योगराज सिंह-
पिता समान एक दिग्गज पत्रकार को कोटिशः नमन
बात 1996 की है, उस समय मैं बी.ए. तृतीय वर्ष अवध विश्वविद्यालय का छात्र था। के. एन. आई. सुल्तानपुर में क्लास लेने साइकिल से जाया करते थे। बी.ए. प्रथम वर्ष में दाखिले के साथ ही अखबारी दुनिया में काम करने की प्रबल इच्छा थी। हमारी इस इच्छा को पूरा किया शीतला सिंह जी ने।
लिखने का शौक तो था ही, साथ ही राजनीति हो या समाज से जुड़ा अन्य कार्य, सभी में खूब दिलचस्पी थी। पढ़ाई के दौरान ही 1996 में जब मैं जनमोर्चा के संपादक से मिला तो उन्होंने बेझिझक मुझे अपने यहां नियुक्त कर लिया। अपने बाजार की खबरों को लिखकर लेकर जाने की बात हो या कार्यालय पहुंचकर वहां की खबरों को टाइप करने की बात, खूब आनंद आता था।
पेस्टिंग विभाग में जब खबरें चिपकाई जाती थी, उस समय का दृश्य देखने लायक होता था। सभी अपनी-अपनी खबरों को प्रमुखता से लगाने के प्रयास में लगे रहते थे। सुरेश पाठक का भरपूर जलवा हुआ करता था। कृष्ण प्रताप सिंह, जो शायद कुछ समय तक जनमोर्चा के स्थानीय संपादक भी रहे, सीधे व सरल स्वभाव के धनी हैं। हमारे समय कई किरदार ऐसे थे, जिनके बारे में लिखेंगे तो काफी लंबा हो जाएगा।
फिलहाल हम पिता समान शीतला सिंह जी की बात करते हैं। उनकी हैसियत एक कद्दावर शख्सियत के तौर पर थी, लेकिन उसके ठीक विपरीत उनसे मिलने पर नई ऊर्जा का संचार होता था। हमसे उन्होंने स्पष्ट कहा कि बेटा-हम आपको पैसा तो नहीं दे पाएंगे, लेकिन यहां से जो मिलेगा, वह आपके भविष्य को संवार सकता है। उनका इशारा सरकारी नौकरी की ओर था, चूंकि वे अपने यहां काम कर रहे लोगों को समय देखकर सरकारी नौकरियों में भेज देते थे। मुझे उस समय 900 रुपये मिलते थे। मैं पढ़ाई भी करता था, इसलिए उस समय इतना भी पर्याप्त था। फैजाबाद चौक में दाल फ्राई रोटी खाने की यादें ताजा हो गईं। पांच-छह माह ही जनमोर्चा में था, लेकिन जब वहां से आने लगा तो उस समय संपादक शीतला सिंह जी काफी उदास दिखे थे। शायद वे हमारे कैरियर के बारे में सोचकर चिंतित थे। उन्होंने मुझसे कहा कि बेटा हम आपको पहले ही बोल चुके हैं कि यहां से आपका जीवन बदल सकता है।
लेकिन ‘होइहै उहइ जो राम रचि राखा’ वाली कहावत फिट बैठी और हमने उस समय उनका साथ छोड़ दिया। मंगलवार 16 मई 2023 को वे भी हमें छोड़कर चले गए। पृथ्वी का यही नियम है और सच्चाई भी यही है।
शीतला सिंह जी की लिखावट को बिरले ही पढ़ पाते थे। जैसी उनकी लिखावट थी, उसी प्रकार वे एक अलग अंदाज वाले व्यक्ति भी थे। कुछ विवादित भी रहे, थोड़ी बदनामी भी झेली। लेकिन यह जीवन है जनाब! यहां यह सब नियति ने ही तय कर रखा है। भगवान श्रीराम विवादों से नहीं बच पाए तो आम इंसान कैसे बच सकता है। अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर की भूमि जब विवादित थी, उस दौरान पत्रकार हो या सरकारी अमला, सबके सब जानकारी जुटाने में जब कमजोर होते थे तो शीतला सिंह जी और उनके अखबार जनमोर्चा को ही याद करते थे।
खैर, वे एक इंसान के तौर पर गंभीर और अच्छे व्यक्ति थे। हमने एक हस्ताक्षर समान व्यक्ति को खो दिया। शीतला सिंह जी जैसा दबंग पत्रकार कोई होगा, यह एक सवाल है, किस पत्रकार के आने पर डीएम कुर्सी से खड़ा हो जाता है। मुझे एक भी नाम अगर कोई सुझाए तो मैं जानूंगा कि उनके समकक्ष कोई है भी। उनके यहां काम करने वाले कई सरकारी नौकरी में थे, कुछ है भी। फैजाबाद का कोई भी जिलाधिकारी उनके सम्मान में अपनी कुर्सी छोड़कर पहले उनको कुर्सी पर बैठने के लिए बोलता, उनके बैठने के बाद वह कुर्सी पर बैठता था। ऐसे थे हमारे शीतला जी, वे जहां भी हो, शांत मन से हो, हम सबको इस लाइन से जोड़ने के लिए असाधारण शीतला जी को कोटिशः नमन।
Anshuman Anand
May 18, 2023 at 9:05 pm
जय हो…. भड़ास टीम को साधुवाद… Thanks Yashwant