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सुख-दुख

प्रधानमंत्री पत्रकारों को विदेश नहीं ले जाते हैं, सेवा पूरी पाते हैं

संजय कुमार सिंह-

आज आप खुद देखिये कि कैसी और किन खबरों की मौजूदगी में अखबारों ने किन खबरों को कितना महत्व दिया है और सरकार की कैसी सेवा चल रही है… वैसे भी, संपादकीय आज़ादी का मतलब सरकारी ख़बरों को प्रमुखता देना या PM को हीरो बनाना नहीं है…

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने पत्रकारों को साथ ले जाना बंद कर दिया था और तब उनके समर्थकों ने तारीफ की थी कि उन्हें प्रचार की जरूरत नहीं है और वे कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों से अलग हैं। बाद में पता चला, शक हुआ और आरोप लगे कि वे अपने साथ देश के चोटी के कारोबारियों को ले जाते रहे हैं उन्हें विदेशी शासकों से मिलवाने तथा उनकी सिफारिश करने के भी आरोप हैं। सरकार ने इनका कोई जवाब नहीं दिया है। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री के साथ अडानी के विदेश जाने से संबंधित सवाल पूछे – उसका आज तक कोई जवाब नहीं आया है। फिर भी अखबार पत्रकारों की पूरी सेवा कर रहे हैं वह भी तब जब पत्रकारों को साथ नहीं ले जाने का कारण संदिग्ध है। सोमवार, 22 मई 2023 की खबरों और प्रस्तुति पर एक टिप्पणी। 

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पत्रकारों को विदेश घूमने के मौके और अनुभव हासिल करने से वंचित रखने का मामला तो है ही। ऐसे में सरकार और प्रधानमंत्री का प्रचार करने वाली विदेशी खबरें विदेशी डेटलाइन से लीड छप रही हैं। अंग्रेजी अखबारों में आज डेटलाइन दिल्ली है जबकि हिन्दी के दो अखबारों में हिरोशिमा। अगर खबर वाकई इतनी महत्वपूर्ण है और छपनी ही थी तो सरकारी व्यवस्था क्यों नहीं है, अखबार अपना संवाददाता क्यों नहीं भेजते और सभी खबरों का स्रोत “एजेंसी” लिखने का क्या मतलब है। भारत में बैठकर लिखी गई खबर पर हिरोशिमा डेटलाइन लगाना ठगी और चारसौबीसी नहीं है? वह भी तब जब एजेंसियां वहीं हैं जिनकी सेवाएं लेना इस सरकार ने बंद कर दिया है और संघ से जुड़ी एक एजेंसी की सेवाएं लेनी शुरू की है। एक को खास संरक्षण दिया जा रहा है।

इस तरह सरकार किसी एजेंसी के खिलाफ और किसी पर खास तौर से मेहरबान है। किसी के कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन-भत्ता नहीं मिलता और किसी को पेंशन नहीं मिली। दूसरी ओर, एजेंसी लिखने से पता ही नहीं चलता है कि खबर किसकी है। अखबारों द्वारा सरकार की यह ‘सेवा’ तब की जा रही है जब नरेन्द्र मोदी या संघ परिवार के नेतृत्व में देश में जो हालात बनें हैं वो अघोषित इमरजेंसी जैसे हैं। अखबारों में विरोध तो छोड़िये, जबरदस्त गुण-गान चल रहा है और हालात बताने के लिए किताबें लिखी जा रही हैं। गोदी वाले इन किताबों की भी चर्चा नहीं करते। हाल में मुझे 2021 में प्रकाशित एक किताब मिली। अंग्रेजी की इस किताब का नाम है, “इंडियाज अनडिक्लेयर्ड इमरजेंसी – कांस्टीट्यूशनलिज्म एंड द पॉलिटिक्स ऑऱ रेसिस्टेंस”।

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अधिवक्ता अरविन्द नारायण की इस किताब का नाम अगर हिन्दी में होता तो कुछ इस तरह होता, “भारत का अघोषित आपातकाल – संवैधानिकता और बाधा खड़ी करने की राजनीति”। इसे वेस्टलैंड पबलिकेशंस के कांटेक्स्ट ने प्रकाशित किया है और मुद्रित कीमत 699 रुपये है। कहने की जरूरत नहीं है कि इमरजेंसी के बाद या उस दौरान किताबें कम छपी थीं और इंडियन एक्स्रेस जैसे अखबार खबर नहीं छापकर भी सबकुछ बता देते थे। अब इमरजेंसी या सेंसर नहीं है पर खबरें भी नहीं हैं और अघोषित इमरजेंसी से संबंधित किताबें लगातार आ रही हैं। जाहिर है, पाठकों के साथ देश समाज पर इनका वह असर नहीं है जो अखबारों से होता।

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1 Comment

1 Comment

  1. Aamir Kirmani

    May 23, 2023 at 10:30 pm

    पीएम मोदी के प्रति मीडिया घरानों की चापलूसी और चमचागिरी इस कदर हावी है कि ANI जैसी न्यूज़ एजेंसी भी पीएम मोदी के ऑस्ट्रेलिया पहुंचने पर पहले तो ट्वीट करती है कि मोदी को रिसीव करने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एयरपोर्ट पहुंचे.
    हालांकि जब खोजी पत्रकार पत्रकारों ने पड़ताल की तो पता चला कि ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री तो एयरपोर्ट आए ही नहीं, उन्होंने भारत मे ऑस्ट्रेलिया के हाई कमिश्नर को पीएम मोदी को रिसीव करने एयरपोर्ट भेजा था।
    इसके बाद ANI ने न केवल अपना फ़र्ज़ी ख़बर वाला ट्वीट डिलीट किया, बल्कि संशोधित ट्वीट भी किया कि हाई कमिश्नर ने भारतीय प्रधानमंत्री को रिसीव किया।

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