संजय कुमार सिंह-
पहले पन्ने की इन कामचलाऊ खबरों के मुकाबले ‘न्याय यात्रा’ खबर नहीं है?
आज के अखबारों में पहले पन्ने पर चार ही खबर मुख्य रूप से हैं। पांचवीं खबर राम लला की मूर्ति लगाई गई है लेकिन वह असामान्य खबर है और घोषित रूप से अखंड रिपोर्टिंग का हिस्सा। इसलिए उसे छोड़कर बाकी खबरों की बात करता हूं। खबरें इस प्रकार हैं – 1) पाकिस्तान ने ईरान पर जवाबी हमला किया, नौ मरे। 2) नाव पलटी 12-14 छात्र और दो शिक्षक मरे 3) दिल्ली में चार मंजिली इमारत में आग लगी, 5 मरे और 4) 22 जनवरी आधे दिन की छुट्टी रहेगी। इन दिनों जब सरकार मंदिर में व्यस्त है तो अखबारों में भी मंदिर है पर इन चार खबरों में एक या उससे ज्यादा भी मेरे सातों अखबारों में पहले पन्ने पर जरूर हैं। इन चार खबरों की चर्चा इसलिये कर रहा हूं कि लगभग सभी अखबारों के पहले पन्ने से न्याय यात्रा की खबर लगभग गायब है।
आज पहले पन्ने पर एक और दिलचस्प खबर है। ज्यादातर अखबारों में सिंगल कॉलम है इसलिए पहले ध्यान नहीं गयाा। अमर उजाला ने इसे तीन कॉलम में छापा है। शीर्षक है, (यासीन) मलिक ने ही की थी वायु सैनिकों की हत्या। उपशीर्षक है, हमले में बच गये प्रत्यक्षदर्शी पूर्व वायु सैनिक ने पेशी के दौरान शिनाख्त की। खबर के अनुसार यह 1990 का मामला है औऱ 34 साल बाद चश्मदीद ने हत्यारे की शिनाख्त कर दी। हत्यारे को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये ‘पेश’ किया गया था। इस हमले में स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना सहित चार जवान मारे गये थे। 40 लोग घायल हुए थे। इन और ऐसी अन्य खबरों के मुकाबले मणिपुर में चार लोगों की गोली मार कर हत्या की खबर कम और अमर उजाला में छोटी भी छपी है। जो हिन्दुस्तान टाइम्स में सेकेंड लीड है।
आज की कुछ और खबरें जो पहले पन्ने पर हो सकती थीं …
हिन्दुस्तान टाइम्स
1. इंदौर में अनाथालय से प्रताड़ित लड़कियां छुड़ाई गईं, लोहे के चमटों से जलाया गया था, उल्टा लटकाया गया था।
2. प्रधानमंत्री जमीन पर सोये, नारियल पानी के आहार पर
3. बिलकिस बानो के अपराधियों ने जेल जाने के लिए समय मांगा है, सुप्रीम कोर्ट अपील पर सुनवाई करेगी
द टेलीग्राफ
4. मोदी की गारंटी वाली गाड़ी अभी एक महीने और चलेगी
टाइम्स ऑफ इंडिया
5. मुहूर्त में बच्चा – 22 जनवरी को ऑपरेशन से प्रसव कराने की भीड़
न्याय यात्रा की चर्चा आज द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर सिर्फ कोट में है और यह जयराम रमेश का कोट है जो हिन्दी में इस प्रकार होगा, “भारत जोड़ो न्याय यात्रा बहु-मंडप, बहु-धर्म कार्यक्रम है। यह यात्रा लोकतंत्र की शहनाई बाजाती है।”
कोई जरूरी नहीं है कि आप इससे सहमत हों। यह दावा है और दावे के रूप में खबर भी है। द टेलीग्राफ के अलावा आज नवोदय टाइम्स में एक खबर दिखी, भारत जोड़ो न्याय यात्रा के खिलाफ असम में एक प्राथमिकी। सोशल मीडिया पर इस संबंध में मुख्यमंत्री का बयान और राहुल गांधी का भाषण भी है। लेकिन वह पहले पन्ने पर नहीं है। दूसरी ओर, आज पहले पन्ने पर जो खबरें हैं वो पहले पन्ने की खबरें तब होतीं जब दूसरी खबरें नहीं हों। इनमें पाकिस्तान-ईरान की खबर को लीड बनाने का कारण हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड के शीर्षक से समझ में आता है। शीर्षक है, पाकिस्तान ने ईरान पर पलटवार किया सो टकराव बढ़ने का डर।
वैसे, दुर्घटना और मौत की खबरों में ज्यादा मरने वालों को बड़ी खबर मान लिया जाता है और 12 बच्चों तथा दो शिक्षकों की मौत को ईरान में नौ बड़े लोगों की मौत को शायद बड़ी खबर मान लिया गया है। लापरवाही या किसी संयोग से दो शिक्षक सहित 12 बच्चे गुजरात में मरे पर अखबारों ने ईरान में पाकिस्तान की जैसे को तैसा जैसी कार्रवाई और उसमें नौ लोगों के मरने की खबर को लीड बनाया है। बेशक यह ज्यादा महत्वपूर्ण है पर खबर? पाठकों का जुड़ाव? मुझे लगता कि यह अखंड कवरेज की आज के मीडिया की प्रवृत्ति का भाग है। बहुत पहले से कहा जाता है कि आप पाठकों और दर्शकों को अपनी पसंद या सुविधा की कोई खास चीज देते हैं और फिर वही देने लगते हैं। दलील यही होती है कि पाठक उसे पसंद करते हैं। इस लिहाज से इंडियन एक्सप्रेस की आज की सेकेंड लीड है, राम लला की नई मूर्ति स्थापित (यह अंग्रेजी के शब्द का उपयुक्त अनुवाद है। कायदे से विराजमान हुई जैसा कुछ लिखना चाहिये)। शीर्षक में आगे लिखा है, आज हवन (अनुष्ठान) के लिए मंच तैयार। अमर उजाला में यह लीड है और शीर्षक है, गर्भगृह में आसन पर विराजे राम लला।
पहले पन्ने की आज की एक खबर है, दिल्ली की चार मंजिला इमारत में आग लगी। छह की मौत। मुझे लगता है कि दिल्ली शहर की यह घटना दिल्ली के अखबारों के लिए बड़ी खबर है। दिल्ली में आग लगने की घटनाएं होती रहती हैं। सुरक्षा नियमों में चूक और लापरवाही के मामले भी सामने आये हैं। अमूमन जहां सुरक्षा ठीक होती है वहां दुर्घटना होती ही नहीं है लेकिन व्यवस्था ऐसी है कि दुर्घटना ही खबर बनती है। मनुष्य खुद सुरक्षा पर खर्च करने से बचता है। किसी को लगाया जाये कि वह लोगों को इसके लिए कहे तो वह क्यों कहने जाये और कम पैसे लेकर आंख क्यों न मूंद ले। यही सब होता है और जो लोग सीट बेल्ट नहीं लगाते उन्हें ऐसे खर्चों की जरूरत बतानी होगी पर किंग मेकर होने का शौक या उससे जुड़ी सुविधाएं इन बातों पर ध्यान नहीं देने देती हैं। ऐसे में खबरों की परिभाषा बदल गई लगती है।
मुझे लगता है कि जिन अखबारों में पहले पन्ने पर जगह कम है वहां जो खबरें छपी हैं उनमें कई पहले पन्ने लायक नहीं है और कई दूसरी खबरें रह गई है। न्याय यात्रा तो एक खबर है, जो खबरें छूटी हैं वो कई हैं। आगे उन खबरों पर भी आता हूं और आप खुद तय कीजिये कि इन खबरों को छोड़कर जो खबर पहले पन्ने पर लगाई गई है क्या वह इस लायक है। यहां मुझे यह कहने में कोई दिक्कत नहीं है कि देश का एक नागरिक, एक राजनीतिक दल और उसके समर्थक जब 67 दिन की लगभग 6700 किमी की न्याय यात्रा निकाल रहे हैं तो उसकी खबर पहले पन्ने पर नहीं है। मुझे लगता है कि आप यात्रा के या यात्रा करने वाली पार्टी के विरोधी हों तो भी इसे प्रमुखता से छाप कर बताया जाना चाहिये कि आप क्यों इसके खिलाफ हैं। क्यों यह बेमतलब है। उपयोगी है तो कोई बात ही नहीं है। 67 दिन चलने वाली यात्रा ऐसी नहीं है कि रोज पहले पन्ने पर अपडेट न हो, उससे संबंधित कुछ हो ही नहीं, जिसे पहले पन्ने पर जगह दी जा सके।
खासकर तब जब माहौल पूरी तरह मंदिर और हिन्दुत्व के प्रचार का है। इससे, देश भर में फैले 20 करोड़ लोग आतंकित हैं। इससे ज्यादा लोग डरे हुए हैं। तब कोई न्याय की बात कर रहा है। बाकी जो नेता लोग बोल रहे हैं जो जवाब मिल रहा है वह अपनी जगह है पर ऐसा नहीं है कि वह खबर नहीं है। अखबार अगर इन खबरों को प्राथमिकता नहीं दे रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कि वे तय नहीं कर पा रहे हैं कि किसके साथ रहना है, किसे प्रचार देना है या जिसके साथ रहने और जिसका प्रचार करने की मजबूरी है उसके साथ नहीं हैं। मुझे नहीं पता कि कारण क्या है, कौन किस मुश्किल में है। अगर मैं अखबार निकाल रहा होता तो पहले पन्ने पर एक निश्चित जगह इस यात्रा को जरूर देता है। ऐसी है यह यात्रा। हालांकि, मैं या मेरा अखबार पहले से कांग्रेस समर्थक घोषित होता तो इससे बचता। नहीं तो, इसे छापकर कांग्रेस समर्थक करार दिये जाने का जोखिम उठाता।
यह इसलिए कि आजकल निष्पक्ष दिखने का दबाव है और मैं पत्रकारिता को वैसे नहीं देखता हूं। मेरा मानना है कि अपने काम से अगर कांग्रेस समर्थक साबित होउंगा तो विरोधी भी हो जाउंगा और उसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिये। वैसे भी, “मौनं स्वीकृति: लक्षणम्” अर्थात मौन स्वीकार्यता का लक्षण है। यहां आप यात्रा के उद्देश्य को स्वीकार करने का लक्षण मान सकते हैं। पर वह मेरी चिन्ता नहीं है। मेरा काम यह बताना है कि यात्रा को नजरअंदज करने का मतलब या कारण क्या हो सकता है। मुख्य रूप से यह कि यात्रा को उद्देश्यपूर्वक नजरअंदाज किया जा रहा है। यात्रा की अच्छाई-बुराई जो भी है वह तो कवर करने और बताने से पता चलेगी। और बताना यह भी चाहिये कि उसे कैसा समर्थन मिल रहा है या नहीं मिल रहा है। बाकी अखबारों के बिना उसका जो प्रभाव होना है वह होगा ही। वह पार्टी की योग्यता कुशलता और समर्थन पर निर्भर करेगा।
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