सहारा का तिलिस्म चंद्रकांता उपन्यास से कहीं कम नहीं है। ज्यों ज्यों इसकी परतें खुल रही हैं त्यों-त्यों रहस्य गहराता जा रहा है। देश में कानून को लेकर बड़ी बड़ी मिसाल दी जाती है पर बिहार में नटवरलाल के नाम से प्रसिद्ध सुब्रत राय ने देश के कानून को भी ठेंगा दिखा रखा है। न तो सेबी के कब्जे में आ रहा है और न ही सुप्रीम कोर्ट के। यह हाल तब है जब निवेशकों से लेकर एजेंट और कर्मचारियों में हा हा कार मचा हुआ है। मामला विधानसभा से लेकर संसद तक में उठ चुका है।
अपनी माता के निधन पर जेल से पैरोल पर आये सुब्रत राय को तीन साल से ऊपर हो गया पर अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने मुड़कर नहीं देखा है। सहारा की स्थिति यह है कि कर्मचारियों, एजेंटों और निवेशकों का सभी को पता है कि वे क्या कर रहे हैं। कहां-कहां मारे फिर रहे हैं पर सहारा के कर्णधार सुब्रत राय, ओपी श्रीवास्तव, जेबी राय और स्वप्ना राय और उनके परिवार के बारे में किसी को स्पष्ट रूप से मालूम नहीं है कि ये लोग कहां हैं और क्या कर रहे हैं ?
बताया जा रहा है कि सहारा के अलावा सबने अपने अपने धंधे जमा लिए हैं। ओपी श्रीवास्तव बाबा राम देव के साथ मिलकर धंधा कर रहा है। जेबी राय ने पानी का धंधा कर रखा है। सुब्रत राय ने अपने बच्चों को विदेश में स्थापित कर दिया है। यह भी अपने आप में रहस्य है कि इस जानकारी के पीछे कोई मजबूत आधार नहीं है। सहारा के बारे में लोगों मन में संदेह पैदा होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि सहारा ने अपनी किसी कम्पनी को कभी प्रॉफ़िट में नहीं दिखाया। तो फिर 2000 रूपए से शुरू किया गया व्यवसाय 2 लाख करोड़ तक कैसे पहुँच गया। यह कारण है कि संस्था में ब्यूरोक्रेट, नेता और अभिनेताओं का पैसा लगा होने की बातें बाजार में बीच बीच में आती रही हैं।
सहारा इंडिया ग्रुप और मार्केट रेग्युलेटर सेबी के बीच चल रही कानूनी लड़ाई अब जगजाहिर हो चुकी है। यह भी अपने आप में रहस्य है कि कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। इसे लेकर बड़े कानूनी जानकारों में भारी कौतूहल है।
वैसे सहारा पर आरोप तो लोग दबी जुबान में लगाते ही रहते थे पर मार्च 2014 में जब सहारा ग्रुप सरगना सुब्रत राय को सुप्रीम कोर्ट ने जेल भेजा तो लोगों का ध्यान इस ओर गया। सुब्रत राय पर निवेशकों के पैसे नहीं लौटाने का आरोप है। सहारा ग्रुप पर सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इनवेस्ट कॉरपोरेशन नाम की दो कंपनियों के जरिए अवैध रूप से डिबेंचर जारी करने का आरोप है। यही वजह रही कि सहारा ग्रुप की इन दोनों कंपनियों की ओर से जारी किए गए पब्लिक इश्यू को सेबी ने अगस्त 2012 में ही अवैध करार दे दिया था।
6 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से सहारा ग्रुप को उस समय भारी झटका दिया गया जब सुप्रीम कोर्ट ने धरती का कृतिम स्वर्ग के नाम से प्रसिद्ध सहारा ग्रुप की सबसे महत्वाकांक्षी हाउसिंग प्रोजेक्ट एंबी वैली को अटैच करने का आदेश दे दिया। ज्ञात हो कि मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर मौजूद एंबी वैली प्रोजेक्ट 39000 करोड़ की लग्जरी टाउनशिप है। सुब्रत राय ने बड़ी शौक से इसे बनवाया था।
बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के निवेशकों के बकाया 14,779 करोड़ रुपए की वसूली को लेकर ये सख्त कदम उठाया था। सुब्रत राय का कहना है कि हमें सेबी को देना नहीं बल्कि लेना है। यही वजह रही कि आज की तारीख में सेबी के अनुमान के मुताबिक सहारा ग्रुप पर ब्याज समेत बकाया राशि लगभत 47000 करोड़ रुपए बताई जा रही है।
यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने ना सिर्फ सहारा ग्रुप के एंबी वैली प्रोजेक्ट को अटैच किया है बल्कि सहारा से उन संपत्तियों की सूची भी मांगी है, जिसकी नीलामी कर ग्रुप की बकाया राशि को प्राप्त किया जा सके। वह भी अपने आप में रहस्य है कि सुप्रीम कोर्ट के तमाम दावे के बावजूद जमीनी स्तर पर कुछ दिखाई नहीं दे रहा है।
यह भी अपने आप में रहस्य है कि सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई किसी की समझ में नहीं आ रही है। यह भी कोई नहीं जानता है कि किस कानून के तहत सुब्रत राय को कैद किया गया है। कांग्रेस प्रवक्ता पेशे से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने तो सुब्रत राय को जेल भेजने के आदेश पर ही सवाल खड़े कर दिए थे।
ऐसा भी नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट इस बात को समझ नहीं रहा है। सुप्रीम कोर्ट को पता है कि सहारा ग्रुप धड़ल्ले से अपनी मेंबर कंपनियों के बीच फंड को मूव करती है।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सहारा ग्रुप की दो दोषी कंपनियों- सहारा इंडिया रियल इस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इनवेस्ट कॉरपोरेशन को अकेले सबक सिखाने का ही मन नहीं बनाया है बल्कि सर्वोच्च अदालत ने पूरे ग्रुप के कामकाज पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर रखा है।
सहारा, सेबी और सुप्रीम कोर्ट का खेल गजब मोड़ पर पहुंच चुका है। सुब्रत राय ने अपने समर्थकों और कर्मचारियों में यह संदेश दे दिया है कि कोई दावेदार न होने की वजह से ग्रुप को सेबी को जमा किया गया पैसा वापस मिलने वाला है। अब कोई दिक्कत सहारा के सामने नहीं रहेगी। उधर सुप्रीम कोर्ट के पूरे सहारा ग्रुप और उसके चतुर प्रमोटरों को उन्हीं की चाल में मात देने की रणनीति की जानकारी मिल रही है।
सुप्रीम कोर्ट की रणनीति का एक हिस्सा यह भी था कि उसने 6 फरवरी 2017 को कपिल सिब्बल के उस फरियादी याचिका को भी दरकिनार कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल ने भी इन दोनों दोषी कंपनियों के 85 फीसदी निवेशकों को सही बताया है।
बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सेबी की जांच पर ज्यादा भरोसा जताया है, जिसमें बताया गया है कि कंपनी के ज्यादातर निवेशक बेनामी और काल्पनिक हैं। सहारा ग्रुप भी इस बात को अब तक साबित नहीं कर पाया है कि उसने निवेशकों को बैंकिंग चैनल के जरिए ही पैसा वापस किया है। यही वजह है कि काफी लोग सहारा को हिन्दुस्तान का स्विस बैंड बताते रहे हैं।
यही वजह थी कि कपिल सिब्बल के इस तर्क कि कोई भी ऐसा बैंक या निवेशक नहीं है जो पैसे वापस करने की मांग कर रहा हो, को भी सुप्रीम कोर्ट ने नकार दिया था।
यह इसलिए माना जाता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि सहारा ग्रुप मनी लांड्रिंग की भूमिका अदा कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट भी जानता है कि इस पूरे खेल के पीछे के असल खिलाड़ी कोई ओर हैं जो सामने नहीं आ पा रहे हैं। शायद यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट जैसे सर्वोच्च संस्था भी सहारा के सामने बेबस नजर आ रही है।
यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट सहारा ग्रुप के उस क्लाइंट की सूची के बारे में जानना चाहता है जिसमें विशिष्ट और ऊंचे लोगों के नाम शामिल हैं, जिसमें अमीर, मशहूर, फिल्म कलाकार, क्रिकेटरों के साथ-साथ नेता भी शामिल बताये जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की यह बेनामी संपत्ति के खिलाफ चोट करने की एक बड़ी रणनीति भी हो सकती है, पिछले वर्ष मोदी सरकार के बेनामी संपत्ति के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की घोषणा से पहले से जारी है। यह भी कडुवी सच्चाई है कि भले ही सुब्रत राय पैरोल पर जेल से बाहर आकर मजे लूट रहा हो पर जेल की तलवार उस पर अभी भी लटक रही है।
सुब्रत राय अभी तक 10 हजार करोड़ जमा नहीं करा पाया है, जो सुप्रीम कोर्ट उनसे उनके बेल के लिए मांग रहा है। न ही उसने सेबी के उस पैसे की मांग पूरी की है जो कथित तौर पर निवेशकों को लौटाया जाना है। इन सब बातों से साफ़ जाहिर होता है कि जिन लोगों को पैसा सहारा में लगा है। वे ही सुब्रत राय के लिए कवच का काम कर रहे हैं। हां वे किसी को दिखाई नहीं दे रहे हैं।
लेखक चरण सिंह राजपूत लंबे समय तक सहारा समूह में कार्यरत रह चुके हैं और इन दिनों बतौर सोशल एक्टिविस्ट विभिन्न जनांदोलनों में शिरकते करते हुए बेबाक लेखन करते हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
Laxman singh
September 1, 2019 at 10:36 pm
यह लेखक अपने आप को राजपूत कह रहा है जो नमक हलाल है जो कि सहारा से भगाया जाने के कारण भड़ास निकाल रहा जो स्वभाविक है।
charan singh
September 2, 2019 at 2:10 pm
kyon nikala gaya, yah nahi bataoge, 5 mahine se vetan n milne ttha suprim court ke aadesh par majithiya wej bourd ki mang kar raha tha, bas yahi apradh tha rajuput ka, mujhe brkhstgi ka gam nahi nahi, sahara men kaam kar rahe ese karmcharion ki soch se pida hoti hai
M.S.Joshi
September 3, 2019 at 12:18 pm
सही बात है ऐसे ही कुछ लोगों ने भड़ास के लिये भड़ास join कर लिया है।
M.S.Joshi
September 3, 2019 at 12:23 pm
सही बात है ऐसे ही कुछ लोगों ने भड़ास के लिये भड़ास join कर लिया है।