा की दलबदल या विधायक खरीदने की राजनीति में खबर कहां होनी है। लेकिन जब खबर नहीं है तो पत्रकार और पत्रकारिता से संबंधित कैसी भी खबर पहले पन्ने पर हो सकती है, रखनी चाहिये। भारतीय मीडिया जब प्रचारक की भूमिका में है तो प्रचार की एक ही खबर या नीतिश कुमार के पाला बदल की संभावना और उससे संबंधित खबरों पर मैं भी क्या लिखूं कि वह पढ़ने लायक हो। हालांकि, मिल गया उसकी चर्चा आगे है। आज भी पहले पन्ने पर भरपूर विज्ञापन है। हालांकि इंडियन एक्सप्रेस और द टेलीग्राफ का पहला पन्ना खबरों वाला है। ऐसे में, आइये जो खबरें हैं उन्हीं की चर्चा कर लूं।

भारत स्थित फ्रांस की पत्रकार को नोटिस दिया जाना और गणतंत्र दिवस समारोह में फ्रांस का मुख्य अतिथि होना निश्चित रूप से बड़ी खबर है। अगर फ्रांस ने कुछ नहीं कहा होता, तो भी। लेकिन द टेलीग्राफ की खबर का शीर्षक है, फ्रांस ने भारत आधार वाले (वाली) पत्रकार का मुद्दा उठाया। तीन कॉलम की यह खबर साधारण नहीं हो सकती है और मोदी सरकार अपने विरोधियों-आलोचकों को जिस तरह नियंत्रित कर रही है उसमें यह महत्वपूर्ण है और इसलिए भी कि उसी देश को मुख्य अतिथि बना दिया गया। सामान्य तौर पर ऐसा होता नहीं है लेकिन जब मीडिया नियंत्रण में हो तो संभव है कि इसकी उम्मीद ही नहीं रही हो पर मीडिया का रुख तो रेखांकित करने लायक है ही। मैं सरकार की आलोचना नहीं करता मीडिया का रुख रेखांकित करता हूं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

नई दिल्ली डेटलाइन से अनीता जोशुआ की खबर के अनुसार, फ्रांस ने भारत से पूछा है कि फ्रेंच पत्रकार वनेसा डॉगनैक का ओवरसीज सिटिजन ऑफ इंडिया कार्ड को रद्द करके क्या उन्हें देश निकाला दिया जा सकता है। फ्रांस ने यह मामला राष्ट्रपति मैक्रॉन के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में दौरे के दौरान उठाया है। भारत में काम कर रहे विदेशी पत्रकारों ने इस महिला पत्रकार का मामला उठाया है और नई दिल्ली से अपील की है कि भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं के क्रम में स्वतंत्र प्रेस के अहम कार्य को पूरा कराएं। डॉगनैक पर उनकी संदिग्ध रिपोर्टिंग से भारत की नकारात्मक छवि बनाने का आरोप है। वे इस आरोप से इनकार करती हैं। वैसे भी, भारत की छवि ऐसे कार्यों से ज्यादा खराब होती है रिपोर्टिंग से क्या होती होगी। पहले ऐसे मामले नहीं होते थे तो अब क्यों हो रहे हैं। दोनों महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।

जाहिर है, यह सरकार की भूमिका या उसका नजरिया है। पर यह खबर तो है ही और खबर नहीं छपने का मतलब आप समझ सकते हैं। ऐसा नहीं है कि डॉगनैक भारत में नई हैं या कोई नवसिखुआ हैं और गलती से कुछ लिख दिया होगा। वे एक भारतीय से ब्याही हैं और 22 वर्षों से भारत में रह रही हैं। इस मामले में उन्होंने प्रक्रिया के जारी रहने तक अपनी निजता का सम्मान करने का आग्रह किया है। अखबार ने लिखा है कि इस बारे में सीधे पूछे गये सवालों के जवाब में विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने इस बात की पुष्टि की कि फ्रांस ने यह मामला उठाया है। और यह यात्रा की तैयारियों तथा यात्रा के समय भी हुआ है। डॉगनैक फ्रेंच साप्ताहिक, ली प्वाइंट और कैथोलिक समाचार पत्र ला क्रॉइक्स के लिए लिखती हैं। उन्हें 19 जनवरी को भारत के गृहमंत्रालय से नोटिस दिया गया था जो वीजा के उल्लंघन के लिए उनका ओसीआई कार्ड रद्द करने की संभावना से संबंधित था। उन्हें दो फरवरी तक इसका जवाब देना है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कहने की जरूरत नहीं है कि विदेशी अखबार जो लिखता-छापता है वह उसकी संपादकीय नीति के अनुकूल है। उसमें भारत की आलोचना है और भारत सरकार को यह मंजूर नहीं है तो कार्रवाई संपादक के जरिये होनी चाहिये और कहा जाना चाहिये कि ऐसा होगा तो हम आपके संवाददाता का वीजा रद्द कर देंगे या देश निकाला दे देंगे। ऐसी हालत में संवाददाता अपनी नौकरी और वीजा दोनों बचा पायेगा और मामला भी निपट पायेगा। लेकिन यहां मामला अलग लगता है। मकसद रिपोर्टर को देश में रहने की शर्त बताना है। निश्चित रूप से मैं गलत हो सकता हूं पर मामला इस स्तर और मिजाज का है। मैं रिपोर्ट कर रहा होता तो इन बातों को देखता पर जो छपा है उससे यही लग रहा है और मुझे लगता है कि देसी अखबार सरकार की आलोचना करना तो छोडिये आलोचना करने के आरोपी का साथ भी देने की स्थिति में नहीं हैं। पर वह अलग मुद्दा है।

मुझे यह बताना है कि खबरों के मामले में ऐसी स्थिति है और अयोध्या में मंदिर बनते ही ज्ञानव्यापी मंदिर का मुद्दा खड़ा हो गया है और सरकारी प्रचार के अलावा जब खबरों की कमी है तब अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता नहीं दी है और अमर उजाला ने अपने दूसरे पहले पन्ने पर जो लीड बनाया है उसका शीर्षक है, “प्राण प्रतिष्ठा के बाद अब राष्ट्र प्रतिष्ठा को उंचाइयों पर ले जाने का वक्त : मोदी।” मोदी सरकार की विदेश नीति और दूसरे देशों से संबंध की बात की जाये तो फ्रांस के उदाहरण के अलावा पड़ोसी देशों से संबंध देखे जा सकते हैं। पड़ोसियों से खराब संबंध के बावजूद प्रतिष्ठा कैसे बढ़ेगी और कहां बढ़ेगी? अभी तक जो हुआ वह क्या है उसकी कोई चर्चा नहीं करना स्वतंत्र मीडिया का हाल रोज बताता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बात इतनी ही नहीं है, 2024 के लोक सभा चुनावों के लिए हिन्दू मुस्लिम विभाजन या हिन्दुओं के संतुष्टीकरण की अपनी नीति पर चलते हुए भाजपा की राज्य सरकारें यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की तैयारी में हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, यूनिफॉर्म सिविल कोड पास करने के लिए उत्तराखंड विधानसभा 5 फरवरी को विशेष सत्र का आयोजन करेगा। इस खबर का उपशीर्षक है, भाजपा शासित गुजरात, असम की योजना ऐसे ही बिल की;  लोकसभा चुनावों से पहले तीन राज्यों में यूसीसी लागू हो सकता है। एक्सप्रेस एक्सप्लेन्ड में कहा गया है, भाजपा की राजनीतिक रणनीति पार्टी शासित राज्यों में यूसीसी को पहले लागू करने की है और इसमें फोकस मुख्य रूप से स्त्री पुरुष समानता पर रहेगा और पूर्वजों की संपत्ति में बेटियों को समान अधिकार देना है। इस तरह विवादास्पद मुद्दे बाहर रखे जायेंगे। उसे उम्मीद है कि इसका कम विरोध होगा और इस तरह राष्ट्रीय कानून के लिए स्थितियां बन जायेंगी।

मेरा मानना है कि संतुष्टीकरण की नीतियों पर चलते हुए भाजपा ने जब देखा कि समाज का एक बड़ा वर्ग न्याय मांगने और दिलाने के वादों से प्रभावित हो सकता है तो कर्पूरी ठाकुर भारत रत्न हो गये उनके सचिव रहे बिहार के वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर को पद्म पुरस्कार मिल गया। कहा जा सकता है कि यह संयोग है पर तथ्य यह है कि मोदी सरकार ने हिन्दी पत्रकारों में भाजपाई झुकाव वाले बलबीर दत्त को (जन्म 1935) 2017 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। बलबीर पुंज पहले से राज्यसभा सदस्य हैं और तमाम प्रचारक पत्रकारिता पढ़ा रहे हैं या इस ‘कला’ की सेवा का ईनाम प्राप्त कर चुके हैं। ऐसे में बिहार में नीतिश कुमार के पाला बदलने की खबर अगर संयोग लगे तो आज ही खबर है कि अमित शाह पटना जा रहे हैं। 25 फरवरी 2023 को उन्होंने कहा था, ‘नीतीश के लिए बीजेपी के दरवाजे बंद हो चुके हैं’। आज सुशील मोदी का कहा द टेलीग्राफ का कोट है, (नवोदय टाइम्स में भी है), “राजनीति में कोई भी दरवाजा स्थायी रूप से बंद नहीं होता। उन्हें जरूरत के अनुसार खोला या बंद किया जाता है। जरूरत होगी तो वे खुलेंगे।”

Advertisement. Scroll to continue reading.

दूसरी ओऱ नीतिश कुमार के बचाव में अमर उजाला की खबर है, परिवारवाद पर नीतिश के बयान पर लालू प्रसाद की बेटी रोहिनी ने सोशल मीडिया पर बिना नाम लिये नीतिश कुमार को अवसरवादी और बदतमीज करार दे दिया। हालांकि बाद में पोस्ट डिलीट कर दी। पर नीतिश ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर है, … उमेश कुशवाहा ने कांग्रेस को सलाह दी कि वह साझेदारों और सीटों के बंटवारे के अपने स्टैंड पर खुद विचार करे। जनता दल यू विधायक गोपाल मंडल ने कहा, अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए आदमी कुछ भी कर सकता है। नीतिश का अस्तित्व दांव पर था। उनका सम्मान नहीं किया जा रहा था। …

यहां मुझे नीतिश के बारे में तेजस्वी के बयान भी याद है और एक लाख 25 हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा और उसका अंदाज भी। उससे और कर्पूरी डिविजन से बिहार के अस्तित्व पर प्रभाव नहीं पड़ा तो इन नेताओं का अस्तित्व कितना महत्वपूर्ण है यह राजनीति का मुद्दा है। रिपोर्टिंग की राजनीति की चर्चा में पत्रकारों को पत्रकारिता पढ़ाने से लेकर पद्म पुरस्कार जैसे ईनाम की खबरों के बीच यह बताना दिलचस्प है कि आज ही द टेलीग्राफ की खबर है, नीतिश का गठबंधन से अलग होना अच्छा है। अखबार ने ममता बनर्जी के हवाले से यह खबर सूत्रों की बताई है और ऐसी खबरों में एक खबर यह भी है कि बंगाल में कांग्रेस से गठजोड़ न होने का दिखावा भी राजनीतिक लाभ के लिए है। ऐसे में रिपोर्टिंग के भ्रष्टाचार और ना खाऊंगा ना खाने दूंगा के दावे को याद कीजिये और मान लीजिये कि दल बदल अस्तित्व की रक्षा के लिए करना पड़ता है। वे तो बस आपकी सेवा के लिए व्याकुल हैं, तरस रहे हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बीते हुए दिनों की अखबारी समीक्षाएँ पढ़ने के लिए इसे क्लिक करेंhttps://www.bhadas4media.com/tag/aaj-ka-akhbar-by-sanjay-kumar-singh/

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement