वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय को मिलेगा जगदगुरु रामानंदाचार्य पुरस्कार

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वाराणसी : श्रीमठ, काशी की ओर से प्रतिवर्ष दिया जाने वाला एक लाख रुपये का जगदगुरु रामानंदाचार्य पुरस्कार इस वर्ष देश के जाने-माने पत्रकार औऱ राजनीतिक विश्लेषक रामबहादुर राय को दिया जाएगा। स्वामी रामानंद जयंती के अवसर पर वाराणसी के नागरी नाटक मंडली सभागार में 12 जनवरी को संध्या समय राय साहब को एक लाख रुपये नकद, अंग वस्त्रम्, प्रशस्ति पत्र आदि प्रदान कर सम्मानित किया जाएगा।

रामानंद संप्रदाय के प्रधान आचार्य और श्रीमठ पीठाधीश्वर स्वामी रामनरेशाचार्य के जगदगुरु रामानंदाचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने के 25 साल पूरे होने पर रजत जयंती वर्ष मनाया जा रहा है, इसी कड़ी में वर्षपर्यन्त आयोजित कार्यक्रमों का समापन समारोह 10 जनवरी से 14 जनवरी तक काशी में आयोजित है। राय साहब के अलावे चार अन्य विभूतियों को भी इस साल एक-एक लाख रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा।

इस वर्ष जिन पांच महान विभूतियों को रामानंदाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है उनमें काशी के वेदमूर्ति विनायक मंगलेश्वर, काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष और आधुनिक पाणिनी कहे जाने वाले आचार्य रामयत्न शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार और यथावत पाक्षिक पत्रिका के संपादक रामबहादुर राय, मूर्धन्य साहित्यकार प्रोफेसर कृष्णदत्त पालीवाल (दिल्ली) और संत साहित्य के मर्मज्ञ डॉ. उदय प्रताप सिंह शामिल हैं। सभी को एक-एक लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र और अंग वस्त्रम् से सम्मानित किया जाएगा।

श्रीमठ की ओर से हर साल हिन्दी और संस्कृत साहित्य के एक महामनीषी को एक लाख रुपये का पुरस्कार दिया जाता है। इसी कड़ी को आगे बढा़ते हुए रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में एक साथ पांच मनीषियों को इस बार रामानंदाचार्य पुरस्कार से नवाजा जा रहा है। समारोह में देश के जाने-माने विद्वान, राजनीतिज्ञ, संत-महात्मा और साहित्य-संस्कृति के मूर्धन्य लोग शामिल हो रहे हैं। पूरे कार्यक्रमों का समायोजन श्रीमठ महोत्सव न्यास, काशी ने किया है।

काशी के पंचगंगा घाट पर अवस्थित श्रीमठ ऐतिहासिक मठ है जिसका गौरवशाली इतिहास रहा है। करीब सात सौ साल पहले इसी मठ को स्वामी रामानंद ने अपनी साधना स्थली बनाई थी। यही रहते हुए उन्होंने संत कबीरदास, रविदास, धन्ना जाठ और पीपा नरेश जैसे शिष्यों को दीक्षा दी थी। इस रुप में श्रीमठ को रामानंद संप्रदाय और रामभक्ति परंपरा का मूल आचार्यपीठ होने का गौरव हासिल है। यह एक साथ सगुण और निर्गुण रामभक्ति परंपरा का संवाहक केन्द्र रहा है। मध्यकालिन भक्ति आंदोलन में स्वामी रामानंद का अतुलनीय योगदान रहा है। उन्होंने ‘जाति-पांत पूछे ना कोई, हरि को भजे सो हरि का होई’ का नारा देकर उस समय समाज में व्याप्त जातीय विद्वेष और पाखंड के खिलाफ अलख जगाई थी।

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