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सुख-दुख

पीएम केयर्स फंड में दान देना ‘घूस’ देने के बराबर क्यों है!

विनोद चंद-

मैंने एक पोस्ट में लिखा कि टाटा ने 1500 करोड़ रुपए एक ट्रस्ट को दिए जिसका नाम पीएम केयर्स फंड था और जिसके बारे में बाद में पता चला कि वह सरकारी नहीं है। कई लोग टाटा के इस निर्णय का बचाव कर रहे हैं, सही ठहरा रहे हैं।

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मुद्दा यह है कि टाटा ने 1500 करोड़ रुपए टैक्स के रूप में (या सीएसआर फंड के रूप में) दिए होते पर पीएम केयर फंड में देकर इस राशि पर कर में छूट प्राप्त की।

इससे हुआ यह कि पैसे भारत सरकार के पास जाने की बजाय एक निजी फंड में गया और यह राशि 1500 करोड़ रुपए है।

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अब लोग इस भुगतान का बचाव कर रहे हैं क्योंकि और भी ट्रस्ट हैं जो आपको दान पर कर में छूट भी दिलाते हैं।

साथियों, आप यह क्यों नहीं समझ रहे हैं कि यह घूसखोरी का सीधा और स्पष्ट मामला है और नुकसान उठाने वाले ‘हम’ यानी भारत के नागरिक हैं।

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जब किसी निजी ट्रस्ट को ‘दान’ मिलता है तो दानदाता को कर में छूट मिलती है पर दान लेने वाला यानी ट्रस्ट दानदाता को दूसरे लाभ दिलाने की स्थिति में नहीं होता है। (यहां जिस ट्रस्ट का नाम पीएम केयर्स है और जिसके सर्वेसर्वा प्रधानमंत्री हैं के साथ ऐसी बात नहीं है।) दूसरी ओर, आम ट्रस्ट के मामले में यह चर्चित है कि वे चेक से दान लेते हैं और नकद वापस कर देते हैं। यह राशि 20 से 50 प्रतिशत होती है। धार्मिक ट्रस्ट भी ऐसा करते हैं। एक टेलीविजन चैनल ने इसपर स्टिंग किया था। एक बाबा वापस की जाने वाली राशि का 200% मांग रहे थे। यानी दो करोड़ दीजिए एक करोड़ नकद वापस लीजिए।

इस तरह, टाटा ने 1500 करोड़ रुपए दिए, टैक्स में छूट हासिल की और राशि उस ट्रस्ट के पास गई जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चलाते हैं। बेशक, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस दान के बदले काम करने की स्थिति में हैं। उन्होंने वही किया। एयर इंडिया को सिर्फ 3000 करोड़ में बेच दिया और 15,000 करोड़ कर्ज के रूप में स्थानांतरित हुआ है जो किस्तों में (सक्षम होने पर) चुकाया जाना है।

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अगर आपको इस पूरे लेन-देन में कुछ गलत नजर नहीं आ रहा है तो आपसे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है। आप गूंगे, बहरे और अंधे हैं।

इसके बारे में सोचिए, अगर यह पैसा भारत सरकार को मिला होता तो इसका उपयोग देश में कहीं एक और एम्स बनाने के लिए किया जा सकता था। अब यह राशि पीएम केयर्स फंड में पड़ी हुई है और फंड अपने संग्रह या खर्चों का विवरण देने से मना कर रहा है। यह तभी हो सकता है जब फंड निजी हो।

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भारत के नागरिकों के साथ एक धोखा किया गया है और आपको यह ठीक लग रहा है। इससे आपके मानसिक स्वास्थ्य के बारे में हम क्या मानें? मेरी नजर में आप बोस डीके हैं।

इसके पहले वाली पोस्ट ये है-

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रतन टाटा ने टीसीएस से 1000 करोड़ और टाटा संस से 500 करोड़ पीएमकेयर्स फंड में दिए। उन्होंने इस फंड में पैसे दिए और टैक्स राहत ली।

मतलब जनता के फायदे के लिए भारत सरकार को टैक्स देने के बजाय रतन टाटा ने पीएमकेयर्स फंड में 1500 करोड़ का भुगतान किया।

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लेकिन पीएमकेयर्स एक निजी फंड है जो आरटीआई के तहत नहीं आता है और इस फंड में योगदान भारत के समेकित फंड में नहीं जाता है।

इस प्रकार रतन टाटा ने 1500 करोड़ एक निजी कोष में दिए। क्योंकि, पीएमकेयर्स भले ही निजी ट्रस्ट और फंड है, इसमें दान देने वालों को टैक्स रियायत मिलती है और फंड में दिए गए दान को टैक्स देनदारियों के मुकाबले माना जा सकता है।

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लेकिन फायदा देखिए। उन्हें सिर्फ 3000 करोड़ में 144 जेट्स वाली एयरलाइन मिली और खातों में 15,000 करोड़ का कर्ज मिला जो उन्हें एक निश्चित अवधि में चुकाना है।

बेशक पीएमकेयर्स फंड में ‘दान’, किसी निजी फंड को दिया गया हो पर रिश्वत नहीं माना जाना चाहिए।

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रिश्वत एक गंदा शब्द है। रतन टाटा ने दान दिया है।

मैं इंतजार कर रहा हूं कि कब कोई मेरे एनजीओ का परिचय रतन टाटा से कराएगा।

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Vinod Chand की पोस्ट का संजय कुमार सिंह द्वारा अनुवाद।

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