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सुख-दुख

एम्सटर्डम का सेक्स म्यूज़ियम!

विवेक सत्य मित्रम-

एम्सटर्डम में एक सेक्स म्यूज़ियम है। ये बताना कि मैं वहां भी गया था ख़तरे से खाली नहीं है। पर फ़िर भी मैं बता रहा हूं क्योंकि ना तो मैं जाहिल हूं, ना हिपोक्रेट और ना ही मुझे “लोग क्या कहेंगे?” से डर लगता है। फ़िर भी जनता के बीच अवांछित रसास्वादन से बचने के लिए अभी तक मैंने इस बारे में कुछ नहीं लिखा। पर आज फेसबुक पर ड्यूरेक्स का एक एड देखा तो लगा कि लिखना चाहिए।

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म्यूज़ियम के भीतर के दृश्य भारतीय जनता इस प्लेटफ़ार्म पर नहीं झेल पाएगी। लेकिन एक फोटो आपको दिखानी थी जिसमें कुछ लड़कियाँ प्रदर्शनी में लगी तस्वीरें देखती नज़र आ रही हैं। इस म्यूज़ियम में उनके जैसी सैकड़ों महिलाएं थीं। हर देश की। उम्र की। अकेले। समूह में। अपने पार्टनर के साथ। किसी को उन नग्न तस्वीरों को देखने में कोई झेंप नहीं थी। संकोच नहीं था। वो वहां खुलकर इन तस्वीरों के बारे में बात भी कर रही थीं। हंस रही थीं। और सब कुछ बहुत सहज था।

अब आप ज़रा ड्यूरेक्स के एड पर नज़र डालिए जिसमें कंपनी बक़ायदा “डिस्क्रीट डिलीवरी” को हाइलाइट कर रही है ताकि बिचारे शर्मीले संकोची भारतीय कंडोम ऑर्डर करने में संकोच ना करें। इस देश का ये हाल तब है जब शर्माते लजाते दुनिया में सबसे ज़्यादा बच्चे यहां पैदा हो गये। सोचिए अगर ये संकोची ना होते सेक्स पर बातचीत को लेकर तो इस देश का क्या होता। ये दो तस्वीरें बताती हैं कि हम भारतीय बहुत से मामलों में जाहिल हैं और हिप्पोक्रेट भी।

बाइ द वे ये बताता चलूं कि जिस कामसूत्र की दुहाई देकर कुछ मॉडर्न/ लिबरल लोग भारत के अतीत के उदार होने की बात करते हैं। उस भारत देश से इस प्रदर्शनी में महज 3-4 चित्र लगे थे। एकाध कामसूत्र से। दो तीन खजुराहो से जबकि चीन, कोरिया और जापान के सैकड़ों चित्र/ आर्ट वर्क इस प्रदर्शनी में हैं। मेरा मानना है कि इस देश में यौन हिंसा और विकृत मानसिकता के लोगों की भरमार के पीछे इस मामले में हमारी हिपोक्रेसी और जाहिलपना ज़िम्मेदार है।


Kamasutra can never be the gold standard of Indian opinions on sex, it is a treatise written by an upper class aristocrat to please the rulers most probably by stalking/vouyering the sex workers at that time. Also as far as Eurocentricism is concerned we are a culture that only has one cultural currency – “we are the greatest” , all races who stuck with this ideology ultimately perished or lagged behind be it the Greeks, Romans or Egyptians, a post modern world requires an intersectional view of things- sex museums are normal, sex work is legal and regularised , the workers work in the De Wallen but don’t live there as a ghetto, they are integrated well into the society, a 1000 more things like that which would not be digestable to those who live in the we are great bubble. -Pooja Priyamvada

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