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सुख-दुख

जब आत्महत्या करने का मन करे तो क्या करें…

अजय एसएन सिंह-

पूपी के पूर्व डीजी द्वारा अवसाद के चलते सुसाइड करने की घटना विचारणीय है। इसलिए यह पोस्ट लिख रहा हूं। जीवन में जब भी आप परेशान हों, कुछ मिस करें, कुछ चीज़ों के छुट जाने पर हताश हैं या किसी चीज़ के न पा पाने को लेकर दमित या हारा हुआ महसूस करें तो बस निम्न छोटी बातों/अनुभवों को स्मरण कर लीजिए…

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  1. उन चीजों का अवलोकन करें, जो आपने हासिल कीं या फिर ज़िंदगी ने आपको दीं। 90% केसेज़ में आप पाएंगे कि उन चीजों को हासिल कर पाना या वहां तक पहुंच पाना तो लाखों लोगों का सपना होता है। फिर आप उन चीज़ों का सम्मान करेंगे। उनका आदर करना सीख जाएंगे। उनके महत्व व मूल्य को समझेंगे।
  2. ख़ुद को कमतर बिल्कुल मत आंकें। आप जो भी हैं, जैसे भी हैं, एकदम लाज़वाब है। शानदार हैं। ज़िंदगी में आपने जो भी चीज़ें या उपलब्धियां हासिल कीं, उनसे वास्तव में लाखों नहीं करोड़ों लोग वंचित रह गये।
  3. आप ये देखें कि कितने लोग आपसे कमतर उपलब्धियों, संसाधनों तथा सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक सुरक्षा के बावजूद भी आपसे हजार गुने बेहतर कर रहे हैं। उनमें से कइयों को तो राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्राप्त होते रहे हैं। फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है।
  4. जीवन में जो आपको नहीं मिला, जिसके लिए आप परेशान होते हैं, अगर आप उसकी बज़ाय उन चीज़ों पर बस थोड़ा सा भी ध्यान देंगे, बस एक बार उनका अवलोकन कर लेंगे तो पाएंगे कि जो चीज़ें ज़िंदगी ने आपको दे दीं, उसकी तुलना में छूट गई चीज़ें बहुत गौण और छोटी चीज़ निकलेंगी। इसलिए जो चीज़ें जीवन ने आपको दीं या आपने हासिल कीं, उसका अनादर न करें। उसका अपमान न करें। उसके महत्व व मूल्य को पतित न करें।
  5. मनुष्य का यह स्वभाव ही होता है, या फिर कह लें कि मानव मनोवृत्ति ही होती है कि जो भी चीज़ें उसे मिल जाती है, वह उसकी कद्र नहीं करता और जो चीज़ नहीं मिल पातीं, वह उसके लिए डेस्परेट रहता है। उसे ओवर इस्टीमेट कर लेता है। फिर वह अपेक्षाकृत दो कौड़ी की चीज़ ही क्यों ना हो! इस मनोविज्ञान को समझ लें, तो जीवन बहुत आसान व ख़ुशहाल हो जाएगा। इसलिए जो मिला, उसको लेकर सहज आत्मविश्वास से उसका आदर करना सीखें।
  6. आकर्षक का सरल सिद्धांत भी समझ लें। अप्राप्त, अजेय या अज्ञात ही आकर्षक होता है। यानी, कोई भी चीज़ आपको तभी तक आकर्षित करेगी, जबतक वह आपके लिए उपलब्ध नहीं है। उपलब्ध या विजित करते ही आपका आकर्षण तत्क्षण खो जाएगा। आपको अमरीका तभी तक आकर्षित करेगा, जबतक आपका जहां ख़ुद का एक बंगला नहीं हो जाता। वहां का निवासी होते ही, वहां की समस्याओं व पर्यावरण से रू-ब-रू होते ही आप अपनी मातृभूमि, गांव-देहात, खेत-खलिहान, नदियों-झीलों को मिस् करने लगेंगे। आपको आईएएस का पद तभी तक आकर्षित करेगा, जब-तक आप ख़ुद आईएएस नहीं हो जातें। अन्यथा आईएएस होकर भी अनगिनत लोगों ने नौक़री छोड़कर अपना बिज़नेस शुरू किया। दुनिया का कोई ऐसा पद नहीं जहां पहुंचकर अनगिनत लोगों ने ने सुसाइड न किया हो! या, डिप्रेशन में न गये हों!
  7. दूसरों को सम्मान देने के साथ-साथ ख़ुद का भी सम्मान करें।
  8. आपके परिजन, प्रियजन, मानवीय व सच्चे सगे-संबंधी, सच्चे शुभचिंतक व वफादार खाटी मित्र इत्यादि आपकी पूंजी हैं। यह मायने नहीं रखता कि उनकी हैसियत क्या है! उन्हें आप दुनिया की किसी संपदा से नहीं तौल सकते। इसलिए उनका भी महत्व समझें। दुनियादारी के पीछे भागने के साथ पलटकर थोड़ा समय उन सच्चे लोगों को भी दें। उन्हें भी महत्व देते चलें। उनके भी सुख-दुख में खड़े मिलें। आप कभी अवसाद में नहीं जाएंगे।
  9. हमेशा ध्यान रखें कि जो मिला, वो एक दिन खोएगा। हर चीज़ का एक आवर्तकाल होता है। समय आने पर ये देह तक साथ छोड़ेगी। इसलिए अपनी जगह सही, सच्चे और नैतिक रहें औथ ज़िंदगी जो दे उसका स्वागत करें। ज़िंदगी जो छीने, उसको सादर स्वीकार करिए‌।
  10. हमेशा ध्यान रखें कि एक अच्छा जीवन जीने, बेहतर व रचनात्मक करने और ख़ुश रहने के लिए एक स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मस्तिष्क, मानवीय हृदय, रोटी-कपड़ा-मकान के आवश्यक आवश्यकता की पूर्ति, चार सच्चे व खाटी मित्र और विवेकवान साथी मात्र अति-पर्याप्त (More than sufficient) है। अगर आपके पास इतना मात्र है, तो समझिए कि आपके पास ख़ुश रहने और बहुत बेहतर कर सकने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं।
  11. और अंततः एक बात ध्यान रखें। दुःख, अवसाद या आत्मग्लानि इत्यादि बौद्धिक और सच्चे लोगों की मनोवृत्ति का विषय है। बौद्धिक रूप से पंगू और छिछले हृदय का व्यक्ति कभी गहरे अर्थों में दुःखी नहीं होता। ग़लत व्यक्ति कभी आत्मग्लानि से नहीं भरा होता। वह लाख ग़लती करके भी हमेशा अपनी नज़रों में सही होता है। मनुष्य को छोड़कर कोई अन्य जीव कभी अवसाद में नहीं जाता। कबीर तो यहां तक कहते हैं कि सबसे मूढ़ व्यक्ति सबसे चैन से सोता है। गीता में भी कुछ ऐसा ही निष्कर्ष है। इसलिए अपनी चिंता की प्रवृत्ति व परेशानियों को ख़ुद के बौद्धिक द्विगभ्रम का परिणाम मात्र समझें। और विवेक को सही दिशा में लगाएं।
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