एनडीटीवी पर पीएम मोदी के 9 वर्षों के कामकाज से संबंधित प्रॉपेगैंडा कार्यक्रम को भाजपाई भी नहीं देख रहे हैं!

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प्रकाश के रे

एनडीटीवी के हिन्दी और अंग्रेज़ी चैनलों पर एक डॉक्यूमेंटरी सीरिज़ शुरू हुई है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी के नौ सालों के कामकाज का विश्लेषण हो रहा है. यह अलग बात है कि पहला ही एपिसोड बता रहा है कि यह विश्लेषण नहीं, प्रॉपेगैंडा है. पहला भाग कूटनीति पर है. कंटेंट छोड़ दीजिए, महा बकवास है, पर सबसे ख़राब पहलू प्रस्तुति है. नैरेटर ऊबा हुआ है, तो विशेषज्ञ थके हुए. उन्हें भी लग रहा है कि वे जो बातें कर रहे हैं, उनका कोई मतलब नहीं है.

यह भाग 17 मई को रिलीज़ हुआ है, पर अभी तक (9.30 बजे सुबह) एनडीटीवी हिन्दी के यूट्यूब चैनल पर 39 सौ लोगों ने देखा है, जबकि इसके सब्सक्राइबर 1.52 करोड़ हैं. अंग्रेज़ी वाले पर 29 सौ से भी कम लोगों ने देखा है. वहाँ लगभग सवा करोड़ सब्सक्राइबर हैं.

ऐसा लगता है कि 18 करोड़ सदस्यों वाली पार्टी भाजपा भी इसमें दिलचस्पी नहीं ले रही है. अगर दिलचस्पी लेती, तो उसके कुछ नेता, कार्यकर्ता, ट्रोल तो इस कार्यक्रम के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट करते.

ख़ैर, सबसे अधिक निराशा इस बात की हुई कि एनडीटीवी के वही लोग पहले कैसे कार्यक्रम बनाते थे और अब क्या करने लगे हैं. मैं कंटेंट की बात नहीं कर रहा हूँ, मोदी जी की उपलब्धियों का बखान कर पाना भारी मुश्किल काम है क्योंकि बखान करने के लिए कुछ ख़ास है नहीं. अगर थोड़ा कुछ कहने को है, तो वह कूटनीति के मोर्चे पर ही है.

लेकिन कार्यक्रम तो ढंग का हो सकता था- वॉयस ओवर में कोई उत्साह नहीं है, इससे बढ़िया कैमरा-लाइटिंग तो रील्स बनाने वाले कर लेते हैं, एडिटिंग का क्या कहें, क़स्बों में शादी-ब्याह का वीडियो बनाने वाले इससे अच्छा काम जानते हैं.

जब मुझे इतनी निराशा हुई है, तो साहेब को कैसा लगा होगा!

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