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सुख-दुख

सिद्दीक़ कप्पन और कुमार सौवीर : मनुष्यता और मोहब्बत ज़िंदाबाद!

शीतल पी सिंह-

सिद्दीक़ कप्पन अभी थोड़ी देर पहले ही जेल से बाहर आए हैं, क़रीब आठ सौ दिन बाद! फोन पर मेरी बात हुई । केरल निवासियों के एक्सेंट में उसने मुझे धन्यवाद दिया जिसे स्वीकार कर पाने की मेरी हिम्मत न हुई ।

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सिर्फ़ मुसलमान होने के नाते (सुप्रीम कोर्ट की भी समझ में उसकी गिरफ़्तारी की कोई साफ़ वजह ज़ाहिर न हुई) उत्तर प्रदेश की सरकार और ईडी ने उसे निशाना बनाया, इस आरोप में इतना वज़न है कि मेरी ठीक से आवाज़ तक न निकली । क्या कहता , कुछ बन न पड़ा । इस मौक़े पर उसका जवान होता बेटा और पत्नी लखनऊ में मौजूद हैं , यही एक सिरा था जिस पर एक दो वाक्य बोलकर मैंने ख़ानापूर्ति की ।

पहले सुप्रीम कोर्ट और फिर हाईकोर्ट से दो अलग मामलों में ज़मानत मिलने के बाद भी जेल से बाहर आ पाने का प्रोसीजर पूरा होने में हफ़्तों निकल गए । दिल्ली प्रेसक्लब के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा ने मुझसे उनके लिए लखनऊ के रहवासी किसी ग़ैर मुस्लिम जमानतदार का इंतज़ाम करने को कहा था । मैंने बीमार चल रहे पत्रकार मित्र कुमार सौवीर से पूछा तो वह तुरंत स्वयं को प्रस्तुत कर बैठे । प्रोसीजर पूरा करते करते कुमार सौवीर को एक दिन अचानक लकवे ने शिकार बनाया । शरीर का एक हिस्सा, मुँह का एक हिस्सा जाम हो गया । मैं देखने पहुँचा तो लड़खड़ाते शब्दों से वह ज़मानत के प्रोसीजर के पूरा न हो पाने पर अफ़सोस करता मिला । मैं अंदर से भीग गया । दुनियाँ में आज भी इतने ख़ूबसूरत इंसान बसते हैं और वे हमारे चारों तरफ़ मौजूद भी हैं ।

बाक़ी बयान ये है कि लकवे के मारे शरीर में इलाज के दौरान ही कई बार कोर्ट जा जाकर (ले जाए जाकर) सौवीर ने कप्पन की ज़मानत की सरकारी क़वायद पूरी कीं और नतीजे में आज सिद्दीक़ कप्पन सीखचों से बाहर हैं और कुमार सौवीर के फ़ोन से ही मुझे शुक्रिया कह रहे हैं जिसका मैं तो क़तई हक़दार नहीं हूँ बल्कि उत्तर प्रदेश का निवासी होने के नाते उनकी राज्य सरकार द्वारा की गई प्रताड़ना में खुद को शरीक मानता हूँ । हम एक अन्यायी समाज के अंश हैं जिसे न्यायी समाज न बना सकने का गुनाह हम सब पर है ।

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हां एक बात भूल गया था, कप्पन की हाईकोर्ट में ज़मानत की सफल क़ानूनी पैरवी मेरे भतीजे ईशान सिंह बघेल ने की थी, जो मशहूर वकील आईबी सिंह के होनहार पुत्र हैं ।


दीपक कबीर-

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लखनऊ भी एक से एक गज़ब लोगों से भरा पड़ा है… अब ये हैं भाई कुमार सौवीर…

अभी तीन दिन पहले ये अचानक प्रगट हुए और मुझे पठान फिल्म का टिकट स्पांसर कर रहे थे तो कॉमेंट से पता चला कि भाई को फालिज का अटैक आया है…

और कल पता चला मुझे टिकट स्पॉन्सर करते करते उन्होंने पत्रकार साथी कप्पन जो हाथरस कांड की रिपोर्टिंग के लिए जा रहा था और दो बरस से जेल में बंद कर दिया गया था..उसकी ज़मानत ले डाली / तस्वीर में इनके गले लगे हुए कप्पन ही हैं जो अब अपने घर वापस जा सकेगें..,इससे पूर्व कप्पण की ज़मानत में ही पहल लेकर मेरी शिक्षिका,साथी रूप रेखा वर्मा ने हम सबको सुकून से और लखनऊ को नाज़ से भर दिया था..

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एक तस्वीर में राहत से भरे कप्पन के बेटे और पत्नी भी हैं, मुझे इस जमानत की मुश्किलात पता थीं क्योंकि ये ज़मानत युवा वकील ईशान सिंह देख रहे थे ,जिनके पिता ,हम सबके अग्रज भाई और जाने माने वकील आई बी सिंह ने मेरी भी जमानत करवाई थी ,तो जब मैं अपने केस को डिस्कस करने जाता था तो ईशान से भी बात मुलाकात होती थी और वो इन ज़मानत की चुनौतियों को शेयर कर लेते थे। भाई आई बी सिंह ने तमाम परेशान हाल लोगों की हमेशा से जूझ कर मदद की है और वो अद्भुत याददाश्त के स्वामी ही नहीं बहुत ज़हीन शख्स हैं, इतने कि सिर्फ उन्हे सुन कर बहुत कुछ सीखा जा सकता है। ईशान सिंह को आई बी सिंह भैय्या के अनुभवों ने निसंदेह एक काबिल और संवेदनशील अधिवक्ता बनाने में खासा योगदान दिया होगा ।

दस्तक युवा फेस्टिवल होने ही वाला है । इसकी मेमोरी लेन में एक युवा जोड़े की बहुत क्यूट सी फोटो लगी होती है जिसमे लड़का एक लड़की की चोटी गूंथ रहा है …ये जेंडर स्टीरियोटाइप रोल बदल कर देखने की प्रतियोगिता थी..और वो जोड़ा कुमार सौवीर की प्यारी बिटिया बकुल और दामाद हैं जिन्होंने इस आकस्मिक बीमारी में भी इन्हे संभाला और इस जमानत को भी मुमकिन बनाने में सहयोग दिया । दूसरी बेटी साशा भी बतौर पत्रकार सक्रिय रही है ।

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हालांकि जब भी मैं सौविर भाई को याद करता हूं तो वरिष्ठ पत्रकार शीतल भाई जब लखनऊ में आ कर एक होटल में रुकते थे तो उसमे बैठे हुए खाने पीने के दौरान इनका खुद बयान किया एक ऐसा अद्भुत किस्सा याद आता है जो मैं यहां लिख दो नहीं सकता मगर उसको विजुलाइज करते ही देर तक हंसता रहता हूं।

बातें तो कुछ और भी हैं…
लेकिन आज सिर्फ इतना कि
सलाम सौवीर भाई!

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स्वास्थ्य और जिंदादिली बरकरार रहे …


कुमार सौवीर-

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जो किसी के साथ कभी रहने की औकात तक नहीं रख पाते हैं। दूसरों के दर्द, तनाव और झंझावातों को समझना ही नहीं चाहते। जो कभी भी कुछ नया सार्थक कर पाने की क्षमता ही नहीं रखते हैं। जिनका समाज और परिवार से केवल इतना रिश्ता भर है, जो उन्हें सिर्फ आनंद ही देता रहे। किसी भी कीमत पर। वे न कभी कुछ करना चाहते हैं, और न ही उनमें पवित्र युद्धों के लिए समय ही होता है।

जो केवल घृणा के व्यवसाय में लिप्त रहना चाहते हैं और उसी गंदगी में ही डूबना-तैरने का अभ्यास खुद अपने घर, खानदान और को सड़ा डालने पर आमादा रहते हैं। उनके लिए एक खबर है।

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मूलतः केरल निवासी और दिल्ली में रहने वाले सिद्दीक कप्पन आज लखनऊ जेल से रिहा हो रहे हैं। हाथरस में ढाई बरस पहले गैंग-रेप से कत्ल कर दी गयी 19 बरस की युवती की लाश को पुलिसवालों ने केरोसिन डाल कर सरेआम फूंक डाला था।
कप्पन उस हादसे की रिपोर्टिंग करने गए, तो पुलिस ने उन्हें देशद्रोह और मानी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगा कर जेल में बंद कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 23 दिसम्बर को जमानत दे दी तो आज मैंने सिद्दीक को रिहा करने के लिए अपनी संपत्ति के पेपर्स लखनऊ के जिला जज संजय शंकर पांडे को सौंप कर जमानत बांड भर दिया।

अब शाम तक कप्पन ढाई बरस बार खुले आसमान में सांस ले सकेंगे। फोटो में है सिद्दीक कप्पन की पत्नी रेहाना और इंटर में पढ़ रहा बेटा मुजम्मिल।

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