संजय कुमार सिंह-
सरकार दरअसल कर्मचारियों को वेतन दिलाने की बजाय प्रचारकों से अपनी छवि बनवा रही है… ई पाञ्चजन्य (@epanchjanya) नाम के ब्लूटिक वाले ट्वीटर हैंडल से पीआईबी के लोगो वाले इस ‘सर्टिफिकेट’ को 20 सितंबर को ट्वीट किया गया था। इसके अनुसार, बीबीसी की खबर की यह हेडलाइन भ्रामक है। ट्वीटर प्रोफाइल के अनुसार यह एक राष्ट्रीय साप्ताहिक पत्रिका है और व्हाट्सऐप्प पर भी उपलब्ध है। ट्वीटर पर इसके 409 हजार (जीरो के चक्कर में धंधा चौपट होता हो तो मैं क्यों जोखिम लूं) फॉलोअर हैं।
ट्वीट के अनुसार, “फेक न्यूज फैला रहा है बीबीसी”।
बीबीसी ने अपने एक आर्टिकल के हेडलाइन में दावा किया है कि #ISRO के लिए लॉन्चपैड बनाने वाले हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचईसी) के कर्मचारियों का 18 महीने का वेतन बकाया है। यह हेडलाइन भ्रामक है।
ट्वीट के अनुसार, एचईसी को #चंद्रयान 3 के लिए किसी भी घटक के निर्माण का काम नहीं सौंपा गया था। एचईसी ने @isro के लिए सितंबर 2003 से जनवरी 2010 तक कुछ बुनियादी ढांचे की आपूर्ति की थी।”
तब मैंने लिखा था, “खबरें सही होंगी या गलत होंगी। पीआईबी सरकारी विभाग है, गलत क्यों नहीं कह रहा है और भ्रामक खबर पहचानना उसका काम कब से हो गया? सही ‘खबर’ कौन-कब देगा? दिलचस्प यह कि किसी ‘संपादक’ को नहीं दिख रहा है कि इस खबर से ‘भ्रम’ दूर कर दिया जाये। वैसे पहले बनाये हों या अब, बनाने वाले तो हैं ही।“
कहने की जरूरत नहीं है कि संघ परिवार और प्रचारकों की रणनीति जो हो, महत्वपूर्ण नहीं है। लेकिन पीआईबी से यह काम क्यों करवाया जा रहा है? सरकारी पैसे से सरकार अपना काम करवाये तो शायद गलत नहीं होगा पर काम ही गलत हो तो? इस मामले में तो यही लगता है। एक तो बीबीसी की खबर अमूमन गलत नहीं होती (भ्रामक बताई गई थी) और आज हिन्दू में यही खबर है। इससे पहले यह खबर कई बार, कई मीडिया संस्थानों ने खबर दी है। खबर पर कार्रवाई करने की बजाय सरकार खबर को भ्रामक बता रही है और पाञ्चजन्य उसे प्रचारित कर रहा है।
यह सब तब zeebiz.com ने 14 जुलाई 2023 को आईएएनएस को खबर प्रकाशित की थी जिसका शीर्षक था, चंद्रयान-3 का लॉन्चिंग पैड बनाने वाले एचईसी के इंजीनियरों-कर्मियों को 17 महीने से नहीं मिली है सैलरी, आखिर क्यों? इसमें कहा गया था, चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग पर हर्ष में डूबे देश के लोग इस बात पर हैरान हो सकते हैं कि इस यान के लिए लॉन्चिंग पैड सहित तमाम जरूरी उपकरणों को बनाने वाली कंपनी के इंजीनियरों-अफसरों-कर्मियों को 17 महीनों से तनख्वाह नहीं मिली है। चंद्रयान सहित इसरो के तमाम बड़े उपग्रहों के लिए लॉन्चिंग पैड बनाने वाली इस कंपनी का नाम है- हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन (एचईसी)।
कहने की जरूरत नहीं है कि 17 महीने की तनख्वाह और खबर छपने के बाद के दो महीने कुल 19 महीने में तनख्वाह मिल गई होती तो इस मुश्किल और जोखिम भरे समय में ऐसी खबरें (या भ्रामक शीर्षक) छाप कर कोई क्यों जोखिम लेता? प्रचारकों को चाहिये कि प्रधानमंत्री का अंध समर्थन की बजाय तथ्यों को जांच परख लें वरना उनकी साख भी जाती रहेगी। बाकी, ‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा’।
मुझे लगता है कि इस खबर से परेशानी का कारण यह है कि प्रधानमंत्री चंद्रयान की सफलता का श्रेय लेना चाहते हैं और समर्थक इसमें तन-मन-धन से लगे हैं। दानिश अली के खिलाफ संसद में गाली अभियान चलाये जाने का कारण यह भी था कि उन्होंने इस मामले में अपने विचार रखे थे। अभी मैं उस विस्तार में नहीं जाउंगा पर यह बताना है कि कर्मचारियों को वेतन मिल जाए तो यह विवाद खत्म हो जाएगा और झूठ बोलने या साख खराब करने की जरूरत नहीं रहेगी। लेकिन पसंद अपनी-अपनी और तरीका अपना-अपना।
रांची डेटलाइन से द हिन्दू में आज पहले पन्ने पर पांच कॉलम में, दो कॉलम की फोटो के साथ छपी, अमित भेलारी की खबर के अनुसार, प्रधानमंत्री बनने से पहले, दिसंबर 2013 में नरेन्द्र मोदी एक चुनावी सभा को संबोधित करने रांची गये थे। इसमें उन्होंने एचईसी की स्थिति पर निराशा जताई थी। 10 साल बाद भी बहुत नहीं बदला है। कुछ कर्मचारियों का तो कहना है कि यह बंद होने की कगार पर है। वेतन भुगतान में देरी का कारण पूर्णकालिक अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक का नहीं होना है। भेल के अधिकारियों को एचईसी का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है। यह मोदी सरकार की अलग योग्यता है। पर उनके भक्तों की नाराजगी या अत्यधिक सक्रियता का कारण यह भी है कि लोग तबके और अबके मोदी की तुलना कर रहे हैं। और 56 ईंची का सच उजागर हो जा रहा है।
द हिन्दू की आज की खबर PSU engineers who build equipment for ISRO await salary का लिंक