सत्येंद्र पी एस-
पत्रकार सत्तासीन दल को लेकर जोश में हैं. यह उनकी जाति वाली पार्टी लगती है. राहुल गांधी अभी फिलहाल विजातीय हैं.
फिर भी…
राहुल गांधी को पत्रकारों से मिसबिहैव करने की जरूरत नहीं है. देर सबेर वह सत्ता में आएंगे तो पत्रकारों को अपने जूते की नोक पर रख ही लेंगे. अरविंद केजरीवाल जब धरने पर बैठते थे तो पत्रकार उनसे इतना मिसबिहैव करते थे कि मुझे मर्सी बेस पर उन पर रहम आने लगी थी. अब किसी पत्रकार की औकात नहीं है कि वह अरविंद केजरीवाल के खिलाफ एक शब्द लिख दे.
पत्रकार की किसी को सत्ता में लाने की औकात नहीं होती है. जब कांग्रेस सत्ता में थी तो नरेंद्र मोदी यही आरोप लगाते थे कि अखबार चैनल कांग्रेस की दलाली कर रहे हैं. अब राहुल गांधी वही बात कह रहे हैं.
सही मायने में मिसबिहैव तो मायावती, मुलायम सिंह, लालू प्रसाद जैसे लोग झेलते हैं. सत्ता में थे तब भी उनसे बदतमीजियों भरे सवाल पूछे जाते थे, जिनका कोई मतलब नहीं था. लेकिन ये नेता हंस मुस्कुराकर निपटा देते थे.
पत्रकारों को ठेके पर डालकर और उन्हें असुरक्षित बनाकर उनकी आवाज छीनी गई. मीडिया मालिकों ने पत्रकारिता को धंधा बना डाला. कई गुंडा मवालियों ने तो यूट्यूब वगैरा को अब अधिकारियों, कर्मचारियों, दुकानदारों, डॉक्टरों वगैरा से वसूली करने का साधन बना लिया है. वहीं आम लोग भी अखबार से ज्यादा व्हाट्सऐप वगैरा पर भरोसा करने लगे हैं.
अगर पत्रकारिता को राहुल गांधी स्वतंत्र करना चाहते हैं तो उसके बारे में तरीका ढूंढें. पत्रकारिता को सत्ता में आने का टूल न बनाएं कि पत्रकारों को गरियाने से वोट बैंक बढ़ेगा. पत्रकार निरीह प्राणी होते हैं. जिस संस्थान में पत्रकार भूखे नंगे रहते हैं, वह अखबार पत्रकारों की आह से बंद हो जाते हैं.