
कृष्ण भानु-
सरकार बने करीब दो महीने बीतने लगे हैं। सुक्खू सरकार थोड़ी धीरे चल रही है। कारण ? सीएम और डिप्टी सीएम की शपथ के तुरन्त बाद सरकार ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में भाग लेने के लिए राजस्थान चली गई। शायद जरूरत नहीं थी। भारत जोड़ो यात्रा हिमाचल प्रदेश में भी तो आनी ही थी। थोड़ा इंतजार कर लेते।
नई नई दुल्हन के राजस्थान भाग जाने की कोई जरूरत नहीं थी।
उसके तुरन्त बाद सीएम को कोरोना ने लपक लिया और दिल्ली में बैठना पड़ा। मंत्रिमंडल के विस्तार में भी समय लग गया। विस्तार से पहले कुछ सीपीएस भी बनाये गए। सन्देश अच्छा नहीं गया। इन कारणों से सरकार की रफ्तार धीमी होती गई और लोग थोड़े उदास होने लग पड़े हैं। यह बात ठीक नहीं है। चुस्ती दुरुस्ती आनी चाहिए।
ओपीएस सहित एक लाख नौकरी के वायदे को पहली कैबिनेट में लागू कर लिया गया है लेकिन अमलीजामा कब पहनाया जाएगा, यह हवा हवाई है। समयबद्ध होना चाहिए था जो नहीं है। 300 यूनिट बिजली मुफ्त और महिलाओं को दी जाने वाली 1500 रुपये माहवार पेंशन जोखिम भरा कार्य है। बेशक प्रदेश कर्ज के दलदल में धंस चुका है लेकिन जो “भीष्म प्रतिज्ञा” की है वह निभानी होगी वरना 2024 में लोगों को जवाब देना मुश्किल होगा।
आउटसोर्स कर्मचारी दम साधे बैठे हैं। पंजाब पेटर्न पर कर्मियों को पेंशन भत्ते का इंतजार भी हो रहा है। मनरेगा में 150 दिन का रोजगार, पुलिस कर्मचारियों का कॉन्ट्रैक्ट पीरियड 8 से घटाकर 2 साल करने का भी वायदा है। सब वायदे 2024 के लोकसभा चुनावों तक “ठिकाने” लगाने होंगे।
अपनी बिरादरी की बात पर आता हूँ। कांग्रेस के ‘प्रतिज्ञा पत्र 2022’ में पत्रकारों से भी एक वायदा किया गया था। वह यह था :
“विषम परिस्थितियों में पत्रकारों की सहायता के लिए जनसंपर्क विभाग में एक पत्रकार राहत कोष की स्थापना की जाएगी। इसमें स्वयं पत्रकार और उनके सगे संबंधियों को दो लाख रुपये तक की सहायता मिल सकेगी। सेवानिवृत्त पत्रकारों के लिए एक पेंशन योजना लागू की जाएगी।”
लेकिन फैसले विपरीत हो रहे हैं। सुना है कि प्रदेश से छपने वाले वीकली अखबारों के विज्ञापन बेमियादी समय के लिए बंद कर दिए गए हैं। बड़े अखबारों के इस्तिहारों पर भी अंकुश लग गया है। शायद इसी कारण एक नामी अखबार ने सुक्खू सरकार के विरुद्ध चार-छह दिन से मोर्चा खोल रखा है। बड़े अखबार पंगा ले सकते हैं लेकिन लघु समाचार पत्र क्या करें? सिर्फ बददुआएँ देंगे।
नरेश चौहान प्रधान सलाहकार (मीडिया) पार्टी के प्रति कर्मठ रहे हैं। अच्छे व्यक्ति हैं लेकिन पत्रकार नहीं हैं। मुझे विश्वास नहीं है कि सीएम या विभाग को उन्होंने यह सलाह दी होगी। नरेश चौहान को मध्यस्थता करनी चाहिए। सब जान लें कि मीडिया आज भी सूरत बनाने बिगाड़ने में शक्तिशाली भूमिका निभाता है।
मीडिया सारा खराब नहीं है। कुछ लोग खराब अवश्य होंगे। स्वतंत्रता के चौथे स्तम्भ में कई सम्मानित भी हैं। जो सम्मानित हैं उनका निरादर ठीक नहीं है।
शास्त्रों में भी कहा गया है :
अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूज्यानां तु विमानना ।
त्रीणि तत्र प्रवर्तन्ते दुर्भिक्षं मरणं भयं ॥
(जिस राष्ट्र या समाज में अपूज्य और अयोग्य व्यक्तियों का सम्मान होता है और पूजनीय सम्माननीय व्यक्तियों का निरादार और अपमान होता है, वहां सदैव अकाल, मृत्यु तथा भय, ये तीनों विपत्तियां छायी रहती हैं”।
इतिम्ह!