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सुख-दुख

सौरभ में बहुत जज़्बा था… पिछले दस साल में कितना कुछ कर डाला…

Saurabh Sharma


 

Pankaj Shukla : पिछले महीने 17 तारीख़ को तुमसे कितनी लम्बी बात हुई। पंकज भाई ये करना है , पंकज भाई वो करना है – मेरठ आने का बुलावा। इसके बाद फिर याद दिलवाया कि जल्दी कार्यक्रम बनाऊं। गजब कर दिया सौरभ तुमने , इतनी जल्दी चले गए। अरे, बहुत जज़्बा था इस आदमी में। पिछले दस साल में कितना कुछ कर डाला। पत्रकारिता के साथ कहानी , कविताएं – एल्बम लांच। ऊब तो गया था वो अख़बार के अंदर हो रही घटिया राजनीति से, आहत भी था लेकिन कुछ नया करने का हौसला और ज़्यादा कुलांचे मार रहा था। हिल गया हूं मौत की ख़बर सुनकर। बहुत दुःख हो रहा है। एक बढ़िया इंसान चला गया। बहुत याद आओगे सौरभ। (न्यूज30 चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार पंकज शुक्ल के फेसबुक वॉल से.)

Saurabh Sharma


 

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Pankaj Shukla : पिछले महीने 17 तारीख़ को तुमसे कितनी लम्बी बात हुई। पंकज भाई ये करना है , पंकज भाई वो करना है – मेरठ आने का बुलावा। इसके बाद फिर याद दिलवाया कि जल्दी कार्यक्रम बनाऊं। गजब कर दिया सौरभ तुमने , इतनी जल्दी चले गए। अरे, बहुत जज़्बा था इस आदमी में। पिछले दस साल में कितना कुछ कर डाला। पत्रकारिता के साथ कहानी , कविताएं – एल्बम लांच। ऊब तो गया था वो अख़बार के अंदर हो रही घटिया राजनीति से, आहत भी था लेकिन कुछ नया करने का हौसला और ज़्यादा कुलांचे मार रहा था। हिल गया हूं मौत की ख़बर सुनकर। बहुत दुःख हो रहा है। एक बढ़िया इंसान चला गया। बहुत याद आओगे सौरभ। (न्यूज30 चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार पंकज शुक्ल के फेसबुक वॉल से.)

Harsh Kumar : मेरठ में दैनिक जागरण में मेरे कई साल तक साथी रहे सौरभ शर्मा का आकस्मिक निधन मुझे हिला गया। रक्षाबंधन के त्योहार के दिन बहन के घर आया था और सुबह सो कर उठा तो ये खबर एक मित्र ने फोन पर दी। स्तब्ध रह गया। जागरण  को वे छोड़ चुके थे ये तो पता था लेकिन बीमार थे, ये नहीं पता था। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उनसे जुड़ी एक याद शेयर करना चाहूंगा। आफिस में मैं बुलंदशहर-बिजनौर डेस्क का इंचार्ज था और वे बागपत के। आमने-सामने डेस्क थी। उन्हें गर्मी बहुत लगती थी और सर्दियों में भी एसी चला दिया करते थे। एसी बिल्कुल मेरे सिर पर लगा था। उन तक तो केवल ठंडक पहुंचती थी लेकिन मेरे सिर पर बर्फ बरसती थी।  इस बात को लेकर अक्सर मेरी उनसे झड़प हो जाया करती थी। एक दिन मैंने ठान लिया कि आज अगर सौरभ ने एसी चलाया तो उसे बता दूंगा। सौरभ आए और एसी चलाकर अपनी डेस्क पर जा बैठे। जैसे ही मुझे ठंड का अहसास हुआ मैं गुस्से से उठा और स्विच आफ कर आया। स्विच सौरभ की ओर लगा था। मुझे लगा था कि आज झगड़ा तय है लेकिन सौरभ ने मेरी ओर देखा और मुस्कुरा दिया। मुझे भी हंसी आ गई और उस दिन सब कुछ सामान्य हो गया। दोनों साथ चाय पीने आफिस से बाहर गए और कभी कोई अनबन नहीं हुई। सौरभ का चले जाना इसलिए धक्का देने वाला है क्योंकि वह हमउम्र था और ये उम्र मौत नहीं जिंदगी जीने की होती है। बच्चों को बड़े होते देखना दुनिया का सबसे बड़ा सुख है और उसी उम्र में बच्चे सबसे ज्यादा मां-बाप को मिस करते हैं। वे बच्चे बड़े बदनसीब होते हैं जिनके सिर से बचपन में ही मां या बाप का साया उठ जाता है। सौरभ वी विल मिस यू। (दैनिक जागरण समेत कई अखबारों में कार्य कर चुके और इन दिनों नवोदय टाइम्स में कार्यरत पत्रकार हर्ष कुमार के फेसबुक वॉल से.)

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