मनीष दुबे-
सहाराश्री पर बनी डॉक्यूमेंट्री देखी. भारत एक्सप्रेस पर. शानदार डॉक्यूमेंट्री है. हालांकि इससे पहले भी परसों-नरसों देखी लेकिन पूरी नहीं देख पाया था. कल रविवार रात टीवी पर लगभग पूरी ही देखी. जान फूंकी है चैनल के CMD उपेंद्र रॉय जी ने. जीवन का हर एक पहलू दिखाया है. बतौर दर्शक कहूँ तो मुझे सहाराश्री के बारे में ज्यादातर बातें भारत एक्सप्रेस में ही जानने को मिलीं. इस डॉक्यूमेंट्री में कई बातें अच्छी लगीं. जैसे इतनी बड़ी शख्सियत होकर भी आखिरी कोने में खड़े व्यक्ति तक सहाराश्री का जुड़ाव, उनका संघर्ष, परिवार के प्रति समर्पण, साथ ही साथ 12 लाख सहारा इंडिया परिवार के सदस्यों के साथ उनका लगाव.
उनका, हर एक को अपने से ज्यादा मानना, उनका व्यवहार, मानवता और उनका अद्भुत देशप्रेम. जिसका जिक्र इस सिनेमा में, लंदन के गवर्नर हॉउस को खरीदकर तिरंगा फहराने की बात के तौर पर किया गया है. खेल की बात करें तो इसके जरिये उन्होंने सहारा के मार्फत भारत को दुनिया में अलग ही नजरिये से दिखाने में योगदान किया. सैकड़ों खिलाड़ियों को दिल खोलकर और दिल से दिया. हालांकि उन पाने वाले खिलाड़ियों को आखिर तक शर्म नहीं आयी. जिसका जवाब चैनल के सीएमडी ने बखूबी दिया है. खुले मन से दिया है.
भाभी तो कह ही सकता हूं? सहाराश्री का स्वप्ना रॉय जी से मिलना. पहले घर की टूटी टीन से बारिश का पानी गिरना. डॉक्यूमेंट्री देखते हुए किसी भी स्त्री के लिए गर्व करने का पल होगा, ज़ब स्वप्ना स्क्रीन पर खुद कह रही होती हैं, ‘मेरा लिए तो सब ठीक था, जिससे प्यार करते हैं वो पास है तो सब पास है.’ शायद इसी तरह का कुछ. अमूमन टीवी धारावाहिकों से भिन्न सास-बहु (स्वप्ना और सहाराश्री की मां) की आपसी बॉन्डिंग. जिससे धारावाहिक देखने वाली महिलाओं को सीखने की शायद जरूरत है.
सहाराश्री के बारे में डॉक्यूमेंट्री में जो समझा उसे ज्यादा शब्द लपेटे बिना कहें तो, रेमण्ड वाले अरबपती बाप विजयपत को घर से निकालने वाले कपूत गौतम पर, ‘The Complete Man’ नहीं फबता, बल्कि पिता को जिंदगी में आत्मसात करने वाले सहाराश्री मेरी नजरों में ‘द कम्प्लीट मैन’ हैं. और सिर्फ पिता नहीं बल्कि मां, बहन, भाई सबसे उनका गहरा लगाव था. स्वप्ना रॉय जी से उनको भरपूर मदद मिली, चांदी की शिनाख्त तक. उनके रिश्तेदार, दोस्त, टीचर, चौकीदार, किरायेदार सबको उनके लिए कुछ न कुछ कहते दर्ज किया गया है. इसलिए द कम्प्लीट मैन का टैग सहाराश्री पर सटीक बैठता है.
डॉक्यूमेंट्री को बड़ी मेहनत से तैयार किया गया है, देखने से पता लगता है. धीरे-धीरे हर पहलू, हर एक किरदार अपनी बात कहता चला जाता है. आगे का दृश्य उत्सुकता जगाता है. कई मार्मिक पहलू भी डॉक्यूमेंट्री में हैं. कई जगह सहाराश्री की सख्शियत गर्व महसूस कराती दिखती है. कुल मिलाकर एक कम्प्लीट पैकेज है ये सहाराश्री पर. माने इससे बेहतर अब शायद ही कुछ हो!
बात उनकी करें जो, सहाराश्री के निगेटिव पहलू बताते हैं. तो निगेटिव पहलू हर इंसान का होता है. किसी का कम किसी का ज्यादा. किसी का निगेटिव पहलू सामने होकर भी आपतक नहीं आने दिया जाता. अच्छा बुरा सब हमारे आपके ही अगल बगल टहल रहा होता है. बस फेर होता है उसे समझने के नजर और नजरिए का.
आखिर में उपेंद्र रॉय जी. शुरू से अंत, बीच बीच में भी आकर जो बातें रखते हैं, जिस तरह और अंदाज में रखते हैं, इस वक़्त वही हैं जो इस तरह का बोल सकते हैं. टीवी पर. मुझे तो यही लगता है. क्योंकि जितने सहज अंदाज में उन्होंने बहुत गहरी बातें कहीं उन्हें सिर्फ वही जान सकते हैं. बाकी सुनने और समझने वालों पर निर्भर है. कांसेप्ट और आईडिया CMD उपेंद्र रॉय जी का था. जो बेहद और बेहद शानदार रहा. कामयाब रहा. भड़ास की तरफ से इस डॉक्यूमेंट्री को 5 में पूरे 5 स्टार*. एक उदार मन से देखने लायक फ़िल्म है.