केपी सिंह-
भारत जोडों यात्रा से राहुल गांधी की छवि विराट छवि तैयार, पार्टी को मिलेगा कितना टानिक इस पर लग रहे कयास
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की कश्मीर से कन्या कुमारी तक की भारत जोडो यात्रा का पटाक्षेप सोमवार को श्रीनगर में हो गया। इसमें 35 हजार किलोमीटर से अधिक का सफर राहुल गांधी ने लगभग 5 माह में पैदल चलते हुये पूरा किया। भारतीय इतिहास में किसी नेता की इतनी लम्बी पद यात्रा का रिकार्ड रचते हुये राहुल गांधी ने अपनी पार्टी को कोई बडा राजनीतिक फायदा पहुंचा पाया हो या न पहुंचा पाया हो पर अपनी संजीदा, सौम्य और साफ सुथरे नेता की ऐसी छवि गढने में कामयाबी हासिल कर ली है जिससे पप्पू के रूप में पहले बनायी गयी उनकी इमेज बदल चुकी है। व्यक्ति केन्द्रित भारतीय राजनीति में राहुल गांधी की छवि के इस तरह से विराटकाय होने से भविष्य में कांग्रेस पार्टी के नये उत्थान का अनुमान लगाया जाने लगा है।

राहुल गांधी की हठयोगनुमा इस यात्रा को पहले लो प्रोफायल में धकेलने की सुनियोजित ढंग से बहुत कोशिश की गयी जिसके तहत मुख्य धारा की मीडिया ने उन्हें बहुत दिनों तक कवरेज नहीं दिया लेकिन उनकी यात्रा के दिल्ली पहुंचते पहुंचते स्थिति ऐसी बन गयी जिससे मुख्य धारा की मीडिया उन्हें स्थान देने के लिये बाध्य होने लगी। राहुल गांधी को शायद पहले से इसका अंदाजा था इसलिये मीडिया के रवैये की वजह से उन्होेने अपने मनोबल में कोई गिरावट नहीं होने दी। राहुल गांधी ने अपनी यात्रा की ओर देश के समूचे जन समुदाय का ध्यानाकर्षित करने के लिये पहले दिन से ही न्यूज पोर्टलों सहित सोशल मीडिया को पकडा और यह रणनीति बेहद कामयाब रही।
इस दौरान मुख्य धारा की मीडिया में उनकी यात्रा को लेकर खबरे छपी भी तो नकारात्मक। यात्रा के दौरान गुजरात विधान सभा के चुनाव सम्पन्न हुये जिसमें उनकी पार्टी कहीं की नहीं रही । इस दौरान हुये उपचुनाव भी उनकी पार्टी के लिये बेहद निराशा जनक रहे। तेलांगना में जहां उनकी यात्रा का उत्साह पूर्ण स्वागत हुआ था एक लोकसभा क्षेत्र के उप चुनाव में कांग्रेस पार्टी भाजपा से भी पीछे होकर तीसरे स्थान पर रही। मुख्य धारा की मीडिया ने इसे उनकी यात्रा को हवा हवाई साबित करने के सुबूत के तौर पर प्रस्तुत किया पर राहुल गांधी विचलित नहीं हुये । यात्रा के आखिर में हुयी जनसभा में उन्होने कहा भी कि कांग्रेस के मित्रों को मेरे यह कहने से शायद निराशा हो कि यह यात्रा मैने कांग्रेस पार्टी के लिये नहीं हिन्दुस्तान के लोगो के लिये निकाली थी और उनका यह कहना ठीक भी था। इस यात्रा ने देश की राजनीति में बडी लकीर खींचने में सफलता प्राप्त की है।
पद यात्रा के दौरान उनके लिये कई धनात्मक प्रसंग भी सामने आये। रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी और मंदिर निर्माण ट्रस्ट के सर्वेसर्वा चंपत राय ने उनकी यात्रा की सराहना भी की । जिससे भाजपा के लोगों की बोलती बंद सी हो गयी थी। भाजपा के आम समर्थकों तक ने उनकी इतनी लंबी पद यात्रा के संकल्प को लेकर उनके प्रति सहानुभूति दिखाई । सबसे ज्यादा चर्चा कडाके की ठण्ड के बाबजूूद उनके द्वारा मात्र एक टीशर्ट में लगभग पूरा सफर तय करने की हुयी। भक्त प्रजाति के भाजपा समर्थकों ने इस पर व्यंग भी किये पर जब उन्हें लगा कि लोगो को यह सुहा नहीं रहा है तो उन्हें छींटाकशी से बाज आना पडा । गर्म कपडों के बिना सिर्फ टीशर्ट में सर्दी में चलने की पे्ररणा के पीछे उन्होने कई जगह एक मार्मिक कथा सुनाई जिससे लोग उनसे प्रभावित हुये।
उन्होंने पूरी यात्रा में अपने भाषण को इसे नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलने के प्रयास के बतौर निरूपित किया । कहीं भी उन्होंने व्यक्तिगत कटुता पर आधारित भाषण नहीं किये, अपने भाषण को मुख्य तौर पर मंहगाई और बेरोजगारी जैसे मुददों पर केन्द्रित रखा । एक दूसरे पर व्यक्तिगत प्रहार और इसके लिये किसी भी सीमा तक नेताओं के चले जानें के इस युग में एक भी क्षण के लिये शालीनता की लीक से न हटने के कारण वे लोगों में यह विश्वास जमाने में सफल रहे कि उनमें बडे राष्ट्रीय नेता के अनुरूप गरिमा का निर्वाह करने की सलाहियत है जो भविष्य में बहुत काम आयेगा।
तमाम नाकामियों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपराजेय छवि में उनके रहते दरार आने की कोई गुंजाइश फिलहाल दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रही। मोदी की छाया इतनी बडी हो गयी है कि उनके सामने दूसरी पार्टियों का हर नेता बौना दिखाई देता है जिसके अपवाद राहुल गांधी भी नहीं है। ऐसे में जो भी चुनाव होगा उसमें राहुल गांधी को मोदी के सामने अपनी तुलना प्रस्तुत करनी ही पडेगी जिसमें उनका सारा श्रम निष्फल हो जाने वाला है। ऐसा नहीं है कि राहुल इस तथ्य से अपरचित हों लेकिन इसके बाबजूद वे चरैवेति-चरैवेति के सूत्र का पालन करते हुये निश्ंिचतता पूर्वक आगे बढे जा रहे हैं क्योंकि सबको मालूम है कि मोदी के लिये समय अब सीमित होता जा रहा है जबकि राहुल के लिये अभी लम्बा वक्त पडा है।
बीच में पराजय दर पराजय से यह स्थापित होने लगा था कि कांग्रेस चुकते चुकते पूरी तरह विसर्जित होने की कगार पर पहुंच चुकी है इसके कारण विकल्प की तलाश करने वाले मतदाता किसी अन्य राष्ट्रीय पार्टी के अभाव में क्षेत्रीय छत्रपों का मू ताकने लगे थे नतीजतन उनके मन में भी कांग्रेस को लेकर हीन भावना घर कर चुकी थी। ममता बनर्जी जो एक समय दिल्ली में सोनिया गांधी से मिलने के लिये आ गयी थी अब कांग्रेस को बेआबरू करने पर आमादा थी। केसीआर कांग्रेस को कोई लिफ्ट देने को तैयार नहीं थी जबकि वे मोदी के खिलाफ जोरदार मोर्चा खोले हुये हैं।
उत्तर प्रदेश में मायावती तो अपने ईगो के अलावा किसी को समझती नहीं है इसलिये उनसे उम्मीद करना बेकार था लेकिन अखिलेश भी कांग्रेस के नाम से बिदके बिदके रह रहे हैं। बिहार में राजद का रूख कांग्रेस का समर्थन करने में पहले जैसा गर्म जोश नहीं रह गया तो नीतीश कुमार भी कुछ उखडे उखडे दिख रहे हैं। श्रीनगर में यात्रा के समापन में 21दलों को आमंत्रित किया गया था दिख रहा था कि कई दलों के नेता इसमें पहुंचने का उत्साह दिखायेगे पर मौसम की खराबी वजह हो या जो भी एक भी दल का नेता नहीं आ सका । पर यात्रा का पटाक्षेप इतने अभूतपूर्व ढंग से हुआ कि राहुल की जो फिजा बनी उसके चलते विपक्ष का कोई मजबूत धु्रव कांग्रेस की अगुवाई में ही बन पाने के आसार बन चुके हैं।
पदयात्रा का समापन बहुत ही रोमांचक ढंग से हुआ है इसका अलग ही इंपेक्ट रहा। लाल चैक पर ध्वजारोहण तो एक दिन पहले ही हो गया था। सोमवार को श्रीनगर में भारी बर्फबारी हो रही थी लग रहा था कि कांग्रेस अपनी सभा नहीं कर पायेगी पर राहुल ने यात्रा के दौरान बनी अपनी दृढ छवि को कायम रखते हुये सभा की और बर्फ के थपेडे झेलते हुये जनसभा को संबोधित किया। इस दौरान खासी भीड रही जिससे मौसम की तकलीफ भूलकर दिल्ली से गये कांग्रेसी नेताओं का जोश देखते ही बना। इस दौरान श्रीनगर के लोगो ने सोशल मीडिया के पत्रकारों के सामने यह राय जाहिर की कि कश्मीर में दो ही पार्टियां रहनी चाहिये नेशनल कान्फैंस और कांग्रेस।
भाजपा ने गुलाम नबी आजाद को अपना जमूरा बनाकर घाटी में जो खेल खेलना चाहा था वह विफल हो गया है। राहुल की पदयात्रा की इस आंधी ने गुलाम नबी जैसे नेताओं का वजूद मिटा दिया है। राजनीतिक प्रेक्षकों की राय है कि अल्प संख्यकों का ध्रुवीकरण अब सिर्फ कांग्रेस के लिये होगा इसलिये 2024 में वह सत्ता में पहुंचे या न पहुंचे पर उसकी सीटें बढकर सौ तक हो सकती हैं। हालांकि इससे भाजपा का नुकसान होगा या अन्य विपक्षी दलों का यह विचारणीय प्रश्न है।