
अनिल कुमार यादव-
बहुत दिन बाद अभी फरवरी के शुरू में मृगेंद्र से ग्रेनो के कलाधाम में मुलाकात हुई. स्कल्पटर(सिर्फ मूर्तिकार नहीं) है. बीएचयू के फाइन आर्टस विभाग में पढ़ाता है. साउथ एशिया आर्ट फेयर में दिल्ली आया था. अपने मन की जिंदगी जीने की जिद पालने वाला छात्रावास युग का स्पेशल दोस्त है. साल भर, पीने भर की फिल्टर वाली बीड़ी लाया था. उस दोपहर मूर्तिशिल्पों के बीच, उसने कहा, याद है डालमिया हास्टल में लू लगने से तुम एक बार गिर पड़े थे. तुम कहीं से आए. कमरे में घुसने से पहले, पसीने से लसलस पैर धोने बाथरूम की तरफ गए. आधा घंटा बीत गया, नहीं लौटे तो मैं देखने गया. तुम नल के पास बेहोश पड़े थे. किसी तरह घसीट कर लाया.
मैने हैरानी से उसे देखा क्योंकि ऐसा कुछ याद नहीं था.
मैं कई दिन परेशान रहा कि ऐसी घटना की भी याद क्यों नहीं है, क्या मैं खुद को इतना तुच्छ समझता हूं. बहुत कोशिश करने पर दुर्गंध, साबुनों के रैपरों के साथ बाथरूम की टूटी जाली में फंसे लड़कों के बाल और पानी के शोर जैसा कुछ याद आय़ा लेकिन पूरी तस्वीर नहीं बन सकी. …फिर अचानक सबकुछ समझ में आ गया. अगर मुझे उस घटना की याद रही होती तो उसके बाद कई बार लू खाकर बेहोश हुआ होता. अक्सर दिन में खाना नहीं मिलता था और बहुत पैदल चलना होता था. स्मृति ने उस घटना को मिटा इसलिए दिया कि हर हाल में चलते जाना दुख और आत्मदया से ज्यादा जरूरी था. सर्वाइवल इंस्टिक्ट जैसा कुछ है जो स्मृति को भी नियंत्रित करता है.
एक गर्मी की दोपहर, हिमाचल के रक्कड़ में मैने राकेश राइडर से उपहार मिला पदार्थ खींच लिया था. जागोरी से हेलीपैड की तरफ अपने डेरे पर जाते हुए गले में सूईयां चुभने लगीं. काफी देर बाद एक नाला आया. बड़ी देर तक पानी को देखते हुए इरादा करता रहा कि पांच चुल्लू पी लूं लेकिन बहुत गंदगी और डिटर्जेंट का झाग था. डायरिया होना पक्का था. कुछ दूर और कि सूरज बमकने लगा, पहाड़ों से निकलती गर्मी झुलसाने लगी और चारों तरफ हवा में गरजती पानी की समुद्र जैसी लहरें दिखने लगी. आखिरी दो किलोमीटर की सीधी चढ़ाई लहराते हुए कई बार गिरने से बचा. बस एक चीज दिमाग में थी कि प्यास क्या चीज है, आज यह ठीक से जान लेना है. अंततः डेरे पर पहुंच कर, बहुत प्रयास करके ताला खोलने के बाद, पानी का जो पहला घूंट मैने पिया, उसकी स्मृति कभी नहीं जाएगी.
यह सब मैं क्यों बता रहा हूं जब घनघोर सांप्रदायिक घमंड के बूते नेता प्रतिपक्ष, राहुल गांधी को संसद से निकाल दिया गया है. अचानक कांग्रेस के लंबे शासन के अतीत हो चुके अत्याचार बच्चों का खेल लगने लगे हैं.
क्या इस देश को आपातकाल और जेपी आंदोलन की स्मृति है?
मुझे है. महिला ग्राम इंटर कालेज के प्राइमरी सेक्शन में एक लड़की ने प्रार्थना के समय बताया कि आज उसने रास्ते में एक बड़ी बाल्टी कटे हुए अंडकोष देखे. बस, हम सभी एक हाथ से बस्ता और एक हाथ से पैंट-स्कर्ट पकड़े जिधर जगह दिखी भाग निकले. इस घटना को अखबारों में आपातकाल के विरोध में प्राइमरी के छात्रों के बॉयकाट के रूप में दर्ज किया गया. क्या आज फ्लाइट ऑर फाइट की परिस्थिति रचने जितना भय है?
नहीं है. हमें हिंदू बनने का नया-नया चस्का लगा है जैसे पाकिस्तान को सैंतालिस में मुसलमान बनने का लगा था. मिडिल क्लास का आकार बहुत बड़ा हो गया है. वह पहले की तुलना में लालची, मूर्ख और अर्धमानव हुआ है. ज्यादा संभावना है कि हम पहले पाकिस्तान बनेंगे फिर कभी होश आया तो कुछ और बनेंगे.
न तानाशाह लू की स्मृति है, न सामूहिकता के प्यास की, न लोकतंत्र के पानी की. एक समांतर इतिहास-वर्तमान-भविष्य का खाका बनाया जा चुका है जिसके हिसाब से हमारा पहला काम पंचर चिपकाते, अंडे का ठेला लगाते मुगलों से बदला लेना है.
फिर भी…फिर भी पंजाब और हरियाणा के किसानों के अपने हक के लिए लड़ मरने की स्मृति तो है. जीत-हार तो बहुत बाद की बात है. अगर यह देश लड़ गया तो चमत्कार ही होगा… और मुझे स्मृति से अधिक चमत्कार में यकीन है.
मैं बुलंद आवाज में चिल्लाना चाहता हूं. हो सकता है तुम मौका पाकर अपनी दादी से, इससे भी बड़े तानाशाह बन जाओ लेकिन अभी तुम अकेले नहीं हो!
One comment on “अचानक कांग्रेस के लंबे शासन के अतीत हो चुके अत्याचार बच्चों का खेल लगने लगे हैं!”
मैं अनेक कारणों से कांग्रेस को अच्छा नहीं समझता हूं। मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरे पिता स्व यज्ञदत्त शर्मा की अलीगढ़ में नियुक्ति के समय एमएससी में दाखिले के समय मेरे पिता जो कि एक राजपत्रित अधिकारी हुआ करते थे, से डीएस स्नातकोत्तर कॉलेज के प्राचार्य ने नसबंदी के पांच केस लाने की शर्त रखी। मेरे पिता ने कहा कि मेरे बेटे के 66% अंक हैं और मेरिट में उसका तीसरा स्थान है आपके यहां 27 छात्रों का प्रवेश होना है। इसमें उसको नसबंदी के केस लाने की शर्त से मुक्त करना चाहिए। इस पर प्राचार्य ने हेकड़ी दिखाते हुए कहा कि मुझे जिलाधिकारी ने 2000 केस लाने की जिम्मेदारी दी है, इसलिए आपको रियायत मिलने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता क्योंकि आज जिला स्तरीय अधिकारी हैं और आप पर भी जिलाधिकारी के आदेश लागू होते हैं।
मेरे पिता मुझे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दाखिला कराने के लिए ले गए और वहां पर मेरा मेरिट में सातवां स्थान आया और मुझे वनस्पति शास्त्र में पैथोलॉजी स्पेशलाइजेशन के लिए प्रवेश मिल गया। किसी की हिम्मत नहीं थी कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रशासन तंत्र से नसबंदी के केस मांगे इसलिए उनका कोई लक्ष्य तय ही नहीं किया गया था।
मैं इस घटना को कभी नहीं भूल पाऊंगा।