
एक टिप्पणी-
मीडिया के साथी ध्यान दें। बकैती के इतर हमेशा एक “फकिंग विंडो” से सत्यावलोकन करें। अगर थोड़े कम प्रिविलेज की वजह से “द फकिंग विंडो” उपलब्ध न हो तो एक अदद “फकिंग डोर” तो होगा। अगर इत्ते भी प्रिविलेज्ड न हों, निहायत ही गरीब मीडियाकर्मी हों तो एकाध “पिटी होल” जुगाड़ करें लेकिन किसी भी हाल में सत्यावलोकन करें। हालाँकि सूसुधीर जी दशकों से सत्य का साक्षात्कार करते करते खुद ही असंख्य छिद्रों के समुच्चय में तब्दील हो चुके हैं। सत्य अब खुद इनमें घुसा चला आता है। वासेपुर का “छेदों के खुदा” वाला संबोधन इन्हीं से प्रेरित था। -अंजनी