प्रीति चौधरी-
तद्भव अंक 23में जब हमने सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल का लघु उपन्यास ‘पतिया’ पढ़ा था तो दंग रह गये थे। हाल के दिनों में देश में चल रही बहस के मद्देनजर इस उपन्यास पर फिर से नजर गयी तो लगा कि इस पर लिखा जाना चाहिए और ऋचा के साथ मिलकर ये लेख मुकम्मल हुआ जिसे Economic &Political Weekly में जगह मिली है।
बताते चलें कि तद्भव के संपादक अखिलेश जी ने इसे आलोचक वीरेंद्र यादव जी के मार्फत पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया था।इस उपन्यास की परिमल प्रकाशन वाली मूल प्रति अभी भी वीरेंद्र यादव जी के ही पास है। अब पतिया को राजकमल प्रकाशन से प्राप्त किया जा सकता है।


