शीतल पी सिंह-
फ़्रांस के प्रशासन ने रफाल युद्धक विमानों के मामले में एक ज्युडीशियल इन्क्वायरी नियत की है। एक जज इस मामले में घटे अपराध (यदि कुछ हुआ है) की जाँच कर रहे हैं। सारी दुनिया समेत भारत की समाचार एजेंसियों और समाचार पत्रों में यह खबर है।
पर बीजेपी और सरकार की तरफ़ इस ख़बर के चर्चित हुए छत्तीस घंटे बीत जाने के बाद भी एकदम शांति व्यापी हुई है!
देश के मुख्यधारा के टीवी चैनलों पर भी कोई संध्याबहस इस मुद्दे पर नज़र न आई! ये इतना सन्नाटा क्यों है भाई?!

रफाल युद्धक विमान भारत ने फ़्रांस से ख़रीदे हैं। इस ख़रीद में अनिल अंबानी (दिवालिया) के साथ मिलकर बड़ी दलाली के गंभीर आरोप लगे पर भारत में सुप्रीम कोर्ट तक को मैनेज कर लिया गया यह धारणा है। वजह यह है कि जिनके काल में सुप्रीम कोर्ट ने इस सौदे की किसी तरह की जाँच का गला घोंटा वे CJI रिटायर होते ही राज्य सभा को सुशोभित करते पाए गए।
लेकिन सभ्य समाज के लोकतांत्रिक देश फ़्रांस में इस मामले की जाँच बैठ गई है। फ़्रांस की नज़र से देखें तो उसे तो इस सौदे से लाभ ही लाभ था। उसकी ठप्प होती कंपनी को इस सौदे से आक्सीजन मिली थी लेकिन वहाँ के मीडिया और लोकतांत्रिक समाज ने सवाल उठाना जारी रक्खा और अब एक जज की सुपरदारी में सौदे की जाँच किये जाने का ऐलान हुआ है।
भारतीय प्रेस जो अपनी रीढ़ को रबर में बदल चुका है इस पर या तो बेरुख़ी दिखाएगा या लीपापोती करेगा। सिर्फ़ साहसी पोर्टलों पर यह खबर चलेगी। चलाएँ।
राकेश कायस्थ-
`मैं भी चौकीदार’ वाली डीपी लगाने का टाइम फिर से आ गया है। फ़्रांस में राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच शुरू कर दी गई है। उधर ब्राजील की सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि मोदीजी के लंगोटिया यार राष्ट्रपति बोलसेरो की सरकार ने भारत कोरोना के जो टीके मंगवाये थे, उस सौदे में घपले की जाँच की जाये।
राफेल वाला प्रकरण हर किसी को याद होगा। पुरानी सरकार का सौदा रद्द करके उससे कई गुना महंगी कीमत पर सौदा दोबारा किया गया था। बैंकों को अरबो रूपये का चूना लगा चुके दिवालिया कारोबारी अनिल अंबानी के रातो-रात बने फर्म को उन कंपनियों में शामिल किया गया था, जो आगे चलकर भारत में राफेल बनाएंगी।
राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद फ्रांस्वा ओलांद ने स्वीकार किया था कि उनसे पार्टनर के रूप में अंबानी के फर्म को शामिल करने का आग्रह किया गया था। बकौल अरूण शौरी ” मोदीजी इस सौदे से इतने मुदित थे कि उन्होंने राष्ट्रपति ओलांद की झप्पी एक बार नहीं बल्कि दो बार ली। पहली बार सामने से गले मिले और फिर उससे जी नहीं भरा तो दोबारा पीछे से जाकर पकड़ लिया।”
इलेक्शन के समय राफेल का मामला गूंजा तो मोदीजी ने इस सौदे को राष्ट्रीय गर्व वाला इवेंट बना दिया। सरकार ने कोर्ट में कहा कि अगर हमारे पास राफेल होता तो हम पाकिस्तान के साथ चीन की भी ईंट से ईंट बजा देते। बाद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह राफेल पर नींबू मिर्ची टांगने गये तो भक्तों ने अखंड नर्तन किया और देश के दुश्मनों को जमकर लानतें भेजीं।
उम्मीद थी की मामला दब जाएगा लेकिन बेड़ा गर्क हो फ्रांस के जजों का जो मॉर्निंग वॉक तक पर नहीं जाते। भक्तों का संडे खराब करने वाली दूसरी ख़बर ब्राजील से आई है। राष्ट्रपति बोलसोनेरो ने भारत से कोविड के जो टीके आयात किये थे, उसमें कथित घोटाले की जाँच का आदेश वहाँ की सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया है।
आरोप है कि टीकों की खरीद के लिए ज्यादा पैसे दिये गये। इस प्रकरण में सरकार की सबसे बड़ी मुसीबत ये है कि स्वास्थ्य मंत्रालय के आयात विभाग के प्रमुख लुईस रिकॉर्डो मिरांडा ने कहा है कि उनपर भारत बायोटेक से टीके खरीदने का दबाव डाला गया था।
मुझे उम्मीद है कि इस तरह की ख़बरों से भक्तों का हौसला नहीं टूटेगा। वे कहेंगे कि माना राफेल महंगे में खरीदा गया लेकिन कोवैक्सीन भी तो महंगे में बेचा गया। यानी कहीं ना कहीं मोदीजी ने मास्टर स्ट्रोक ज़रूर खेला है।
दिलीप मंडल-
RafaleScam की फ्रांस के जज द्वारा जांच से मोदी सरकार को समस्याएं…
- जज का नाम अरुण मिश्रा या गोगोई नहीं है
- वह जज भारत आकर मॉर्निंग वाक नहीं करेगा
- उस जज को राज्यसभा MP या किसी कमीशन का चेयरमैन नहीं बनाया जा सकता
- जज पर यौन उत्पीड़न के आरोप नहीं हैं
- जज कोलिजियम से नहीं बना