अरविंद कुमार सिंह-
शीलाजी तब साप्ताहिक हिंदुस्तान की संपादक थीं। एक बार मुझे इलाहाबाद की पृष्ठभूमि पर एक लेख लिखने के लिए कहा, जिसे मैने लिख कर भेजा और साथ में उनके कहे मुताबिक कुछ फोटो भी थे। लेकिन वह आलेख छप नहीं सका और बाद में उन्होंने उस लेख को अपने निजी पत्र के साथ वापस भेजा। क्योंकि वे साप्ताहिक हिंदुस्तान के संपादक पद से हट चुकी थीं और तब तक लेख छप नहीं सका था।
लेख छपना न छपना कोई बड़ी बात नहीं,। नए पत्रकारों को तो कुछ दिनों में ही आभास हो जाता है कि बहुत से जगहों से पावती तक नहीं मिलती। लेकिन अपनी जिम्मेदारी पर लेख को लौटाना आज के उस दौर में मुझे छोटी बात नहीं लगती, जबकि खाली बैठे संपादक भी युवा पत्रकारों के लिए पांच मिनट का समय नहीं निकाल पाते हैं।
शीलाजी का वह पत्र साझा कर रहा हूं।
